सम्पादकीय

यूक्रेन संकट : किसका युद्ध और कीमत कौन चुका रहा है, प्रतिबंधों के बाद भी फायदे में रूस, दुनिया में इस तरह बढ़ रही महंगाई

Neha Dani
31 May 2022 1:43 AM GMT
यूक्रेन संकट : किसका युद्ध और कीमत कौन चुका रहा है, प्रतिबंधों के बाद भी फायदे में रूस, दुनिया में इस तरह बढ़ रही महंगाई
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विश्व बैंक/आईएमएफ के लिए धन में वृद्धि की जानी चाहिए।

इसी हफ्ते यूक्रेन पर रूसी हमले को सौ दिन पूरे हो जाएंगे। व्यापक रूप से पश्चिमी युद्ध या साम्राज्यवादी सर्वोच्चता की लड़ाई माना जाने वाला युद्ध विभिन्न देशों और उनके बजट को नुकसान पहुंचा रहा है। युद्ध की शुरुआत में यह माना जा रहा था कि रूस कीव पर चढ़ाई करेगा और व्लादिमीर पुतिन कुछ ही दिनों में जीत की घोषणा कर देंगे। लेकिन यह युद्ध उम्मीदों से परे चला गया है और ऐसी कोई संभावना नहीं है कि अब कोई जीतेगा या विजेता होगा।

