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कोरोना वायरस को मात देने के बाद टीका लगवाने वालों को बूस्टर डोज की जरूरत नहीं

Subhi
20 July 2021 3:18 AM GMT
कोरोना वायरस को मात देने के बाद टीका लगवाने वालों को बूस्टर डोज की जरूरत नहीं
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कोरोना वायरस से बचने के लिए टीके की तीसरी डोज के लिए दुनियाभर में मंथन चल रहा है। नेचर जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में वैज्ञानिकों का कहना है |

कोरोना वायरस से बचने के लिए टीके की तीसरी डोज के लिए दुनियाभर में मंथन चल रहा है। नेचर जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले साल संक्रमण की चपेट में आने वाले लोगों की कोशिकाओं ने वायरस की मेमोरी को बोन मैरो में संरक्षित कर दिया है। संभव है कि दोबारा संक्रमण की चपेट में आने पर ये एंटीबॉडीज बनाने का काम शुरू कर देंगी। इससे व्यक्ति को संक्रमण के बाद गंभीर लक्षण से बचाव होता है, ऐसे मरीजों की मौत का भी खतरा बहुत कम होता है।

मरीजों के बोन मैरो में एंटीबॉडीज

वैज्ञानिकों ने कोरोना को मात देने वाले 77 मरीजों के रक्त में तीन महीने तक एंटीबॉडीज के परीक्षण के बाद ये दावा किया है। इसके बाद सात से आठ महीने बाद कोरोना को मात देने वाले 18 मरीजों के बोन मैरो के अध्ययन के बाद देखा कि उसके जरिये भी शरीर में समय-समय पर एंटीबॉडीज का स्तर बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों का दावा है कि बोन मैरो की कोशिकाओं ने वायरस को पहचान लिया तो वे दोबारा नुकसान नहीं कर पाएगा।

टीका मजबूत सुरक्षा कवच

कोरोना की चपेट में आने वाले लोगों में इम्युनिटी वर्षों तक रह सकती है। टीका लगने के बाद इसमें और सुधार होता है। संक्रमण को मात देने वाले जिन लोगों इम्युनिटी बनी और टीका भी लगवा लिया है उन्हें बूस्टर डोज की जरूरत नहीं है। जिन्हें टीका लगा है और संक्रमण की चपेट में नहीं आए हैं उन्हें बूस्टर डोज की जरूरत पड़ सकती है।

कोशिकाएं खुद को बनाती हैं मजबूत

बायोलॉजी रिसर्च से जुड़े जर्नल बायोरिव में प्रकाशित दूसरे अध्ययन में वैज्ञानिकों का कहना है कि संक्रमण की चपेट में आने के बाद शरीर में मौजूद मेमोरी, बी-सेल्स लगातार अपने आप को कम से कम 12 महीने तक मजबूत बनता है। इसके साथ ही शरीर भविष्य में वायरस से लड़ने के लिए तैयार खुद को करता है। दोबारा इस तरह के वायरस की चपेट में आने पर इम्युन सेल्स तुरंत सक्रिय हो जाती है।

कभी शून्य नहीं होती है एंटीबॉडीज

नेचर जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट की प्रमुख शोधकर्ता अली एलेबेडी का कहना है कि ये एक सामान्य प्रक्रिया है कि एंटीबॉडी का स्तर संक्रमण के बाद नीचे जाता है लेकिन वो कभी शून्य नहीं होता है। संक्रमण की चपेट में आने वाले लोगों में कोशिकाएं ग्यारह माह तक एंटीबॉडीज विकसित करती हैं। ये कोशिकाएं मनुष्य के साथ उसके पूरे जीवनकाल में रहती है और हमेशा एंटीबॉडीज बनाती रहती है।

इम्युनिटी लंबे समय तक रह सकती है

यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवेनिया के इम्युनोलॉजिस्ट प्रो. स्कॉट हेंसले का कहना है कि दोनों अध्ययनों से ये पुष्टि हुई है कि संक्रमण की चपेट में आने और टीका लगवाने से इम्युनिटी लंबे समय तक रहती है। हालांकि उनका ये भी कहना कि कोरोना वायरस सामान्य सर्दी का भी कारण है। ये हर समय अपने भीतर बदलाव भी करता है। ऐसे में कोरोना वायरस के किसी और रूप से संक्रमित होने की भी संभावना हो सकती है।

जिन्हें टीका नहीं उन्हें बूस्टर डोज

न्यूयॉर्क के रॉकफेलर यूनिवर्सिटी के इम्युनोलॉजिस्ट डॉ. माइकल नुसेनज्वेग के अनुसार प्राकृतिक कोरोना संक्रमण के बाद टीके की डोज शरीर की कोशिकाओं को अत्यधिक सक्रिय करती हैं। इससे टी और बी सेल्स वायरस के खिलाफ मजबूत सुरक्षा घेरा तैयार करती हैं। इसी का नतीजा है कि टीका लगवा चुके अधिकतर लोग जो संक्रमण की चपेट में आए उन्हें बहुत कम तकलीफ हुई। ये कहा जा सकता है कि जिन्हें संक्रमण नहीं हुआ है उन्हें बूस्टर डोज की जरूरत पड़ सकती है।


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