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US Election 2020: ईरान और रूस की पैठ से परेशान अमेरिकी FBI, लगाया ये बड़ा आरोप

Deepa Sahu
22 Oct 2020 2:15 PM GMT
US Election 2020: ईरान और रूस की पैठ से परेशान अमेरिकी FBI, लगाया ये बड़ा आरोप
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अमेरिका को जिसका अंदेशा था वही हुआ।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | अमेरिका को जिसका अंदेशा था वही हुआ। अब ये बात अमेरिका की बहुचर्चित खुफिया एजेंसी फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (एफबीआई) ने भी कह दी है कि ईरान और रूस ने अमेरिकी मतदाताओं के रजिस्ट्रेशन का डेटा हासिल कर लिया है। एफबीआई के इस बयान को इस बात का ठोस सबूत माना जा रहा है कि ये दोनों देश अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। मतदान होने में अब 12 दिन रह गए हैं। संकेत यह है कि चुनाव से पहले से आखिरी पखवाड़े में इन दोनों देशों ने अपनी कोशिशें तेज कर दी हैं। अमेरिका में तीन नवंबर को मतदाता अपने मताधिकार को प्रयोग करेंगे।

गौरतलब है कि एफबीआई के निदेशक क्रिस्टोफर एव्रे ने जब ये जानकारी दी, तो उनके साथ राष्ट्रीय खुफिया निदेशक जॉन रैटक्लिफ भी मौजूद थे। ये जानकारी एफबीआई के मुख्यालय में आधिकारिक तौर पर दी गई। ये मीडिया ब्रीफिंग सामान्य प्रेस कांफ्रेंस से अलग थी। दोनों अधिकारियों ने कहा कि अभी इस बात के कोई संकेत नहीं मिले हैं कि रूस और ईरान ने ऐसी क्षमता हासिल कर ली है जिससे चुनाव परिणाम की तालिकाओं में वे हेरफेर कर सकें। ऐसे संकेत भी नहीं हैं कि उन्होंने रजिस्टर्ड मतदाताओं की सूची में कोई फेरबदल किया हो। इसके बावजूद उनकी कोशिशें चिंताजनक हैं।

रैटक्लिफ ने कहा कि जो डेटा उन दोनों देशों ने हासिल किए हैं, उनका इस्तेमाल मतदाताओं को गलत या दुर्भावनापूर्ण सूचनाएं भेजने के लिए किया जा सकता है। उससे उनमें भ्रम पैदा हो सकते हैं और अव्यवस्था पैदा हो सकती है। इस वजह से अमेरिकी लोकतंत्र में जनता का भरोसा घट सकता है और शायद यही उन दोनों देशों का लक्ष्य है। खबरों के मुताबिक कुछ ऐसे वीडियो वायरल करने की कोशिश हुई है, जिनसे ये संकेत मिलता है कि लोग फर्जी मतदान कर रहे हैं। ये वीडियो संभवतया ईरान प्रचारतंत्र की तरफ से बांटे गए हैं। इसके पहले ट्रंप प्रशासन भी यह कह चुका है कि ईरानी स्रोतों से मतदाताओं को भयभीत करने वाले ई-मेल भेजे जा रहे हैं।

अब तक ऐसी बातें आरोप-प्रत्यारोप के दायरे में थीं। लेकिन अब जबकि एफबीआई और नेशनल इंटेलिजेंस की तरफ से आधिकारिक रूप से इसकी पुष्टि की गई है, तो आशंका है कि अमेरिकी चुनाव तंत्र की मजबूती को लेकर सवाल और गहरे हो जाएंगे। इससे यह संकेत मिलता है कि 2016 के चुनाव को रूस ने जिस तरह प्रभावित करने की कोशिश की, उससे अमेरिका विरोधी दूसरे देशों ने भी सबक लिया है और ऐसा करने की क्षमता विकसित कर ली है। यह विडंबना ही है कि कुछ वर्ष पहले तक अलग-अलग देशों के चुनावों को प्रभावित करने के आरोप अमेरिका और उसके साथी पश्चिमी देशों पर लगते थे। अब ऐसा लगता है कि खुद ये देश ऐसी गतिविधियों के निशाने पर आ गए हैं।

ताजा जानकारियों के सामने आने से तीन नवंबर को होने वाले चुनाव को लेकर अंदेशा और गहरा गया है। कोरोना महामारी के कारण इस साल बड़ी संख्या में मतदाता मेल मतपत्र (डाक बैलेट) से मतदान कर रहे हैं। राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप लगातार इन मतों की वैधता पर सवाल खड़े कर रहे हैं। उन्होंने अपने समर्थकों से बूथों पर जाकर वोट डालने की अपील की है। जानकारों के मुताबिक ताजा खुलासों के बाद उन्हें मतदान की पवित्रता पर सवाल खड़े करने के नए तर्क मिल जाएंगे। इसका परिणाम चुनाव के बाद अफरा-तफरी के रूप में सामने आ सकता है, खासकर उस हाल में अगर ट्रंप चुनाव हार जाते हैं।

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