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जो पैरिस समझौते को लागू करने के लिये दरकार, नियमों का पुलिन्दा है।
जलवायु परिवर्तन को लेकर शुरू होने वाले सम्मेलन काप-26 को लेकर हर तरफ चर्चा है। धरती को जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचाने के लिए जिस काप-26 की चर्चा की जा रही है उसके लिए संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटरेस बहुत अधिक उत्साहित दिखाई नहीं दे रहे हैं। यही वजह है कि इसके शुरू होने से पहले ही उन्हें इसकी सफलता पर भी संदेह होने लगा है। स्काटलैंड के ग्लासगो में ये सम्मेलन रविवार से शुरू होगा। पत्रकारों से हुई वार्ता में गुटरेस ने कहा कि उन्हें इसके नाकाम होने का खतरा दिखाई दे रहा है। उन्होंने इसको आखिरी मौका बताया है।
उन्होंने दुनिया को आगाह किया है कि देशों के राष्ट्रीय स्तर निर्धारित योगदान (एनडीसी), महत्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाइयों के लिये सरकारों के औपचारिक संकल्प, अब भी दुनिया को, 2.7 डिग्री सेल्सियस की वैश्विक तापमान वृद्धि के घातक रास्ते पर ले जा रहे हैं। उन्होंने इस बात की भी आशंका जताई कि हम भयानग जलवायु त्रासदी की तरफ बढ़ रहे हैं।
काप की शुरुआत की यदि बात करें तो ये 1992 में उस वक्त हुई थी जब धरती को बचाने के लिए पृथ्वी सम्मेलन किया गया था। इसमें क्लाइमेट चेंज पर यूएन फ्रेमवर्क कंवेंशन अपनाया गया था। इस संधि में जलवायु परिवर्तन के खतरे को कम करने के लिए ग्रीन हाउस गैसों का इस्तेमाल कम से कम करने की बात पर अब तक दुनिया के करीब 197 देशों ने अपनी सहमति जताई थी और इस मसौदे पर हस्ताक्षर भी कर चुके हैं। 1994 में लागू इस संधि के बाद यूएन की कोशिश इस मुद्दे पर दुनिया के सभी देशों को एकजुट लाने की रही है। इन्हीं सम्मेलनों को कांफ्रेंस आफ द पार्टीज कहा जाता है। आपको बता दें कि पिछले वर्ष कोविड-19 महामारी की वजह से ये सम्मेलन नहीं हो सका था। यही वजह है कि इस बार ये आयोजित किया जा रहा है और इसको काप 26 नाम दिया गया है। यदि पिछली बार भी ये सम्मेलन हुआ होता तो इस बार ये इसका 27वां सम्मेलन होता।
काप सम्मेलन में यूएनएफ सीसीसी (संधि) के कई बार विस्तान किए गए हैं। इसका मकसद ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की कानूनी मात्रा निर्धारित करना है। बता दें कि 1997 में क्योटो प्रोटोकोल के तहत कार्बन उत्सर्जन वाली गैसों के इस्तेमाल की मात्रा तय की गई थी। इसके लिए वर्ष 2012 तक का समय तय किया गया था। इसके बाद 2015 में इसी आधार पर पेरिस समझौता हुआ था। इसमें विश्व के सभी देशों को धरती के बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की बात कही गई थी। इस बार काप 26 के दौरान इसमें भाग लेने वाले देश पेरिस रूलबुक को भी अंतिम रूप देने की कोशिश करेंगे, जो पैरिस समझौते को लागू करने के लिये दरकार, नियमों का पुलिन्दा है।
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