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चीन में यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएट्स की संख्या बढ़ रही है, जबकि कुशल कामगारों की आपूर्ति कम है जिससे देश में नौकरी का बाजार डगमगा रहा है।
चीन (China) दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है लेकिन इसका भविष्य कुछ कमजोर दिखाई पड़ रहा है क्योंकि यहां बच्चों और युवाओं को दी जा रही शिक्षा और मिल रही नौकरियों में कोई तालमेल नहीं है।
फाइनेंशियल पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में पढ़ाई मंहगी है। कई बार ऐसा होता है कि आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि वाले बच्चे व युवा मजबूरन उच्च शिक्षा वाले कोर्स में दाखिला ले लेते हैं लेकिन बढ़ते दबाव के कारण इसे अधिक समय तक जारी नहीं रख पाते हैं। इससे इनकी पढ़ाई-लिखाई भी प्रभावित होती है।
कई बार तो हाइस्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद युवा इस दुविधा में पड़ जाते हैं कि वे अकादमिक शिक्षा के लिए आगे बढ़े या वोकेश्नल कोर्स को प्राथमिकता दे।
चीन में पढ़ाई महंगी है और इनके पूरे होने की समयसीमा भी अधिक होती है। एक तरफ जहां कॉलेज की डिग्री लेकर पास होने वाले युवा निम्न-स्तर की नौकरियों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं, वहीं वोकेश्नल कोर्स करने वाले युवाओं के लिए भी अवसर सीमित हैं। इस तरह के कामों में पैसे कम मिलने के साथ ही करियर ग्रोथ भी न के बराबर होता है।
इसी के साथ अधिकतर ग्रामीण इलाकों से आने वाले युवा वोकेश्नल कोर्स को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि अकादमिक में इनके मार्क्स अच्छे नहीं आते हैं। कुल मिलाकर चीन में शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में सामंजस्यता न के बराबर है जिसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ना लाजिमी है। चीन में यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएट्स की संख्या बढ़ रही है, जबकि कुशल कामगारों की आपूर्ति कम है जिससे देश में नौकरी का बाजार डगमगा रहा है।
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