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यहां तक कि ब्रिटिश सरकार ने सॉल्ट एक्ट तक लागू कर दिया था। इसके जरिए उन्होंने नमक के निर्माण पर भी एकाधिकार कर लिया था।
भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारे के 75 साल हो चुके हैं और इस एतिहासिक घटना से पहले दोनों देश अंग्रेजों के गुलाम रहे। बंटवारा तो हो गया लेकिन कई ऐसी चीजें हैं जो या तो सिर्फ पाकिस्तान में हैं या फिर भारत में। इनमें से ही एक है आपके खाने में प्रयोग होने वाला नमक। एक समय था जब इस नमक पर भारतीयों को बहुत ज्यादा टैक्स अदा करना पड़ता था। नमक पर टैक्स की वजह से तस्करी न होने पाए इसके लिए ओडिशा से लेकर पाकिस्तान के खैबर पख्तनूख्वां तक एक दीवार का निर्माण तक करा दिया गया था। ये वो घटना है जिसका जिक्र आज भी होता है। इस दीवार को ग्रेट हेज ऑफ इंडिया नाम दिया गया था।
नमक पर लगा टैक्स
सन् 1879 से अगर कोई भारत आता तो उसे देश के पश्चिमी हिस्से से पूर्व में तराई क्षेत्र में जाने के लिए बबूल की घनी झाड़ियों की वजह से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। कर्नाटक और दूसरे क्षेत्रों के करीब मौजूद इन झाड़ियों को पार करना बहुत मुश्किल था। रास्ते में पुलिस चौकी पर कस्टम के अधिकारियों की मौजूदगी इसे दोगुना कर देती थी। अगर वो नमक लेकर जा रहा है तो उसका, अपने गंतव्य तक पहुंचना बहुत ही परेशानियों का काम हो जाता था। नमक उस समय बहुत ही कीमती था। अगर कस्टम अधिकारियों को ये पता लग जाता कि वो कोई अपने साथ नमक लेकर चल रहा है तो उस पर बहुत भारी टैक्स थोप दिया जाता। उस समय एक मन नमक पर तीन रुपए तक का टैक्स लगता था जो भारत में सबसे ज्यादा था।
ये झाड़ियां दरअसल भारतीय सीमा के अंदर मौजूद कस्टम लाइन थीं। ये सीमाएं पंजाब में सिंध से लेकर ओडिशा में महानदी तक थीं। इन लाइनों की वजह से पश्चिमी हिस्सा, भारत से कटा था। पंजाब से होती हुईं ये रेखाएं दक्षिण पूर्व में कानपुर से होती हुईं बुरहानपुर तक जातीं और फिर पूर्व में मुड़ जातीं। इसके बाद ये यहां से ओडिशा के संबलपुर तक जाती थीं। हर चार मील पर एक पुलिस चौकी जोकि दरअसल कस्टम की चौकी थी, रहती थी। जिन झाड़ियों की मदद से इन रेखाओं को तैयार किया गया था, उसका आइडिया राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक एलन ऑक्टेवियन ह्यूम ने दिया था।
12000 लोग करते निगरानी
कर्नाटक से लेकर पश्चिमी हिस्से पर बबूल और ऐसी ही कई कंटीली झाड़ियों की मदद से इन्हें तैयार किया गया था। पंजाब और गंगा-जमुना के दोआब क्षेत्र में ये झाड़ियां बहुत ही घनी थीं। सन् 1869 से 1881 के बीच फाइनेंसेज और पीडब्लूडी की तरफ से इन झाड़ियों को 10 फीट से 15 फीट तक इनलैंड कस्टम लाइन में बदल दिया गया था। इस कस्टम लाइन के रखरखाव में उस समय ब्रिटिश सरकार दो लाख रुपए तक खर्च करती थी। 12000 लोग इसके रखरखाव में लगे रहते थे। बाद में इनकी संख्या को घटाकर 8000 कर दिया गया। इस कस्टम लाइन को बनाने का शुरुआती मकसद कोहट से सेंधा नमक की तस्करी रोकना था। कोहट इस समय पाकिस्तान के खैबर प्रांत मे है।
नमक की वजह से जिस दीवार का निर्माण अंग्रेजों ने कराया, वो उस समय एक जरूरी वस्तु था। अंग्रेजों ने इस पर टैक्स लगाना शुरू कर दिया था। सन् 1858 तक ये स्थिति हो गई थी कि ईस्ट इंडिया कंपनी को जो भी राजस्व हासिल होता उसमें 10 फीसदी योगदान नमक पर लगे टैक्स का रहता थ। भारत के जिस हिस्से पर अंग्रेजों ने मजबूती के साथ शासन किया, वहां पर नमक पर टैक्स देना अनिवार्य होता था। यहां तक कि ब्रिटिश सरकार ने सॉल्ट एक्ट तक लागू कर दिया था। इसके जरिए उन्होंने नमक के निर्माण पर भी एकाधिकार कर लिया था।
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