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US: जो बाइडेन और हैरिस की जीत, जानें भारत-अमेरिका के रिश्तों में कैसा पड़ेगा असर

Gulabi
8 Nov 2020 12:07 PM GMT
US: जो बाइडेन और हैरिस की जीत, जानें भारत-अमेरिका के रिश्तों में कैसा पड़ेगा असर
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सत्ता में परिवर्तन के बावजूद ये सतत जारी रहने वाली प्रक्रिया है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अमेरिका में राष्ट्रपति डेमोक्रेट रहे हों या रिपब्लिकन, भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंधों के विकास पर इसका कोई असर नहीं पड़ता. सत्ता में परिवर्तन के बावजूद ये सतत जारी रहने वाली प्रक्रिया है. विदेश नीति के मोर्चे पर ये सबसे अहम रिश्ता है जिसका आधार रणनीतिक साझेदारी है. यानी ये साधारण 'गिव एंड टेक' फॉर्मूले से कहीं ऊपर है.

जो बाइडेन-कमला हैरिस की जोड़ी की जीत के साथ भारत-अमेरिका रिश्तों में कई मोर्चों पर निरंतरता जारी रहना निश्चित है. बराक ओबामा प्रशासन में उपराष्ट्रपति रहते हुए बाइडेन अमेरिका की दक्षिण एशिया रणनीति में अहम रोल निभा चुके हैं.

सकारात्मक नोट पर शुरुआत करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाइडेन-हैरिस की "शानदार" जीत पर बधाई के ट्वीट किए.

बाइडेन के लिए उन्होंने लिखा- बधाई, आपकी शानदार जीत पर! उपराष्ट्रपति रहते आपका भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने के लिए दिया योगदान अहम और मूल्यवान है. मैं आपके साथ एक बार फिर घनिष्ठता के साथ काम करने के लिए आगे देख रहा हूं जिससे भारत-अमेरिका संबंधों को महान ऊंचाई तक ले जाया जा सके.

कमला हैरिस के लिए बधाई वाले ट्वीट में पीएम मोदी ने कहा-

हार्दिक बधाई! आपकी सफलता पथप्रवर्तक है, अत्यंत गौरव का विषय है ना आपकी चिट्टीस के लिए बल्कि सभी भारतीय-अमेरिकियों के लिए. मुझे विश्वास है कि आपके समर्थन और नेतृत्व से जीवंत भारत-अमेरिका संबंध और भी मजबूत बनेंगे.

भारतीय-अमेरिका पॉलिसी स्ट्डीज में वाधवानी चेयर, रिचर्ड रोसो ने इंडिया टुडे से कहा, "बाइडेन प्रशासन संभवतः रक्षा और आतंकवाद विरोधी क्षेत्रों में सकारात्मक गति बनाए रखेगा. व्यापार में खिंचाव का कारण बना रहेगा. तीन क्षेत्रों में जहां मुझे सबसे बड़ा बदलाव दिखाई देता है वो हैं- स्किल्ड इमिग्रेशन पर कम दबाव; जलवायु परिवर्तन पर नए सिरे से सहयोग."

भारत-अमेरिकी नीति निरंतरता

दोनों पक्ष विभिन्न मोर्चों पर, विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक मोर्चे पर निरंतरता और मजबूती होते हुए देखेंगे. ओबामा प्रशासन के दौरान 'एशिया पैसिफिक' पर एक विज़न डॉक्यूमेंट के रूप में एक पहल ने आकार लिया, जो कि इस क्षेत्र में चीनी चुनौतियों का सामना करने के लिए है.

वास्तव में, 2015 के मोदी-ओबामा के 'एशिया-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र के लिए संयुक्त रणनीतिक विजन' नामक ओबामा-बैठक के बाद एक अलग दस्तावेज जारी किया गया था जो विशेष रूप से 'दक्षिण चीन सागर' पर केंद्रित था. जबकि नामकरण "एशिया-प्रशांत" से बदल कर "भारत-प्रशांत" में बदल गया, लेकिन मकसद समान है.

वुडरो विल्सन सेंटर के सीनियर एसोसिएट माइकल कुगेलमैन ने कहा, "भारत को बिडेन की जीत से प्रसन्न होना चाहिए. वह भारत के लंबे समय से दोस्त हैं. जो उसी मोमेंटम पर जारी रहेंगे, जो अमेरिका-भारत संबंध ट्रम्प के वर्षों के दौरान देखा गया. बाइडेन सुरक्षा साझेदारी को मजबूत करेंगे, साथ ही अधिक क्षेत्रों में संबंधों के विस्तार का लक्ष्य रखेंगे."

कुगेलमैन के मुताबिक इसका मतलब यह भी नहीं कि बाइडेन के तहत अमेरिका-भारत संबंधों में सब गुलाबी-गुलाबी ही होगा. कुगेलमैन ने कहा, "बाइडेन प्रशासन की संभवत: अधिकारों के मुद्दों पर भारत की आलोचना की इच्छा, रूस के मुद्दे पर अधिक कड़ा रुख, चीन के साथ कुछ समय के लिए मामूली सहयोग की संभावना जबकि भारत-चीन तनाव उफान की पिच पर हैं, यह सभी आने वाली चुनौतियों को हाइलाइट करता है."

हालांकि बाइडेन, चीन के मोर्चे पर ट्रम्प की तरह आक्रामक नहीं हो सकते हैं, लेकिन बीजिंग को लेकर रुख पर इतना बड़ा बदलाव हो कि वो पॉलिसी को ही बदल दे, ये शायद ही वॉशिंगटन के पक्ष में होगा. इसलिए चीन पर अमेरिका का सख्त रुख जारी रहेगा.

