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दुनिया को बचाएगी ये कोविड वैक्सीनेशन... जानिए उस संजीवनी के बारे में

Ritisha Jaiswal
19 Nov 2020 1:22 PM GMT
दुनिया को बचाएगी ये कोविड वैक्सीनेशन... जानिए उस संजीवनी के बारे में
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नवंबर 2020- ग्लोबल महामारी को लगभग एक वर्ष हो गया है. वक्त-वक्त पर लगाए जाने वाले लॉकडाउन अब नई सामान्य बात हो गई है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | नवंबर 2020- ग्लोबल महामारी को लगभग एक वर्ष हो गया है. वक्त-वक्त पर लगाए जाने वाले लॉकडाउन अब नई सामान्य बात हो गई है, ऑर्गनाइजेशन्स ने WFH (वर्क फ्रॉम होम) मोड पर बिना कोई अधिक परेशानी स्विच कर लिया है. मास्क और सैनिटाइटर जिंदगी का अटूट हिस्सा बन गए हैं. अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में 55.6 मिलियन (5.56 करोड़) लोग संक्रमित हुए हैं और 1.3 मिलियन (13 लाख) की मौत हुई है. कोविड-19 का प्रकोप लगातार जारी है, वहीं वैक्सीन विकसित करने की दौड़ दिन-रात पूरी स्पीड पर है. इनमें से कुछ वैक्सीन कैंडीडेट्स ट्रायल फेस में पहुंच गए हैं, और चंद ने ऊंची कामयाबी दर का दावा किया है.

कोविड-19 वैक्सीन मानव जाति के इतिहास में सबसे महान आविष्कारों में से एक होगी, लेकिन इसका ग्लोबल असर वैक्सीनेशन के विज्ञान की समझ को भी अहम बनाता है."द कोरोनावायरस: व्हाट यू नीड टू नो अबाउट द ग्लोबल पैंडेमिक" किताब के अंशों को लेखक की अनुमति से महामारी और उससे जुड़े विज्ञान की व्याख्या के लिए इस्तेमाल किया गया है. हम आपको सदियों पीछे अतीत में ले चलते हैं जिससे कि सर्वकालिक भयावह बीमारियों में से एक के लिए वैक्सीन की खोज पर दृष्टि डाली जा सके.

एडवर्ड जेनर और चेचक का इतिहास

अतीत में, चेचक ने मानवता को भयानक पीड़ा दी. चेचक से लाखों लोग मारे गए, जो बच गए, वे जीवन के लिए काफी भयभीत थे. एक अंग्रेज चिकित्सक, डॉ एडवर्ड जेनर ने देखा कि ग्वालिनें (दूध दुहने वाली औरतें) शायद ही कभी चेचक से पीड़ित होती थीं. उन्होंने यह अनुमान लगाया कि ग्वालिनों को चेचक (स्मालपॉक्स) के संक्रमण से एक पेशागत संक्रमण काऊपॉक्स ने बचाया. डॉ जेनर का मानना था कि काउपॉक्स के फफोलों से निकलने वाले पस (मवाद) से चेचक से बचाव में मदद मिल सकती है

किताब का एक अंश कहता है, "14 मई 1796 को, मेडिसिन के ऐतिहासिक दिन, जेनर ने एक आठ साल के स्कूली बच्चे, जेम्स फिप्स, को इंजेक्शन दिया, जिसमें एक ग्वालिन के काउपॉक्स फफोले से निकले मवाद को इंजेक्ट किया गया. डॉ जेनर ने बाद में कई बार बच्चे को चेचक की स्क्रैपिंग्स से चेक करने की कोशिश की लेकिन उसे फिर वो बीमारी नहीं हुई. जेनर का प्रयोग एक शानदार कामयाबी थी

वैक्सीन का आविष्कार होने के बाद, अंग्रेजों ने जल्दी ही अपनी हुकूमत वाले भारत तक इसे पहुंचाने का इंतजाम किया. वैक्सीन को लाइव वैक्सीन वाहक का इस्तेमाल करते हुए ट्रांसपोर्ट किया गया. एक बार में दो बच्चों को टीका लगाया गया. जब फफोला बन जाता है तो मवाद का इस्तेमाल अन्य दो बच्चों को टीका लगाने के लिए किया गया. आखिरकार, यह वैक्सीन बंबई (अब मुंबई) में भारतीय डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर तक पहुंच गया. 1807 तक, एक लाख खुराक को प्रशासित किया गया

किताब के एक अंश के मुताबिक "9 दिसंबर 1979 को, जेनर के पॉयनियर काम के 183 साल बाद, चेचक के उन्मूलन की पुष्टि की गई और मई 1980 में WHO ने अपनी आधिकारिक घोषणा में कहा कि 'दुनिया और उसके सभी लोगों ने चेचक से मुक्ति पा ली है."

