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प्रिपयट में रहने वाले करीब 50 हजार लोगों को वहां से बाहर निकाला गया. लोग अपने घरों और सामानों को छोड़कर वहां से जान बचाकर भाग गए.
दुनिया ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी (Hiroshima and Nagasaki) शहरों पर परमाणु हथियारों का दंश देखा है. लेकिन परमाणु प्लांटों में हुई घटनाओं के चलते भी लाखों की संख्या में लोग प्रभावित हुए हैं. ऐसी ही एक घटना आज ही के दिन चेर्नोबिल न्यूक्लियर पावर प्लांट (Chernobyl Nuclear Power Plant) में हुई. 26 अप्रैल 1986 को यूक्रेन (Ukrain) के चर्नोबिल में स्थित न्यूक्लियर पावर प्लांट में हुई घटना के चलते करीब 1.25 लाख लोग मारे गए. इस हादसे का प्रभाव इतना अधिक हुआ कि अभी तक चर्नोबिल में दोबारा बसने की किसी ने हिम्मत तक नहीं दिखाई है. यहां रहने वाले जीव-जंतु पूरी तरह से खत्म हो चुके हैं.
पावर प्लांट में होने वाले एक नियमित परीक्षण को गलत तरीके से किया गया. इसके बाद प्लांट में हुए दो बड़े विस्फोटों ने रिएक्टर की 1,000 टन की छत को उड़ा दिया. इससे हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम (Nuclear Bomb) की तुलना में 400 गुना ज्यादा रेडिएशन निकला. प्लांट में हुए विस्फोट में दो कर्मचारियों की मौत हुई. वहीं आने वाले महीनों में रेडिएशन के चलते 28 और लोगों की मौत हो गई. दूसरी ओर, रेडिएशन की चपेट में आने की वजह से हजारों की संख्या में लोगों को कैंसर हो गया, जो उनकी मौत की वजह बना. चेर्नोबिल की घटना ने लोगों के बीच न्यूक्लिर प्लांट के खतरे को उजागर किया. साथ ही सोवियत संघ की सरकार की विफलता को भी उजागर किया.
चेर्नोबिल न्यूक्लियर पावर प्लांट
यूक्रेन की राजधानी कीव (Kiev) से करीब 80 मील उत्तर में चेर्नोबिल स्थित है. प्लांट में काम करने वाले मजदूरों और उनके परिवारों के रहने के लिए न्यूक्लियर प्लांट से कुछ मील की दूरी पर एक छोटे से शहर प्रिपयट (Pripyat) को बसाया गया था. चेर्नोबिल पावर प्लांट के निर्माण की शुरुआत 1977 में हुई थी. इस दौरान यूक्रेन सोवियत संघ (Soviet Union) का हिस्सा था. 1983 तक चार न्यूक्लियर रिएक्टर का काम पूरा हो चुका था. आने वाले सालों में दो और रिएक्टर को तैयार करने की योजना बनाई गई थी.
चेर्नोबिल में क्या हुआ था?
26 अप्रैल के तड़के 1:23 बजे प्लांट की बिजली गुल हो गई. इसके बाद दिन में इस बात की जांच के लिए एक नियमित अभ्यास किया गया कि क्या बिजली गुल होने से प्लांट के आपातकालीन वॉटर कूलिंग सिस्टम काम करेगा या नहीं. लेकिन कुछ सेंकेड के भीतर ही रिएक्टर नंबर चार में अनियंत्रित भाप के रूप में दबाव बनने लगा. भाप के इस दबाव के चलते रिएक्टर की छत उड़ गई. इससे रेडिएशन और रेडिएक्टिव मलबे का गुबार बाहर निकलने लगा. दो से तीन सेंकेड बाद ही एक दूसरा धमाका हुआ और अतिरिक्त ईंधन बहने लगा.
रिएक्टर नंबर तीन की छत पर आग लग गई और अब प्लांट में खतरा मंडराने लगा. ऐसी दुर्घटना के समय ऑटोमैटिक सेफ्टी सिस्टम को काम करना होता था, लेकिन परीक्षण की वजह से इसे बंद कर दिया गया था. घटना के तुरंत बाद ही दमकलकर्मी प्लांट में पहुंचे और विस्फोट के बाद लगी आग को बुझाने लगे. इस दौरान उन्होंने रेडिएशन से बचने वाले उपकरण भी नहीं पहने हुए थे. इस कारण रेडिएशन के चलते प्लांट में मरने वाले 28 लोगों में कई दमकलकर्मी भी शामिल थे.
चश्मदीदों ने बताया कि जो दमकलकर्मी आग बुझा रहे थे, उनका कहना था कि रेडिएशन उन्हें मेटल के स्वाद जैसा लग रहा था. साथ ही उन्हें चेहरे पर पिन और सुईयां चुभती हुई महसूस हो रही थी. सुबह पांच बजे तक रिएक्टर नंबर तीन को बंद कर दिया गया. 24 घंटे बाद रिएक्टर नंबर एक और दो भी बंद कर दिया गया. 26 अप्रैल की दोपहर को सोवियत सरकार ने आग बुझाने के लिए सैनिकों को तैनात किया. कुछ सैनिकों को हेलिकॉप्टरों से रिएक्टर की छत पर ही उतार दिया गया. साथ ही रिएक्टर को ठंडा करने के लिए ऊपर से पानी छिड़का गया. करीब दो सप्ताह बाद आग को पूरी तरह से बुझाया गया.
चेर्नोबिल हादसे में कितने लोगों की मौत हुई?
यूक्रेन की सरकार ने 1995 में बताया कि चेर्नोबिल रेडिएशन की वजह से करीब 1,25,000 लोगों की मौत हुई. संयुक्त राष्ट्र चर्नोबिल फोरम की 2005 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि दुर्घटना के बाद के महीनों में 50 से कम लोग मारे गए थे. वहीं, 9,000 लोग चेर्नोबिल के रेडिएशन के संपर्क में आने से हुए कैंसर की वजह से मारे गए. चेर्नोबिल आपदा से हुए स्वास्थ्य प्रभाव अस्पष्ट बना हुआ है. दूसरी ओर, प्रिपयट में रहने वाले करीब 50 हजार लोगों को वहां से बाहर निकाला गया. लोग अपने घरों और सामानों को छोड़कर वहां से जान बचाकर भाग गए.
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