यह विडंबना ही है कि जिस इलाके में दुनिया की सबसे अधिक बारिश वाली जगह है उसे अब पीने के पानी की किल्लत और सूखे से जूझना पड़ रहा है. पूर्वोत्तर भारत जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा है.भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों और जंगलों से भरा हुआ है लेकिन जलवायु परिवर्तन का असर अब इलाके में साफ नजर आने लगा है. बारिश का पैटर्न भी साल दर साल बदल रहा है. नतीजतन बेमौसम की बरसात और साल में कई बार आने वाली बाढ़ अब नियति बनती जा रही है. यह विडंबना ही है कि जिस इलाके में दुनिया की सबसे अधिक बारिश वाली जगह है उसे अब पीने के पानी की किल्लत और सूखे से जूझना पड़ रहा है. पर्यावणविदों ने इसके लिए तेजी से बढ़ती आबादी, घटते जंगल और बिजली परियोजनाओं के लिए पहाड़ों की बेतरतीब कटाई को भी जिम्मेदार ठहराया है. घटती बारिश बीते कुछ दशकों के दौरान पूर्वोत्तर इलाके में बारिश की प्रकृति में उल्लेखनीय बदलाव आया है. इस साल अब तक इलाके में औसत बारिश में भारी गिरावट दर्ज की गई है. मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, मणिपुर में सामान्य से 58 फीसदी कम बारिश हुई है. इसी तरह मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश के मामले में यह आंकड़ा क्रमशः 28, 23 और 21 फीसदी रहा है. इलाके के तमाम राज्यों में बारिश पानी का एक प्रमुख स्रोत है. मौसम विभाग की ओर से जनवरी 2018 में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया था कि इलाके के तमाम राज्यों में बारिश की मात्रा लगातार कम हो रही है. इसमें 1901 से 2015 यानी 115 साल के आंकड़ों का अध्ययन किया गया था. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि इलाके में बारिश के सीजन में अत्यधिक भारी बारिश होने की घटनाएं भी बढ़ी हैं.