इस डिजिटल युग में सोशल मीडिया पर किसी का अपमान करना, उसके बारे में झूठी और गलत खबरें फैलाना, उसे धमकी देना और परेशान करना काफी सामान्य बात हो चुकी है. लेकिन जापान ने इसके खिलाफ एक बहुत बड़ा कदम उठाया है.
जापान में अब एक ऐसा कानून आया है, जिसके तहत वहां कोई नागरिक अगर किसी व्यक्ति का सोशल मीडिया पर अपमान करता है, उसकी भावनाओं को ठेस पहुंचाता है या उसे ट्रोल करता है तो ऐसे व्यक्ति को एक साल जेल की सजा हो सकती है और उस पर एक लाख 71 हजार रुपये का भारी ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है.
जापान की सरकार को ये कानून इसलिए लाना पड़ा क्योंकि वहां पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया पर लोगों को अपमानित करने और ट्रोलिंग की घटनाएं बढ़ी हैं. और वर्ष 2020 में इसकी वजह से जापान की मशहूर टीवी स्टार हाना किमुरा ने आत्महत्या कर ली थी.
उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले सोशल मीडिया पर कुछ मैसेज सार्वजनिक किए थे, जिनमें उनके निजी जीवन को लेकर आपत्तिजनक बातें लिखी थीं और उन्हें बदनाम करने की धमकियां भी दी गई थीं, जिससे वो बुरी तरह डर गईं और बाद में उन्होंने आत्महत्या कर ली. इस मामले में तब जापान की पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया था. और जापान में तभी से सोशल मीडिया पर होने वाली ट्रोलिंग के खिलाफ कानून लाने की मांग की जा रही थी. ये मांग दो वर्षों के बाद पूरी हो गई है.
हालांकि यहां एक नोट करने वाली बात ये भी है कि अगर इसी तरह का कानून हमारे देश में आया होता तो शायद कुछ लोग इसका भी विरोध शुरू कर देते क्योंकि हमारे देश में अब पुरानी व्यवस्था को बदलना या नया कानून लाना बहुत मुश्किल हो गया है. लेकिन जापान में ऐसा नहीं है. जापान में इस कानून की तारीफ भी हो रही है. और इस कानून के फायदे और नुकसान पर लोगों के बीच बहस भी कराई जा रही है. ताकि इसमें और सुधार किए जा सकें.
जापान की सरकार ने तय किया है कि शुरुआत में ये कानून सिर्फ तीन वर्षों के लिए प्रभावी होगा. अगर इन तीन वर्षों में इस कानून के सकारात्मक नतीजे देखने को मिलते हैं तो ये कानून इसी तरह जारी रहेगा. लेकिन अगर इससे लोगों को तकलीफ होती है और इसका दुरुपयोग होता है तो इसे रद्द कर दिया जाएगा. दरअसल, इस कानून में तीन बड़ी खामियां बताई जा रही हैं.
पहली खामी ये कि सोशल मीडिया पर जो ट्रोलिंग होती है, उसके लिए ट्रोलर्स वेरिफाइड अकाउंट्स का इस्तेमाल नहीं करते. बल्कि इसकी जगह फेक अकाउंट्स का इस्तेमाल होता है. इसलिए बड़ा सवाल यही है कि पुलिस ट्रोलिंग करने वाले असली व्यक्ति तक कैसे पहुंचेगी? दूसरी ये कि कैसे तय होगा सोशल मीडिया पर किसी व्यक्ति का अपमान किया गया है या नहीं. यानी अभिव्यक्ति की आजादी और अपमान के बीच जो मामूली सा अंतर है, उसे सरकार और पुलिस तंत्र कैसे स्पष्ट करेगा. और तीसरा, लोगों को ये भी डर है कि जापान की सरकार इस कानून का इस्तेमाल अपने विरोधियों के खिलाफ कर सकती है.
इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए फिलहाल ये कानून जापान में सिर्फ तीन साल के लिए ही लागू किया गया है. सोशल मीडिया पर लोगों का अपमान करना आज कल काफी सामान्य हो चुका है. एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया में 37 प्रतिशत सोशल मीडिया यूजर्स ऐसे हैं, जिन्हें एक से ज्यादा बार ऑनलाइन धमकियां मिल चुकी हैं और उन्हें अपमानित किया गया है. इसके अलावा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम पर 43 प्रतिशत यूजर्स ऐसे हैं, जो साइबर क्राइम और ऑनलाइन इंसल्ट की शिकायत दर्ज करा चुके हैं.
इसलिए जापान में जो कानून आया है, वो एक अच्छी पहल है. लेकिन हमें लगता है कि ये कानून तब तक प्रभावी साबित नहीं हो सकता, जब तक बड़ी-बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां इसमें सहयोग नहीं करेंगी. इन कंपनियों को एक ऐसी व्यवस्था और सिस्टम तैयार करना होगा, जिसमें फेक अकाउंट्स की पहचान की जा सके और दोषियों तक पहुंचा जा सके. क्योंकि अभी ये काम करना बहुत मुश्किल साबित होता है.
इसे आप एक उदाहरण से भी समझ सकते हैं. पिछले साल नवम्बर में ट्विटर पर एक व्यक्ति ने क्रिकेटर विराट कोहली की बेटी से रेप करने की धमकी दी थी. जिसके बाद पुलिस ने धमकी देने वाले आरोपी को उसके आईपी एड्रेस के आधार पर गिरफ्तार कर लिया. लेकिन जैसे ही ये मामला कोर्ट पहुंचा तो इस आरोपी को अदालत से असानी से बेल मिल गई. क्योंकि अदालत का कहना था कि, सिर्फ आईपी एड्रेस के आधार पर किसी को गिरफ़्तार करना पर्याप्त नहीं है. और आरोपी के खिलाफ पुलिस के पास और सबूत होने चाहिए. और ये तभी होगा, जब सोशल मीडिया कंपनियां सहयोग करेंगी.