जनता से रिश्ता वेबडेस्क| अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने एच-1बी विशेषता व्यवसायों के लिए अस्थायी व्यापार वीजा जारी नहीं करने का प्रस्ताव पेश किया है। इसका सीधा असर कई भारतीयों पर झटके के रूप में पड़ सकता है क्योंकि इसके तहत कई कंपनियों के तकनीकी पेशेवरों को छोटे समय के लिए अमेरिका में साइट पर जाकर नौकरी की अनुमति दी गई है।
यदि इस प्रस्ताव को अंतिम रूप दे दिया जाता है तो 'एच के बदले में बी-1' नीति के तहत विदेशी पेशेवरों को कुशल श्रम के लिए अमेरिका में प्रवेश करने के लिए वैकल्पिक मौकों की संभावनाएं खत्म हो जाएंगी।
विदेश मंत्रालय का कहना है कि इस प्रस्ताव के मंजूर होने से अमेरिकी नियोक्ता अपने कुशल श्रमिकों को प्रोत्साहित कर सकेंगे। इससे अमेरिकी श्रमिकों की रक्षा के लिए कांग्रेस द्वारा स्थापित 'एच' गैर-आप्रवासी वर्गीकरण से संबंधित प्रतिबंधों और आवश्यकताओं को दरकिनार किया जा सकेगा।
अधिसूचना के मुताबिक, विदेेश मंत्रालय का अनुमान है कि इस प्रस्ताव से हर साल 6,000 से 8,000 विदेशी श्रमिक प्रभावित हो सकते हैं। इस पर मुहर लगने से अमेरिका में विदेशी कार्यबल की संख्या घट जाएगी। विदेश मंत्रालय का यह कदम अब जाकर सार्वजनिक किया गया है जब राष्ट्रपति चुनाव को दो हफ्ते से भी कम समय रह गए हैं।
भारतीय पेशेवरों पर बुरा असर
इस कदम से बहुत सारे भारतीय पेशेवरों पर असर पड़ने की संभावना है, जो अमेरिका में साइट पर जाकर काम करते हैं। ट्रंप प्रशासन ने यदि अमेरिकी विदेश मंत्रालय के इस प्रस्ताव को मान लिया तो सैकड़ों भारतीयों की रोजी-रोटी पर इसका बुरा असर पड़ सकता है।
इंफोसिस पर लग चुका है जुर्माना
अमेरिका में पिछले साल 17 दिसंबर को कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल ने इंफोसिस लिमिटेड के विरुद्ध आठ लाख डॉलर के जुर्माने का एलान किया था। उस वक्त करीब 500 इंफोसिस कर्मचारियों के इस अमेरिकी राज्य में एच-1बी वीजा के बजाय कंपनी द्वारा प्रायोजित बी-1 वीजा पर काम करने के आरोप लगे थे।
प्रस्ताव के खिलाफ उठेंगी आवाजें
अमेरिकी विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि कोरोना वायरस की वजह से देश में बेरोजगारी बढ़ गई है। ऐसे में अमेरिकियों के लिए नौकरियों को 'बचाना' जरूरी है। इस प्रस्ताव को इस साल दिसंबर से लागू करने पर विचार चल रहा है। लेकिन यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स इसके खिलाफ आवाज उठा सकता है। उनका अब तक कहना रहा है कि अमेरिका में कुशल कामगारों की कमी है।