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खूब चर्चित हैं इस चूहे की बहादुरी के किस्से, हजारों लोगों की बचाई जानें, रिटायर होने का आया समय

jantaserishta.com
6 Jun 2021 2:45 AM GMT
खूब चर्चित हैं इस चूहे की बहादुरी के किस्से, हजारों लोगों की बचाई जानें, रिटायर होने का आया समय
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कुत्ता, बिल्ली, कबूतर और घोड़े की कहानियां तो बहुत सुनी होंगी, लेकिन यहां बात हो रही है एक चूहे की. अफ्रीकी नस्ल के इस चूहे की बहादुरी के किस्से खूब चर्चित हैं. वेबसाइट sky की रिपोर्ट के मुताबिक जहां मशीनें फेल हो जाती हैं, वहीं इस चूहे की संघूने की क्षमता ने अब तक 71 बारूदी सुरंगों का पता लगाकर हजारों लोगों की जानें बचाई हैं.

कंबोडिया में मगावा नाम के का ये चूहा सात साल का है. इस चूहे को विशेष रूप से उस दौरान ट्रेंड किया गया था, जब दक्षिण पूर्व एशियाई देश कंबोडिया में बारूदी सुरंगों का पता लगाना था. मगावा ने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया. उसने 28 जिंदा विस्फोटकों का भी पता लगाकर हजारों लोगों की जान बचाई है.
मगावा को एपीओपीओ नामक संगठन ने ट्रेंड किया था. ये संगठन चूहों को बारूदी सुरंगों और अस्पष्टीकृत बमों का पता लगाने के लिए प्रशिक्षत करता है. एपीओपीओ की ओर से बताया गया कि मगावा अभी भी अच्छे स्वास्थ्य में है, लेकिन अब उसका सेवानिवृत्ति का समय आ गया है.
मगावा के हैंडलर मालेन ने एक बयान में कहा कि "मगावा का प्रदर्शन नाबाद रहा है और मुझे उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने पर गर्व है. वह छोटा है, लेकिन उसने कई लोगों की जान बचाने में मदद की है.
उन्होंने बताया कि मगावा की कमी को पूरा करना आसान नहीं है, लेकिन चैरिटी ने कुछ नए रंगरूटों को भर्ती किया है, जिसमें 20 नए प्रशिक्षित लैंडमाइन डिटेक्शन चूहों का एक समूह है, जिन्होंने अपनी प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की है.
बता दें कि ब्रिटेन की एक चैरिटी संस्था पीडीएसए द्वारा मगावा को सम्मानित किया जा चुका है. ब्रिटिश चैरिटी पीडीएसए एक ऐसी संस्था है जो हर साल बेहतरीन काम करने वाले जानवरों को पुरस्कृत करती है. इस संस्था के 77 साल के लंबे इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि किसी चूहे ने इस तरह का पुरस्कार जीता.
मगावा ने दक्षिण पूर्व एशियाई देश कंबोडिया में 15 लाख वर्ग फीट के इलाके को बारूदी सुरंगों से मुक्त बनाने में मदद की थी. यह बारूदी सुरंगें 1970 और 1980 के दशक की थीं जब कंबोडिया में बर्बर गृह युद्ध छिड़ा था.
कंबोडिया 1970 से 1980 के दशक में भयंकर गृह युद्ध से प्रभावित रहा है. इस दौरान दुश्मनों को मारने के लिए बड़े पैमाने पर बारूदी सुरंगे बिछाई गईं थी. लेकिन, गृहयुद्ध के खत्म होने के बाद ये सुरंगे अब यहां के आम लोगों की जान ले रही थीं.


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