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भारत के लिए विलेन बन चुके हैं अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन

Subhi
13 Sep 2022 1:02 AM GMT
भारत के लिए विलेन बन चुके हैं अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन
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भारत और अमेरिका के बीच पिछले कुछ साल से रिश्ते ठीक नहीं चल रहे हैं. रिश्तों में वो मिठास नजर नहीं आ रही है जो डोनाल्ड ट्रंप के समय में आती थी. मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन का भारत विरोधी रुख समय-समय पर नजर आ ही जाता है. अपने कार्यकाल में उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए हैं जो भारत के खिलाफ रहे हैं.

भारत और अमेरिका के बीच पिछले कुछ साल से रिश्ते ठीक नहीं चल रहे हैं. रिश्तों में वो मिठास नजर नहीं आ रही है जो डोनाल्ड ट्रंप के समय में आती थी. मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन का भारत विरोधी रुख समय-समय पर नजर आ ही जाता है. अपने कार्यकाल में उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए हैं जो भारत के खिलाफ रहे हैं. इसी क्रम में बाइडन ने ऐसा ही एक और फैसला लिया है. दरअसल, बाइडन प्रशासन ने पाकिस्तान एयरफोर्स (PAF) के पास मौजूद फाइटर जेट एफ-16 को अपग्रेड करने का फैसला किया है. यही नहीं अमेरिका ने इसके लिए पाक को 450 मिलियन डॉलर की आर्थिक मदद भी दी है. यह मदद उसने तब की है जब उसके पाकिस्तान से संबंध बहुत खराब हैं.

पहले भी भारत को दे चुके हैं झटके

ऐसा नहीं है कि बाइडन ने पहली बार कुछ ऐसा किया है जो भारत के खिलाफ हो. वह पहले भी ऐसी चीजें कर चुके हैं जिससे भारत को झटका लगा है. इसे समझने के लिए आपको थोड़ा फ्लैशबैक में जाना होगा. यह वर्ष 1992 का वक्त था. तब जो बाइडन अमेरिका के डेलावेयर एरिया से डेमोक्रेटिक पार्टी के सीनेटर हुआ करते थे. उस वक्त अमेरिका की कमान रिपब्लिकन पार्टी के जॉर्ज बुश सीनियर के हाथों में थी. उसी दौरान सोवियत संघ टूट चुका था और रूस एक अलग देश के रूप में अपनी नई शुरुआत कर रहा था. तब रूस के राष्ट्र्र पति बोरिस येल्तएसिन थे. वहीं एक तीसरी तस्वीर थी भारत की. भारत तब आर्थिक सुधारों के दौर गुजर रहा था. जनवरी 1991 में भारत ने रूस की अंतरिक्ष संस्थाष ग्लारवकॉसमॉस के साथ 235 करोड़ रुपये की एक डील साइन की थी. इस डील के मुताबिक भारत को सात क्रायोजेनिक इंजन वहां से मिलते. इसके अलावा ट्रांसफर ऑफ टेक्नोमलॉजी पर भी डील हो गई थी.

इस तरह बाइडन की वजह से अमेरिका ने लगा दिया था अड़ंगा

जब भारत रूस से डील कर रहा था, तभी फ्रांस ने भी यह इंजन ऑफर किया, लेकिन यह करीब 1000 करोड़ रुपये का था औऱ रूस से महंगा था. ऐसे में भारत ने उसे ठुकरा दिया था. इस डील पर अमेरिका में काफी राजनीति की गई और इसके अगुवा थे जो बाइडन. क्योंकि उस वक्त रूस पश्चिमी देशों पर ज्यादा निर्भर था, ऐसे में अमेरिका ने क्रायोजेनिक इंजन टेक्नो्लॉजी की बिक्री का विरोध किया. अमेरिका का कहना था कि इस डील से सन् 1987 के मिसाइल टेक्नोकलॉजी कंट्रोल रिजाइम (MTCR) का उल्लंिघन होगा. हालांकि एक्सपर्ट ने इससे इनकार किया था. उनका कहना था कि क्रायोजेनिक इंजन अंतरिक्ष के रॉकेट के लिए हैं, बैलेस्टिक मिसाइल के लिए इन्हें यूज नहीं किया जाना है. काफी जद्दोजहद के बाद भी अंत में बाइडन की वजह से अमेरिका ने रूस के सामने ऐसी शर्तें रख दीं कि उसे भारत के साथ डील संशोधित करनी पड़ी. उसने भारत को 7 इंजन देने के लिए तो हामी भरी, लेकिन टेक्नोंलॉजी ट्रांसफर से इनकार कर दिया. ऐसे में भारत भी इस डील से पीछे हट गया और खुद का क्रायोजेनिक इंजन विकसित करने का फैसला किया. 2014 में भारत ने ऐसा कर भी दिखाया.

रूस से डील पर तब बाइडन ने क्या कहा था

14 मई 1992 को लॉस एंजिल्स टाइम्स2 ने छपे एक लेख में, 'बाइडन ने कहा था कि भारत को क्रायोजेनिक इंजन की बिक्री खतरनाक हो सकती है. मुझे इस बात पर पूरा विश्वारस है कि रूस के नेताओं को थोड़ी अक्ल. आएगी और वे अपनी आर्थिक मदद खोने के खतरे को समझकर इस डील से बचने की कोशिशें करेंगे.' बाइडेन का कहना था कि यह कोई छोटी डील नहीं है बल्कि खतरे से भरी हुई है. सिर्फ इतना ही नहीं अमेरिका से भारत की अंतरिक्ष संस्थाै इसरो और ग्लाहवकॉसमॉस को भी बैन कर दिया था.


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