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अमेरिका व पश्चिमी देशों की बढ़ी चिंता
ब्रिक्स संगठन में दो देश शामिल होने की तैयारी में हैं। खास बात यह है कि ब्रिक्स में रूस और चीन प्रमुख देश हैं। भारत भी ब्रिक्स का सदस्य देश है। यूक्रेन युद्ध के दौरान ईरान और अर्जेंटीना के ब्रिक्स में शामिल होने के क्या मायने हैं। इसका पश्चिमी देशाें और अमेरिका पर क्या प्रभाव पड़ेगा। ईरान और अर्जेंटीना के इस फैसले से पश्चिमी देशों और अमेरिका की चिंता क्यों बढ़ गई है। इन तमाम सवालों पर क्या है विशेषज्ञों की राय। इसके अलावा यह भी जानेंगे कि ब्रिक्स क्या है।
1- विदेश मामलों के जानकार प्रो अभिषेक प्रताप सिंह ने कहा कि अमेरिका व पश्चिमी देशों के प्रभुत्व वाले जी-7 के सामानांतर रूस और चीन ब्रिक्स का भी विस्तार चाहते हैं। इस मामले में अमेरिका विरोधी ईरान ने ब्रिक्स की सदस्यता में दिलचस्पी दिखाई है। उन्होंने कहा कि दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्था में शामिल ब्रिक्स देशों के कुनबे में दो देश और शामिल होने जा रहे हैं। इसके बड़े मायने हैं। अगर दोनों देश ब्रिक्स में शामिल हो जाते हैं तो यह चीन और रूस की कूटनीतिक जीत होगी। चीन और ईरान के संबंध ठीक है, लेकिन उसका अमेरिका से छत्तीस का आंकड़ा है। ऐसे में ईरान का ब्रिक्स में शामिल होना राजनीतिक और सामरिक लिहाज से चीन के अनुकूल होगा। गौरतलब है कि ईरान और अर्जेंटीना ने ब्रिक्स की सदस्यता के लिए आवेदन किया है। इन दोनों देशों को सदस्यता मिलते ही ब्रिक्स परिवार में सात देश हो जाएंगे। रूस और चीन जरूर चाहेंगे कि ईरान और अर्जेंटीन ब्रिक्स का हिस्सा बने।
2- उन्होंने कहा कि रूस काफी लंबे समय से एशिया, दक्षिण अमेरिका और मध्य पूर्व के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने पर जोर दे रहा है। रूस ने हाल ही में यूक्रेन पर अपने आक्रमण पर यूरोप, अमेरिका और अन्य देशों के लगाए गए में लगाए प्रतिबंधों को झेलने के लिए अपनी कोशिशों को तेज कर दिया है। अगर ऐसा होता है जो यह रूस की कूटनीतिक जीत होगी। खासकर यूक्रेन युद्ध के दौरान जब वह अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है। रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा के मुताबिक अर्जेंटीना ने भी समूह में शामिल होने के लिए आवेदन किया है। अर्जेंटीना के राष्ट्रपति अल्बर्टो फर्नांडीज इस वक्त यूरोप में हैं। उन्होंने हाल ही में अर्जेंटीना के ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा फिर से जाहिर की थी।
14वां सम्मेलन वर्चुअल मोड में संपन्न
ब्रिक्स का 14वां सम्मेलन वर्चुअल मोड में संपन्न हो गया। यह सम्मेलन चीन में होना था, लेकिन भारत के विरोध के चलते बीजिंग के बजाए आनलाइन का विकल्प चुना गया। भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में सीमा पर दो सालों से बने हुए गतिरोध के चलते ये फैसला किया गया था। हालांकि, चीन ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय वार्ता शुरू करने और चीन में ब्रिक्स के आयोजन के लिए सहमति बनाने की कोशिश की थी। चीन के विदेश मंत्री वांग यी इस साल 24 मार्च को भारत यात्रा पर आए थे। चीन की कोशिश थी कि प्रधानमंत्री मोदी ब्रिक्स सम्मेलन के लिए बीजिंग आएं, लेकिन भारत इसके लिए तैयार नहीं हुआ। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत को इस ब्रिक्स सम्मेलन में क्या हासिल हुआ। क्वाड के साथ भारत ने ब्रिक्स में अपनी मौजूदगी का क्या संदेश दिया। आइए जानते हैं इस पर विशेषज्ञों की क्या राय है।
क्या है BRICS
1- ब्रिक्स दुनिया की पांच प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं का एक संगठन है। इस संगठन में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। ब्रिक्स के सदस्य अपने क्षेत्रीय मसलों पर अपने अहम प्रभाव के लिए जाने जाते हैं। ब्रिक्स शिखर सम्मलेन की अध्यक्षता हर साल इसके सदस्य राष्ट्रों की ओर से की जाती है। पांच देशों में से हर साल बदल-बदलकर इस सम्मेलन की मेजबानी करते हैं। इस बार वर्चुअल शिखर सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है और इसकी मेजबारी चीन कर रहा है।
2- ब्रिक्स की स्थापना वर्ष 2006 में हुई थी। पहले इसमें चार देश शामिल थे। इससे इसका नाम ब्रिक (BRIC) था। शुरुआत में इसमें ब्राजील, रूस, भारत और चीन शामिल थे। साल 2010 में इस संगठन में दक्षिण अफ्रीका भी शामिल हो गया। इसके बाद इस संगठन का नाम बदल गया। अब यह BRIC से बदलकर BRICS हो गया। वर्ष 2009 में पहला ब्रिक्स सम्मेलन आयोजित किया गया था। इस संगठन के और विस्तार की भी चर्चा है।
3- ब्रिक्स संगठन एक बहुपक्षीय मंच है। इसमें दुनिया की जनसंख्या का 41 फीसद, वैश्विक जीडीपी का करीब 24 फीसद और विश्व व्यापार में 16 फीसद भाग शामिल है। ब्रिक्स समिट में क्षेत्रीय मसलों के साथ वैश्विक मामलों पर भी चर्चा होती है। इसका अहम मकसद अलग-अलग क्षेत्रों में सदस्य राष्ट्रों के बीच पारस्परिक लाभकारी सहयोग को आगे बढ़ाना है, ताकि इनके विकास को गति मिल सके। जलवायु परिवर्तन, आतकंवाद, विश्व व्यापार, ऊर्जा, आर्थिक संकट जैसे मसलों पर चर्चा होती रही है।
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