एक बात स्पष्ट है कि इस युद्ध की कीमत अरबों लोग चुका रहे हैं। युद्ध कब खत्म होगा और इसे कैसे खत्म किया जा सकता है, इसे लेकर चर्चा शुरू हो गई है। पिछले हफ्ते अमेरिका के पूर्व विदेशमंत्री 99 वर्षीय हेनरी किसिंजर ने डावोस में यह सुझाव देकर चौंका दिया कि यूक्रेन को अपना क्षेत्र रूस को सौंप देना चाहिए। अपने तर्क को मजबूत करने के लिए उन्होंने एक डरावनी तस्वीर पेश की कि अगर रूस और पुतिन को हाशिये पर धकेल दिया जाए, तो क्या हो सकता है।
किसिंजर के लिए समझौता कोई नई अवधारणा नहीं है। यह किसिंजर सिद्धांत ही था, जिसने पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह याह्या खान को माओत्से तुंग और चीन से मित्रता करने के लिए प्रेरित किया। किसिंजर के ही नेतृत्व में सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका ने एकाधिकारवादी चीन से हाथ मिलाने के लिए पूर्वी पाकिस्तान में हुए नरसंहार को लेकर आंखें मूंद लीं।
तथ्य यह है कि चीन अमेरिका के लिए अगला बड़ा खतरा है, जो उसके कर्मों का फल है। युद्ध की कीमत होती है और फिर वह दुनिया पर थोपी जाती है। यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की ने कहा है कि यूक्रेन के पुनर्निर्माण की लागत 600 अरब डॉलर से ज्यादा आएगी। यह आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि रूस अपने सैन्य अभियानों पर प्रतिदिन लगभग 90 करोड़ डॉलर खर्च कर रहा है।
सौ दिनों में रूस अपने सैन्य अभियानों पर 100 अरब डॉलर खर्च करेगा, जो 40 देशों की संयुक्त जीडीपी से अधिक या केन्या की जीडीपी के बराबर होगा। यूक्रेन अपनी रक्षा पर कितना खर्च कर रहा है, उसकी गणना कठिन है। वर्ष 2021 में यूक्रेन का रक्षा बजट 5.4 अरब डॉलर था। पिछले पखवाड़े अमेरिका ने यूक्रेन के लिए अपने सहायता पैकेज में 40 अरब डॉलर और जोड़ा, जिसमें सैन्य सहायता के रूप में 20 अरब डॉलर शामिल हैं, जो अफगानिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद के बराबर है।
युद्ध ने आपूर्ति को बाधित कर दिया है, मूल्य स्थिरता को नष्ट कर दिया है और विभिन्न देशों के सभी पूर्वानुमानों और बैलेंस शीट को बदल दिया है। किसिंजर के सुझाव ने एक सवाल पर ध्यान केंद्रित किया है, जो विभिन्न राष्ट्र पूछ रहे हैं। उन्हें इस युद्ध का खामियाजा क्यों भुगतना पड़ता है, जो पश्चिमी दुनिया की कई भूलों का परिणाम है। यह युद्ध किसका है और कौन इसकी कीमत चुका रहा है?
हर देश की मुद्रास्फीति रिकॉर्ड उच्च स्तर पर है। भारत में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति 7.9 प्रतिशत तक पहुंच गई, क्योंकि हर खाद्यान्न, खाद्य तेल, सब्जी की कीमतें बढ़ी हैं। संयुक्त राष्ट्र ने घोषणा की है कि दुनिया खाद्य संकट के कगार पर है। पिछले दो हफ्तों में सरकार को ईंधन पर शुल्क में कटौती करनी पड़ी है और कोयला और खाद्य तेल पर से शुल्क हटा दिया गया है।
घरेलू उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए उसे गेहूं और चीनी पर निर्यात प्रतिबंध लगाना पड़ा है। यूक्रेन युद्ध ने ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा, दोनों का संकट पैदा कर दिया है। कच्चे तेल की कीमत 115 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है। जनता के गुस्से और राजनीतिक आक्रोश को देखते हुए विभिन्न देशों ने राहत प्रदान करने के लिए अपने करों में बदलाव किया है-भारत ने कीमतों में वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिए पेट्रोल-डीजल पर शुल्क में कटौती की और ब्रिटेन में सरकार प्रति परिवार 400 पाउंड की ऊर्जा बिल की छूट दे रही है।
विडंबना देखिए कि जिस रूस पर प्रतिबंध लगाया गया है, वह सबसे ज्यादा फायदे में है। प्रतिबंधों के चलते आपूर्ति बाधित होती है और कीमतें बढ़ जाती हैं। अनुमान है कि रूस वर्तमान में सिर्फ यूरोप को ऊर्जा निर्यात करके प्रति दिन 70 करोड़ डॉलर से अधिक कमा रहा है और 2022 में ऊर्जा निर्यात के माध्यम से 320 अरब डॉलर कमाएगा- जो पिछले वर्ष के मुकाबले 30 फीसदी ज्यादा होगा।
उच्च ऊर्जा कीमतों का अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ता है-सीधे उपभोक्ताओं पर और वस्तुओं के उत्पादन और सेवाओं पर। गैस/कोयला/कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से उर्वरक की लागत बढ़ जाती है। उर्वरक की अनुपलब्धता से खाद्यान्न का उत्पादन प्रभावित होता है और कीमतें बढ़ती हैं। गेहूं की कीमत पहले ही 60 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुकी है।
हर वित्तमंत्री के समक्ष महंगाई, कम विकास और बेरोजगारी का खतरा दिख रहा है। रिजर्व बैंक सहित विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए जूझ रहे हैं-उच्च ब्याज दरें खाद्य और ऊर्जा आपूर्ति में व्यवधान का इलाज नहीं हो सकतीं, वे केवल मांग को कम कर सकती हैं और इसके परिणामस्वरूप कम वृद्धि हो सकती है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने हर प्रमुख अर्थव्यवस्था के विकास अनुमानों को घटा दिया है और इसके कम आय वाले देशों के लिए खास मायने हैं। अमीर और उन्नत अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति और मंदी को लेकर बहस हो रही है, जबकि निम्न आय वाले देशों के सामने अस्तित्व का संकट है। दुनिया के कुछ हिस्सों में पहले से ही यह भावना बढ़ रही है कि यह 'उनका' युद्ध नहीं है।
स्पष्ट रूप से अगर चीजें बिगड़ती हैं, तो पश्चिमी गठबंधन के प्रतिबंधों और कार्यों का समर्थन धीरे-धीरे ही सही, लेकिन निश्चित रूप से खत्म हो जाएगा। विश्वास बहाली के उपाय मुफ्त अनाज की उपलब्धता में सुधार के लिए समन्वित प्रयास से शुरू होने चाहिए - 2.7 करोड़ टन से अधिक गेहूं युद्ध के कारण यूक्रेन के बंदरगाहों में फंसा है।
पश्चिमी गठबंधन को विश्व बाजारों के लिए स्टॉक निकालने के लिए बहुपक्षीय प्रयास करना चाहिए। तेल और गैस का सबसे बड़ा उत्पादक अमेरिका इनकी कीमतों को कम करने के लिए उत्पादन बढ़ाने के प्रयास का नेतृत्व कर सकता है। गरीब राष्ट्रों को भी संरचनात्मक सहायता की आवश्यकता है, और विश्व बैंक/आईएमएफ के लिए धन में वृद्धि की जानी चाहिए।

सोर्स: अमर उजाला

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