किताब के एक और अंश के मुताबिक "कोविड-19 के लिए चार प्रकार की वैक्सीन्स विकास के चरण में हैं. निष्क्रिय या क्षीण कोरोना वायरस वैक्सीन्स वायरस के एक रूप का इस्तेमाल करती हैं जो गंभीर संक्रमण का कारण नहीं हो सकता है लेकिन इसके एंटीजन्स इम्युन सिस्टम को स्टीमुलेट कर सकते हैं. प्रोटीन आधारित या सबयूनिट वैक्सीन्स में प्रोटीन आधारित एंटीजन होते हैं जो कोरोना वायरस पर हमला करने के लिए इम्युन सिस्टम को प्रशिक्षित करते हैं. वायरल वेक्टर टीके एक हानिरहित वायरस का उपयोग करते हैं जो कोरोना वायरस या एंटीजन को ले जाने के बने होते हैं. जेनेटिक वैक्सीन्स में डीएनए या आरएनए होते हैं जो होस्ट कोशिकाओं को कोरोना वायरस प्रोटीन बनाने के लिए निर्देश देते हैं, जो आगे एंटीजन के रूप में कार्य करते हैं और इम्युन सिस्टम को स्टीमुलेट करते हैं."

भारत बायोटेक ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के साथ साझेदारी में एक निष्क्रिय कोरोना वायरस वैक्सीन विकसित किया है. वैक्सीन ट्रायल के अंतिम चरण में है और यदि परिणाम अनुकूल हैं, तो यह 2021 की शुरुआत में उपलब्ध हो सकता है. नोवोवैक्स, जीएसके, सनोफी और कई अन्य कंपनियां प्रोटीन-आधारित कोरोना वायरस टीके विकसित कर रही हैं. नोवोवैक्स वैक्सीन क्लिनिक परीक्षणों के अंतिम चरण में है और परिणाम 2021 की शुरुआत में उपलब्ध होंगे. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा एक अरब से अधिक खुराक का निर्माण किया जा सकता है. निष्क्रिय वायरस और प्रोटीन-आधारित वैक्सीन प्लेटफार्म्स टाइम टेस्टेड हैं और उनमें से कई शुरुआती आंकड़ों के आधार उम्मीद जगाते हैं.

सबसे रोमांचक और आशाजनक वायरल वेक्टर और जेनेटिक वैक्सीन्स हैं. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी एस्ट्राजेनेका, जॉनसन एंड जॉनसन और रूस के स्पुतनिक V टीके सभी वायरल वेक्टर वैक्सीन हैं. ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका वैक्सीन क्लिनिकल्स ट्रायल्स के अंतिम चरण में है और बहुत जल्द अंतरिम परिणाम आने की उम्मीद है. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने वैक्सीन की अरबों खुराक बनाने की योजना बनाई है.

जेनेटिक टीके में डीएनए या आरएनए होते हैं जिसमें कोरोना वायरस एंटीजन बनाने के लिए जेनेटिक कोड होता है. इस कोड की बड़े पैमाने पर मैन्युफैक्चरिंग में प्रोटीन की मास मैन्युफैक्चरिंग की तुलना में कम समय लगता है, और ये टीके मानव कोशिकाओं के अंदर सेलुलर कारखानों में बड़े पैमाने पर प्रोटीन निर्माण को आउटसोर्स करते हैं. मॉडर्ना और फाइजर/ बायोएनटेक वैक्सीन mRNA आधारित हैं, जबकि Zydus वैक्सीन डीएनए आधारित है.

