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धरती पर आ रहीं प्राकृतिक आपदाओं में सिर्फ प्रकृति का ही नहीं, हमारा भी हाथ है
वाशिंगटन, एजेंसी। धरती पर आ रहीं प्राकृतिक आपदाओं में सिर्फ प्रकृति का ही नहीं, हमारा भी हाथ है। इसके लिए मानवीय गतिविधियां भी जिम्मेदार हैं। अब एक नवीन अध्ययन में एक और चिंताजनक बात सामने आई है। शोधकर्ताओं ने उत्तरी अमेरिका के आसपास 2000 से अधिक धाराओं के अध्ययन में पाया कि मानवीय गतिविधियों के कारण धाराओं के प्रवाह में बदलाव आया है, जिससे बाढ़ और सूखे का खतरा बढ़ रहा है। यह शोध नेचर सस्टेनेबिलिटी जर्नल में प्रकाशित हुआ था।
यह अध्ययन यूनिवर्सिटी आफ वाटरलू के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। इसके अंतर्गत शोधकर्ताओं ने कनाडा और अमेरिका में 2,272 धाराओं के मौसमी प्रवाह के पैटर्न का विश्लेषण किया। अध्ययन में सामने आया कि बांधों, नहरों या शहरीकरण के कारण मानव प्रबंधित धाराओं का प्रवाह, प्राकृतिक प्रबंधित धाराओं का प्रवाह प्राकृतिक जलसंभर की धाराओं के प्रवाह की तुलना में अलग था। दूसरे शब्दों में कहें तो मानवीय गतिविधियों द्वारा जो प्रबंध किए गए हैं, उनकी वजह से धाराओं के प्रवाह में बदलाव आया है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, प्रबंधित वाटरशेड में प्रवाह वृद्धि गंभीर बाढ़ का संकेत देती है। ऐसा संभवत: शहरी क्षेत्रों में बढ़ी हुई पक्की सतहों के परिणामस्वरूप रहा हो। दूसरी ओर, प्रवाह में कमी से पानी की कमी हो सकती है और प्रबंधित धाराओं में जैव विविधता का नुकसान हो सकता है। यानी मानवीय गतिविधियों से बाढ़ और सूखे दोनों का खतरा बढ़ रहा है।इस तरह किया अध्ययन शोधकर्ताओं ने धारा प्रवाह पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को मापने के लिए मानव गतिविधियों से अछूते प्राकृतिक वाटरशेड का प्रयोग किया। इन्हें आधार रेखा के रूप में मानते हुए शोधकर्ताओं ने मानव विकास के प्रभाव को मापने के लिए 115 किलोमीटर के दायरे में प्रबंधित धाराओं में प्रवाह की तुलना की।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
वाटरलू के अर्थ एंड एन्वायरमेंटल साइंसेज में पोस्टडाक्टरल फेलो नितिन सिंह के मुताबिक, करीब की प्राकृतिक धाराओं की तुलना में मानवीय गतिविधियों द्वारा परिवर्तित धाराओं में से करीब 48 प्रतिशत की प्रवाह प्रवृत्तियों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जबकि 44 प्रतिशत में कमी। हमने मशीन लर्निंग का उपयोग निर्णायक रूप से यह दिखाने के लिए किया कि ये परिवर्तन मानवीय गतिविधियों के कारण होते हैं। पिछले अध्ययनों में जहां वार्षिक पैमाने पर धारा प्रवाह को देखा गया था, वहीं इस अध्ययन में बसंत बाढ़ और गर्मियों के सूखे जैसे मौसमी प्रभावों पर को देखा गया है, जो जल प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण हैं।
क्या है चिंता की बात
अर्थ एंड एन्वायरमेंटल साइंसेज की प्रोफेसर नंदिता बसु के मुताबिक, मानव द्वारा किए जा रहे उन परिवर्तनों की पहचान करना आवश्यक है, जिनकी वजह से ये बदलाव देखने को मिल रहे हैं। यह चिंता की बात है और आने वाले समय में स्थिति और गंभीर हो सकती है। ऐसे में बाढ़ और सूखे जैसी आपदाओं के बढ़ने की आशंका है। जरूरत है तो इस दिशा में उचित कदम उठाने की।
Gulabi
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