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अमेरिका का मैन्युफैक्चरिंग उद्योग डॉलर की मजबूती से आया मुसीबत में

Admin Delhi 1
13 Oct 2022 12:00 PM GMT
अमेरिका का मैन्युफैक्चरिंग उद्योग डॉलर की मजबूती से आया मुसीबत में
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न्यूयोर्क: डॉलर का चढ़ता भाव अब तक बाकी दुनिया के लिए मुसीबत बना है। लेकिन अब ऐसे संकेत हैं कि इसका अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ सकता है। डॉलर की महंगाई से अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के फिर से खड़ा होने की संभावनाओं पर सवाल उठ रहे हैं। अमेरिकी मुद्रा की मजबूती की वजह से जहां अमेरिकी निर्यातकों को नुकसान होने लगा है, वहीं विदेशी उत्पादकों का लाभ बढ़ रहा है। अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में उत्पादित वस्तुएं विदेशी उपभोक्ताओं को महंगी दरों पर मिल रही हैं। उधर विभिन्न देशों की मुद्रा का भाव गिरने के कारण विदेशों में स्थित अमेरिकी कारखानों की कमाई डॉलर के अर्थ में घट गई है। बीते महीनों के दौरान अमेरिकी मुद्रा ना सिर्फ विकासशील देशों की मुद्राओं की तुलना में महंगी हुई है, बल्कि यूरो, जापान के येन और ब्रिटिश पाउंड भी इसकी तुलना में काफी सस्ते हो गए हैं।

इस रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी कंपनियां के तिमाही नतीजों की रिपोर्ट इस महीने के आखिर में आनी शुरू होगी। विशेषज्ञों के मुताबिक इन रिपोर्टों से यह सामने आएगा कि अमेरिका के औद्योगिक उत्पादकों की आमदनी में सेंध लगी है। कंपनियों के प्रदर्शन का आकलन करने वाली एजेंसी आरबीसी कैपिटल मार्केट्स ने भविष्यवाणी की है कि मुद्रा के भाव में बदलाव के कारण कंपनी समूह 3-एम को. की आमदनी में 5.1 फीसदी की औसत गिरावट आएगी। इसी तरह हीटिंग और एयर कंडीशनर उत्पादकों की आमदनी 3.4 फीसदी और जेनरल इलेक्ट्रिक कंपनी की आमदनी दो फीसदी घटेगी। उधर डॉलर के महंगा होने के कारण विदेशी कंपनियों को अमेरिकी बाजार में लाभ हो रहा है। इस वजह से उनके उत्पाद यहां सस्ते हो रहे हैं। ऐसा उस मौके पर हो रहा है, जब अमेरिकी कंपनियां अमेरिका के अंदर अपना उत्पादन बढ़ाने की नीति पर चल रही हैं। बाल्टीमोर स्थित कंपनी मर्लिन स्टील वायर प्रोडक्ट्स एलएलसी के अध्यक्ष ड्रियू ग्रीनब्लाट ने वॉल स्ट्रीट जर्नल से कहा- ऐसा लगता है कि हमारी प्रतिस्पर्धी कंपनियों की बिक्री में 10 से 20 फीसदी तक की बढ़ोतरी होगी।

इस अखबार के मुताबिक कोरोना महामारी के दौरान सप्लाई चेन टूटने और समुद्र मार्ग से आयात की लागत बढ़ने के कारण अमेरिकी कंपनियों ने देश के अंदर उत्पादन की नीति बनानी शुरू की। देश में सेमीकंडक्टर, ऑटो पार्ट्स, एलुमिनियम कैन और अन्य वस्तुओं के उत्पादन की नई फैक्टरियां लगाई गई हैं। इससे उम्मीद जोड़ी गई कि देश में रोजगार के हजारों अवसर पैदा होंगे और अमेरिकी उपभोक्ताओं को देश में उत्पादित सस्ती सामग्रियां मिल सकेंगी। लेकिन अब इन कंपनियों के सामने डॉलर की असामान्य महंगाई की समस्या आ खड़ी हुई है। अमेरिकी कंपनियों की एक और समस्या यूरोप में बढ़ता जा रहा आर्थिक संकट है। यूरोप में उपभोग घटने की वजह से मांग घटी है। इस बीच वहां अमेरिकी आयात पहले से काफी महंगा भी हो गया है। इस वजह से अमेरिकी कंपनियों का बाजार वहां सिकुड़ रहा है। इस वर्ष की दूसरी तिमाही में घरेलू उपभोक्ता सामग्री निर्माता अमेरिकी कंपनी व्हर्लपूल की यूरोप, पश्चिम एशिया और अफ्रीका में कुल बिक्री में 19 फीसदी की गिरावट आई। ऐसी ही खबर कई और कंपनियों के बारे में आई है।

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