घाना में पहली बार मारबर्ग वायरस संक्रमण के स्थानीय स्तर पर फैलने का मामला सामने आया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसकी पुष्टि करते हुए इसे घाना में मारबर्ग वायरस का पहला मामला बताया है। इस बीच घाना स्वास्थ्य सेवा (जीएचएस) के मुताबिक, दोनों मरीजों को अलग-अलग समय पर देश के दक्षिणी इलाके आशांति के एक ही अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें बचाया नहीं जा सका और डायरिया, बुखार और उल्टी जैसे लक्षणों की वजह से उनकी पहले ही मौत हो चुकी है। दोनों मरीज पुरुष थे। एक मरीज की उम्र 24 साल और एक मरीज की उम्र 51 साल थी। उनके संपर्क में आए 98 लोगों को क्वारंटीन किया गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि घाना दूसरा ऐसा पश्चिम अफ्रीकी देश है जहां मारबर्ग वायरस का कोई मामला पाया गया है। इससे पहले पिछले साल सितंबर में गिनी में इस वायरस का एक मामला सामने आया था। अफ्रीका के कुछ और देशों में भी इस वायरस से जुड़े केस दर्ज हुए हैं। इन देशों में अंगोला, कॉन्गो, केन्या, दक्षिण अफ्रीका और युगांडा जैसे देश शामिल हैं। इस वायरस का पहला मामला 1967 में सामने आया था।
इबोला जैसा खतरनाक है वायरस
रिपोर्ट्स के मुताबिक, मारबर्ग वायरस कुछ समय पहले अफ्रीका में तबाही मचाने वाले इबोला वायरस जितना ही खतरनाक है। इससे बुखार के दौरान शरीर से खून निकलने लगता है। ये वायरस भी जानवरों से इंसानों में आया है। फिलहाल मारबर्ग के इलाज के लिए कोई भी वैक्सीन उपलब्ध नहीं है।
कोरोनावायरस की तरह ये वायरस भी चमगादड़ से फैला है। वायरस पहले शरीर की तरल कोशिकाओं में पहुंचता है और फिर पूरी त्वचा को अपनी चपेट में लेता है। इस वायरस की वजह से खून निकलने, बुखार और ऐसे दूसरे लक्षण नजर आते हैं। ये लक्षण बिल्कुल इबोला से मिलते-जुलते हैं। इबोला में भी मरीज को बहुत तेज बुखार, बेचैनी और सिरदर्द होता था। कई मरीजों में सात दिनों के अंदर खून बहने के लक्षण भी देखे गए थे। इबोला में भी मृत्यु दर 24 फीसदी से बढ़कर 88 फीसदी पर पहुंच गई थी।