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तालिबान के काबुल के नजदीक पहुंचते ही वहां भारतीय मूल के नागरिकों के अलावा अफगान निवासियों में भी अफरातफरी का माहौल है
तालिबान के काबुल के नजदीक पहुंचते ही वहां भारतीय मूल के नागरिकों के अलावा अफगान निवासियों में भी अफरातफरी का माहौल है। अफगानिस्तान में मौजूद पत्रकारों का कहना है कि जो लोग महीने भर पहले ये उम्मीद लगाए बैठे थे कि इस बार तालिबान के लिए काबुल दूर है, क्योंकि अफगान सेना पहले से ज्यादा सक्षम है। उन सभी को मौजूदा स्थिति से अचम्भा हो रहा है। लोग सरकार और सेना दोनों से निराश होकर अफगानिस्तान छोड़ना चाहते हैं। बड़ी संख्या में लोग वीजा मांग रहे हैं।
जानकार मान रहे है कि तालिबान की तेजी के पीछे पाकिस्तान का सीधा हाथ है। कुछ कूटनीतिक जानकारों का कहना है कि जो घटनाक्रम हो रहा है वह किसी बड़ी साजिश की ओर इशारा कर रहा है। जानकार मानते हैं कि मौजूदा स्थिति से भारत को रणनीतिक नुकसान हो सकता है। क्योंकि अफगानिस्तान में भारत समर्थक ताकतें कमजोर हो रही हैं।
काबुल में मौजूद पत्रकार जुबैर बबकरखली ने कहा कि अब लगता है कि काबुल तालिबान से दूर नहीं है। कुछ समय पहले तक यहां लोगों में बहुत भरोसा था। लोग सामान्य जिंदगी जी रहे थे, लेकिन अब दहशत है। मैं खुद अपने परिवार के साथ जल्द से जल्द अफगानिस्तान छोड़ना चाहता हूं। क्योंकि यहां रक्तपात तेज होगा। गृहयुद्ध के हालात भी बन रहे हैं। तालिबान बहुत ही क्रूर हैं। एक अन्य पत्रकार मोहम्मद अलमी ने कहा कि हमने कुछ महीने पहले जो अनुमान लगाया था उसका एकदम उलटा हो रहा है। लोग तालिबान की तेजी से अचम्भित हैं।
जानकारों का कहना है कि तालिबान ने इस बार जंग के साथ सहमति, स्वीकृति,समझौते के लिए कूटनीतिक दांव पेच का भी सहारा लिया है। वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्वीकार्यता का हवाला भी दे रहे हैं। उनकी सेना के स्थानीय कमांडरों से सीधा संपर्क और समझौता हो रहा है। विवेकानंद फाउंडेशन के सीनियर फेलो पीके मिश्रा का कहना है कि अफगानिस्तान की स्थिति भारत के लिए चिंताजनक है। हमें अपने नागरिकों की सुरक्षा के साथ अपने हजारों करोड़ के निवेश की भी चिंता है। तालिबान का क्या रुख होगा अभी तय नहीं है। क्योंकि वे अभी पाकिस्तान और चीन के प्रभाव में हैं।
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