x
मंगल पर पानी और जीवन की संभावनों को तलाशने में तकरीबन हर देश के वैज्ञानिक जुटे रहते हैं
मंगल पर पानी और जीवन की संभावनों को तलाशने में तकरीबन हर देश के वैज्ञानिक जुटे रहते हैं. समय-समय पर रिसर्च, डेटा कलेक्शन, स्टडीज़ होती रहती हैं. जिससे ये साफ हो पाए की मंगल पर कितने सालों पहले तक पानी अस्तित्व में था. अभी तक प्राप्त डेटा के मुताबिक करीब 3 अरब साल पहले मार्स (Mars) पर पानी बहता था. मगर हाल में मिली नई जानकारियों ने वैज्ञानिकों को भी चकित कर दिया. उनके हाथ एक ऐसी इंफॉर्मेशन लगी है जिससे उनकी सालों की मेहनत सफल होती दिख रही है.
हाल ही में नासा के मार्स रिकोनिसेंस ऑर्बिटर (NASA's Mars Reconnaissance Orbiter(MRO) के नए डेटा के मुताबिक मंगल पर पानी की संभावनाओं को लेकर जो जानकारी मिली है उसने वैज्ञानिकों की पुरानी जानकारी को पीछे छोड़ दिया है. अब तक मार्स पर पानी की जो उम्र तय हुई थी वो उससे कहीं आगे निकलती दिखाई दे रही है.
मंगल पर मिले पानी के ताज़ा निशान
नासा का मार्स रिकोनिसेंस ऑर्बिटर (NASA's Mars Reconnaissance Orbiter(MRO) कई सालों से मंगल ग्रह के चक्कर लगा रहा है. वो एक-एक कई महत्वपूर्ण जानकारियां अब तक दे चुका है. साल 2006 से ही ये ऑर्बिटर लाल ग्रह यानि मार्स के इर्द-गिर्द घूम रहा है. इस डौरान उससे एक नई जानकारी सामने आई है. नए डेटा के पहले तक वैज्ञानिक मानते थे की मंगल पर करीब 3 अरब साल पहले पानी था यानि उसके बाद ये ही ये ग्रह सूखा पड़ा है. मगर ऑर्बिटर ने जो नए तथ्य भेजे वो ये हैं कि 3 अरब नहीं यानि 2 से ढाई अरब साल पहले तक लाल ग्रह पर पानी का बहाव था. यानि संभावना से बहुत करीब है पानी के अस्तित्व के निशान. आपको बता दें कि सबसे पहले नासा ने ही मंगल ग्रह पर नमक खनिज मौजूद होने की खोज की थी. करीब 14 साल पहले स्पेस एजेंसी के मार्स ओडिसी ऑर्बिटर (Mars Odyssey orbiter) ने इस खोज को अंजाम दिया था और अब मार्स पर पानी की न्यूनतम आयु पता लगाकर वैज्ञानिकों को नई उम्मीद दे दी है.
स्पेस एजेंसी के हाथ लगी एक और कामयाबी
स्पेस एजेंसीज़ के मुताबिक अब हमें पता है कि मार्स पर माइक्रोबिल जीवन (microbial life) के लिए ज़रूरी पानी, बांध, खनिज लवण और नमक के निशान मिल गए हैं. लिहाज़ा हमारी उम्मीदों को और बल मिल रहा है. अब वो ये जानने की कोशिश कर रहे हैं कि मंगल ग्रह पर कितने समय तक सूक्ष्मजीव रह सकते हैं. रिसर्च के प्रमुख लेखक, एलेन लीस्क (Ellen Lisk) और कैलटेक के प्रोफेसर बेथानी एहलमैन (Caltech Professor Bethany) ने एमआरओ उपकरण से डेटा का इस्तेमाल किया, जिसे कॉम्पैक्ट रिकोनिसेंस इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर फॉर मार्स (CRISM) कहा जाता है। CRISM के डिप्टी प्रिंसीपल इंवेस्टिगेटर के मुताबिक, सबसे आश्चर्य की बात तो ये है कि हाई रिज़ॉल्यूशन इमेज, स्टीरियो और इन्फ्रारेड डेटा देने के एक दशक ये ज्यादा समय बाद MRO ने नदियों की प्रकृति और समय के बारे में नई खोज के लिए प्रेरित किया है.
Next Story