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इस एक्सपर्ट ने पहली बार महामारी के खिलाफ बनाया था फेस मास्क का हथियार

Gulabi
14 March 2021 7:00 AM GMT
इस एक्सपर्ट ने पहली बार महामारी के खिलाफ बनाया था फेस मास्क का हथियार
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Covid-19 ने 2020 में दुनिया को चपेट में लिया यानी इससे 110 साल पहले की बात है

Covid-19 ने 2020 में दुनिया को चपेट में लिया यानी इससे 110 साल पहले की बात है, जब एक जानलेवा महामारी को काबू में करने के दौरान पहली बार किसी वैज्ञानिक (Scientist) ने फेस मास्क पहनने का बचाव ईजाद किया था. 10 मार्च 1879 को मलेशिया के पेनांग में जन्मे वू ​लीन-तेह (Wu Lein-Teh) की शिक्षा तो यूनाइटेड किंगडम (UK) में हुई थी, लेकिन उनकी यादगार कर्मभूमि बना चीन, जहां उन्होंने महामारी विशेषज्ञ (Epidemiologist) डॉक्टर के तौर पर काम किया. कौन थे वू और क्या था मिशन?

इसी हफ्ते वू को याद करते हुए गूगल ने एक डूडल बनाया, तो वू चर्चा में आए. 1910 के दिसंबर महीने में उत्तर पूर्व चीन में एक घातक महामारी फैली थी. पहाड़ी चूहों के शिकारियों व व्यापारियों को सबसे पहले इससे संक्रमित पाया गया था. पहली बार तब चीन में वू ने पोस्टमार्टम किया था और उसमें उस बैक्टीरिया को देखा जो महामारी फैला रहा था, जिसे पहले ब्यूबोनिक प्लेग के नाम से जाना जाता रहा. अब थी ऐतिहासिक लड़ाई की बारी.
वू ने समझा कि महामारी सांस के ड्रॉपलेट्स के ज़रिये फैल सकती है (जैसा कि कोरोना वायरस के बारे में भी पाया गया). वू ने खुद कॉटन और कपड़े की कई लेयरों को जोड़कर फेस मास्क डिज़ाइन किया और मेडिकल स्टाफ सहित बाकियों को भी मास्क पहनने के लिए प्रेरित किया ताकि महामारी को फैलने से रोकने में मदद मिल सके. तो इसमें क्या खास था?
आपने 1918–19 के स्पैनिश फ्लू के दौरान फेस मास्क के इस्तेमाल की कहानियां सुनी हैं, लेकिन उससे भी 9 साल पहले, यह दुनिया के इतिहास में पहली बार हुआ था, जब किसी महामारी को रोकने के लिए फेस मास्क का इस्तेमाल करने की रणनीति अपनाई गई हो. लेकिन उस वक्त इस तरीके पर लोगों का विश्वास हासिल करना आसान नहीं था. फिर कैसे इस प्रयोग को मिली कामयाबी?
ज़ाहिर है कि वू की बात कुछ लोगों ने मानने से इनकार किया. मास्क पहनने से मना करने वाले एक फ्रेंच साथी स्टाफ की मौत प्लेग से हुई. उसके बाद किसी के पास कोई बहाना या तर्क नहीं था कि वो मास्क न पहनें. अगले करीब चार महीनों में 60,000 जानें लेने वाली इस महामारी में और भी कुछ प्रयोग किए गए थे, जो बाद में स्पैनिश फ्लू और वर्तमान में कोरोना वायरस के दौर में भी देखने को मिले.




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