जेनर का कोविड कनेक्शन

2020 में, द जेनर इंस्टीट्यूट (जिसका नाम डॉ एडवर्ड जेनर के नाम पर है) ने ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका कोविड-19 वैक्सीन की एक महत्वपूर्ण क्षमता विकसित की. चेचक के टीके की तरह, ब्रिटेन ने एक बार फिर भारत को एक संभावित जीवन-रक्षक वैक्सीन प्रदान किया है, जिसे सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया पूरी दुनिया के लिए बनाएगी. कोविड-19 के लिए सौ से अधिक वैक्सीन विभिन्न चरणों में हैं. आइए विभिन्न कोविड-19 वैक्सीन्स पर एक त्वरित नज़र डालें जो महामारी को समाप्त करने में अहम रोल निभा सकती हैं.

जब कोरोना वायरस एक मानव होस्ट को संक्रमित करता है, तो मानव श्वेत रक्त कोशिकाएं (डब्ल्यूबीसी) कोरोना वायरस पर मौजूद प्रोटीन का पता लगाती हैं. इन प्रोटीन्स को एंटीजन कहा जाता है और मानव इम्युन सिस्टम उनके खिलाफ इम्युन रिस्पॉन्स दिखाता है. वायरस के अहम एंटीजन्स को वैक्सीन में इनकॉर्पोरेट किया जाता है. फिर उस वैक्सीन को एडमिनिस्टर किया जाता है तो इम्युन सिस्टम इन एंटीजन्स के खिलाफ इम्युन रिस्पॉन्स पैदा करता है. कोरोना वायरस का स्पाइक प्रोटीन (एस प्रोटीन), इसकी कुंजी है, जो मानव कोशिका का ताला खोलने और इसे संक्रमित करने में अहम भूमिका निभाता है. कोविद -19 वैक्सीन्स का लक्ष्य मानव इम्युन सिस्टम को प्रशिक्षित करना है जिससे कि वो कोरोना वायरस के एस प्रोटीन के खिलाफ बचाव विकसित किया जा सके.

फाइजर और मॉडर्ना वैक्सीन ट्रायल ने दुनिया को अंतरिम परिणामों के साथ बहुत अच्छी खबरें मुहैया कराईं, जो क्रमशः 95 प्रतिशत और 94.5 प्रतिशत प्रभाविता का संकेत देते हैं. इसके अतिरिक्त, बुजुर्गों में फाइजर का टीका 94 प्रतिशत प्रभावी है. फाइजर और मॉडर्ना की तरह ही कई अन्य टीकें कोरोना वायरस एस प्रोटीन को टारगेट करते हैं. ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका, नोवोवैक्स और भारत बायोटेक टीके भारत में निर्मित किए जा रहे हैं, और आशा है कि वे भी उतने ही प्रभावी हो सकते हैं. भारत में डीएनए और mRNA टीके विकास के चरण में हैं. और यह अभी भी संभव है कि मॉडर्ना अपने वैक्सीन के निर्माण का लाइसेंस किसी भारतीय कंपनी को दे सकती है

पहली चुनौती है सुरक्षा

सभी टीकों पर प्रारंभिक आंकड़ों से संकेत मिलता है कि वे सुरक्षित हैं. लेकिन ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका वैक्सीन हासिल करने वाले एक मरीज को एक गंभीर साइड इफेक्ट हुआ, जिसमें लकवा मार गया जिसे ट्रांसवर्स माइलाइटिस कहा जाता है. जबकि दीर्घकालिक सुरक्षा डेटा अभी भी प्रतीक्षित है. कोरोना वायरस टीके सुरक्षित होने के लिए कठोर मापदंडों से गुजर रहे हैं.

किताब के एक अंश में कहा गया है, "जबकि कई होनहार वैक्सीन कैंडीडेट्स मौजूद हैं, सुरक्षा और प्रभाविता साबित करना केवल चुनौतियों में से एक है. जब एक वैक्सीन उम्मीदवार सुरक्षित और प्रभावी साबित होता है, तो उसकी अरबों खुराक का निर्माण और वितरण एक बहुत बड़ी चुनौती होगी. वैक्सीन की अरबों खुराक की जरूरत कई ग्लास वायल्स के रूप में होती है और अगर उनकी पोटेंसी बरकरार रखनी है तो व्यापक कोल्ड चेन विकसित करने की जरूरत है.


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