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चांद की धूल को सटीकता से साफ कर देता है ये अनूठा तरीका

Rani Sahu
14 April 2023 10:28 AM GMT
चांद की धूल को सटीकता से साफ कर देता है ये अनूठा तरीका
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वॉशिंगटन । चांद की यात्रा करने वाले नील आर्मस्ट्रॉन्ग के चांद की सतह पर पड़े जूतों के निशान से लेकर आज तक वहां की धूल एक समस्या हैं। अब वैज्ञानिकों ने ऐसा इनोवेटिव तरीका निकाला है, जो चांद की धूल को बेहद सटीकता से साफ कर देता है। मालूम हो कि चांद की यात्रा करने वाले स्पेससूट्स पर ये धूल जम जाती है। इसे साफ करना मुश्किल हो जाता है।
साथ ही अगर ये सांस के रास्ते फेफड़ों में चले जाएं तो हानिकारक हो सकते हैं। वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बार्बी डॉल्स को मेकशिफ्ट स्पेससूट पहनाया। ये स्पेससूट उसी मटेरियल से बना था, जिससे एनएएसए अपने एस्ट्रोनॉट्स का स्पेससूट बनाता है।इसके बाद बॉर्बी डॉल्स पर लिक्विड नाइट्रोजन की तेज बारिश की गई। ताकि पता चल सके कि यह क्रायोजेनिक तरल पदार्थ कितना धूल निकालती है। चांद की धूल तो मिल नहीं सकती थी। इसलिए वैज्ञानिकों ने उसी तरह से मिलती हुई ज्वालामुखीय राख बार्बी डॉल्स के स्पेससूट पर लगाई थी। ये राख माउंट सेंट हेलेन्स में हुए विस्फोट की थी। विस्फोट 1980 में हुआ था। यह चांद के धूल से मिलती हुई राख थी।वैज्ञानिकों ने देखा कि बार्बी डॉल्स के स्पेससूट से लिक्विड नाइट्रोजन ने 98 फीसदी धूल को साफ कर दिया। साथ ही इससे केवलार जैसे मटेरियल से बने स्पेससूट पर कोई नुकसान हुआ। यह पुराने तरीकों से ज्यादा बेहतर विकल्प निकला।
अपोलो प्रोग्राम के एस्ट्रोनॉट्स अपने स्पेससूट को ब्रश से साफ करते थे। उन्हें ये काम हर मूनवॉक के बाद करना पड़ता था। इसकी वजह से स्पेससूट का मटेरियल खराब हो जाता था।चांद की सतह पर मौजूद धूल सिर्फ तेजी से कपड़ों में चिपकती ही नहीं है, बल्कि सेहत के लिए नुकसानदेह भी है। इसकी वजह से लूनर हे फीवर भी हो सकता है। इसकी वजह से आंखों में पानी आता है। गला खराब हो जाता है। छींक बहुत आती है। इसलिए एस्ट्रोनॉट्स इससे बचना चाहते थे। तब वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह तरीका निकाला। वैज्ञानिक इयान वेल्स बताते हैं कि चांद की धूल इलेक्ट्रोस्टेटिकली चार्ज्ड होती है। यह कहीं भी चिपक जाता है। यह स्पेससूट को डैमेज कर सकता है। स्पेससूट को पूरी तरह से सीलबंद कर सकता है। जिसकी वजह से एस्ट्रोनॉट्स के फेफड़ों पर असर पड़ सकता है। क्योंकि स्पेससूट के हेलमेट में सांस ले रहे एस्ट्रोनॉट्स को दिक्कत दे सकता है।
लिक्विड नाइट्रोजन एक्सपेरिमेंट असल में जिस प्रक्रिया पर काम करता है उसे लीडेनफ्रॉस्ट इफेक्ट कहते हैं। क्योंकि लिक्विड नाइट्रोजन बेहद ठंडा होता है, ऐसे में वह जिस भी सतह से टकराता है, वह उसे उबलता हुआ महसूस होता है। इस वजह से ठंडी बूंदे जब गर्म सतह पर गिरती हैं, तो वो तेजी फैलती है। इससे धूल उड़ जाती है। यानी लिक्विड नाइट्रोजन जब गर्म सतह से टकराकर उबलने लगता है। तब वह 800 गुना ज्यादा तेजी से फैलता है। यह किसी धमाके से कम नहीं होता।
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