रीसेट और बदलाव

व्यापार सौदों के लिए जो बातचीत चल रही थी, उस पर फिर से काम होगा, ऐसे में यह प्रक्रिया लम्बी खिच सकती हैं. लेकिन, भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संबंधों को रीसेट करने के लिए जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रीफ्रेंसेस (जीएसपी) की स्थिति को बहाल करना होगा. इसके तहत अमेरिका को 5.6 अरब डॉलर के वार्षिक निर्यात के लिए ड्यूटी फ्री एंट्री की इजाजत है.

ट्रम्प प्रशासन ने पारस्परिक बाजार पहुंच की कमी का हवाला देते हुए जीएसपी को रद्द कर दिया था. जब तक इसे हटाया नहीं गया, भारत में चमड़े, आभूषण और इंजीनियरिंग जैसे श्रम प्रधान क्षेत्रों में 2,167 उत्पादों पर शून्य या कम टैरिफ के जरिए तरजीह वाले बर्ताव का फायदा लिया गया.

जब दोनों पक्ष कोरोनो वायरस महामारी के मद्देनजर 'सप्लाई चेन लचीलेपन' की जरूरत को मान्यता देंगे तो व्यापक व्यापार समझौते पर भी विचार किया जाएगा.

रणनीतिक मोर्चे पर, भारत के लिए कुछ राहत होगी जब बाइडेन प्रशासन 2018 में डोनाल्ड ट्रम्प के छोड़े गए ईरान परमाणु समझौते पर फिर से गौर करेगा. 2015 की संयुक्त व्यापक योजना (जेसीपीओए) में फिर से प्रवेश करना बाइडेन प्रशासन की विदेश नीति की प्राथमिकता में से एक है. इससे पाकिस्तान को दरकिनार कर भारत को चाबहार परियोजनाओं पर बढ़ने और अफगानिस्तान के लिए रणनीतिक मार्गों को सुरक्षित करने की अनुमति मिलेगी.

दुनिया भर के नेता 'जलवायु न्याय' की बात कर रहे हैं. पर्यावरण की चुनौतियों के मामले में विकासशील देशों को लेवल प्लेइंग फील्ड देने के लिए अमेरिका की अहम भूमिका होगी. 5 नवंबर को अमेरिका आधिकारिक तौर पर 'पेरिस समझौते' से बाहर आ गया. इस संबंध में डोनाल्ड ट्रम्प ने तीन साल पहले एलान किया था.

इस पर बाइडेन ने ट्वीट में कहा कि उनका प्रशासन ऑफिस संभालने के बाद 77 दिन में दोबारा इस समझौते से जुड़ जाएगा.

क्या हैं चिंताएं?

जैसा कि अधिकांश विश्लेषकों का मानना है कि सकारात्मक गति होगी लेकिन मोदी और बिडेन-हैरिस प्रशासन के बीच खिचांव वाला क्षेत्र मानवाधिकार से जुड़ा फ्रंट रहेगा.

कमला हैरिस और उनके 'समोसा कॉकस' (समूह का गठन करने वाले पांच भारतीय-अमेरिकी कांग्रेसपर्सन्स), विशेष रूप से कांग्रेसी महिला प्रमिला जयपाल, ने भारत के जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने, उसके बाद इंटरनेट पाबंदियों और राजनीतिक गिरफ्तारियों की आलोचना की है. इस वजह से खिंचाव इतना बढ़ गया था कि विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने पिछले साल वॉशिंगटन डीसी की यात्रा के दौरान जयपाल से मिलने से इनकार कर दिया था.

भारत में गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को फंडिंग के संबंध में भारत के नए नियमों पर नया बाइडेन-हैरिस प्रशासन किस तरह की प्रतिक्रिया देगा, ये भी एक चिंता का विषय है.

विशेषज्ञों के मुताबिक चिंता के क्षेत्र हैं लेकिन इनमें से अधिकतर मैनेज किए जा सकते हैं. अभी के लिए, नया प्रशासन कोविड-19 महामारी से निपटने समेत घरेलू मुद्दों को ठीक करने के लिए सबसे पहले ध्यान देगा.

बाइडेन फॉर प्रेसिडेंट कैम्पेन की नेशनल फाइनेंस कमेटी के सदस्य अजय भूटोरिया कहते हैं, "यह अमेरिका के लिए एकजुट होने और मरहम लगाने का समय है. यह कठोर बयानबाजी और गुस्से को पीछे छोड़ कर अपने देश का राष्ट्रपति निर्वाचित जो बाइडेन और उपराष्ट्रपति निर्वाचित कमला हैरिस के नेतृत्व में पुनर्निर्माण के लिए साथ आने का समय है. अमेरिका के सर्वश्रेष्ठ दिन आगे हैं."

इस बीच, भारतीय-अमेरिकी चिकित्सक डॉ विवेक मूर्ति को कोरोनोवायरस टास्क फोर्स की सह-अध्यक्षता मिलने की उम्मीद है. बाइडेन सोमवार को इस टास्क फोर्स का एलान कर सकते हैं. बिडेन सोमवार को घोषित करने जा रहे हैं।

मूल रूप से कर्नाटक के रहने वाले 43 वर्षीय मूर्ति को 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अमेरिका का 19वां सर्जन जनरल नियुक्त किया था.

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