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हाल ही में पहली बार अंतरिक्ष (Space) में जीन एडिटिंग (Gene Editing) का प्रयोग सफलता पूर्वक किया गया है
हाल ही में पहली बार अंतरिक्ष (Space) में जीन एडिटिंग (Gene Editing) का प्रयोग सफलता पूर्वक किया गया है. अंतरिक्ष यात्रियों ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में खमीर की कोशिकाओं में डीएनए सुधारने का काम इस तरह से किया जो पूरी तरह से अंतरिक्ष में किया जा सकता है. इस प्रयोग की सफलता भविष्य के लिए बहुत उपयोगी माना जा रहा है. डीएनए में खराबी अंतरिक्ष के खराब वातावरण के की वजह से है होती है. जो कि पराबैंगनी और अन्य विकिरण से बनता है, अंतरिक्ष यात्रियों की सेहत पर बुरा असर डालते हैं. ऐसे खतरों से निपटने के लिए यह प्रयोग एक शुरुआती कदम साबित हो सकता है.
हानिकारक विकिरण
पराबैंगनी किरणें और आयनीकृत विकिरण, जो प्रकाश और ऊष्मा की वजह से आयनीकृत कणों का विकिरण होता है, इंसान के लिए बहुत हानिकारक होते हैं. पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर इस तरह के विकिरण बहुत नकुसानदेह साबित होते हैं और वे डीएनए तक में खराबी पैदा करने में सक्षम होते हैं.
इंटनेशनल स्पेस स्टेशन में हुआ प्रयोग
अंतरिक्ष यात्रियों ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में किए गए प्रयोग में CRISPR/Cas9 जीनोम एडिटिंग तकनीक का उपयोग किया. अब वैज्ञानिक सुधार प्रणाली का ज्यादा गहराई तक परीक्षण कर सकेंगे. इससे पहले विकिरण तकनीक को खास माहौल में उपयोग में लाना और ज्यादा मुश्किल हुआ करता था. लेकिन यह पद्धति दोहरे तंतुओं की टूटन पर ध्यान केंद्रित करती है जो डीएनए की मरम्मत में एक बहतु ही खतरनाक तकनीकों में से एक में गिनी जाती है क्योंकि इससे कोशिका की मौत भी हो सकती है.
पूरी तरह सफल रहा प्रयोग
अंतरिक्ष यान के माहौल में खमीर कोशिका प्रयोग पहली बार किया गया जिसमें जीव का जीनोम बदला गया, उसके डीएनए की मरम्मत की गई और फिर उसकी सीक्वेंसिंग की गई. भविष्य में इस तरह की पद्धतियां बेहतर होकर अधिक कारगर तरीके से डीएनए में जटिल खराबी की सुधार सकते और अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षा देने के नए तरीके सुझा सकते हैं.
कितना उपयोगी है यह प्रयोग
दुनिया के बहुत सी स्पेस एजेंसिंया लंबे मानव अभियानों की तैयारी कर रहे हैं जिसमें अंतरिक्ष यात्री मंगल और उससे भी अधिक दूरी के मानव अभियानों में जाएंगे जहां उन्हें विकिरण समेत बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे में जीन एडिटिंग जैसी तकनीकें काफी उपयोगी हो सकती है.
नई तकनीकों में सफलता
कई खगोलजीव वैज्ञानिकों का मानना है कि लंबे अंतरिक्ष अभियानों के लिए अंतरिक्ष यात्रियों के जीन्स में बदलाव करने की जरूरत पड़ सकती है. इस लिहाज से भी प्रयोग की सफलता अहम है. प्लोस वन में प्रकाशित इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक सेबैस्टियन क्रेव्स ने बताया की टीम ने चरम वातावरण में CRISPR जीनोम एडिंग, पीसीआर और नैनोपोर सीक्वेसिंग जैसी नई तकनीकों को सफलतापूर्वक लागू किया
अब गति मिलेगी अंतरिक्ष में जीन संबंधी शोधों को
उन्हें पूरे जैवतकनीक वर्कफ्लो में क्रियात्मकौतर पर लागू कर संयोजित भी किया. इसे माइक्रोग्रेविटी में डीएनए मरम्मत और अन्य कोशिकीय प्रक्रियाओं के लिए अध्ययन किया जा सकता है. अंतरिक्ष में यात्रियों को जिंदा रहने में मदद करने के लिए कई तरह की तकनीकों पर प्रयोग किया जा रहा है.
और भी हो रहे हैं कई तरह के प्रयोग
पृथ्वी पहले से ही एक्स रे विकिरण, त्वचा संबंधी कैंसर से बचाव के लिए सन्सक्रीम सहित कई तरह के समाधान खोजे जा रहे हैं जो अंतरिक्षयात्रियों के लिए मददगार हो सकते हैं. हाल ही में वैज्ञानिकों ने यह खोज की है कि मानव स्पर्म अंतरिक्ष में 200 साल तक कायम रह सकता है जिससे पृथ्वी से बाहर मानव सहित स्तनपायी जीवों के प्रजनन की संभावना को बल मिला है.
जीन के स्तर पर यह प्रयोग काफी अहम इसलिए माना जा रहा है क्योंकि लंबे समय अभियानों के लिए मानन शरीर तैयार नहीं हैं लाखों सालों के विकास काल में वह बिना गुरुत्व के नहीं रहा उसकी जैविक प्रक्रियाएं गुरुत्व पर बहुत निर्भर हैं. ऐसे में वैज्ञानिकों को इंसान में जीन्स के स्तर पर बदलाव करने की जरूरत पड़ सकती है.
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