x
लेकिन तालिबान ने हाल में अपनी ताकत बढ़ाई है.'
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के लिए जितने जिम्मेदार पूर्व अफगानी राष्ट्रपति अशरफ गनी हैं, उतने ही जिम्मेदार अमेरिका के तीन पू्र्व राष्ट्रपतियों और वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन भी हैं. अशरफ गनी तो अफगानिस्तान के लोगों से लगातार झूठ बोलते ही रहे, अमेरिका के भी पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश, बराक ओबामा और डॉनाल्ड ट्रंप ने दुनियाभर से लगातार झूठ बोला और जिसका नतीजा है कि अफगानिस्तान पर तालिबान ने पूरी तरह से कब्जा कर लिया है. इस पूरे घटनाक्रम को समझने के लिए इतिहास के पन्नों को पलटना पड़ेगा.
साल 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद जब अमेरिका अफगानिस्तान में दाखिल हुआ तो उसका मकसद तालिबान की तबाही था. कुछ ही महीनों के अंदर अमेरिका ने दावा किया कि अब अफगानिस्तान से तालिबान के पैर उखड़ गए हैं. अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद पहले तालिबान को बनाने वाला मुल्ला मोहम्मद ओमर अफगानिस्तान का मुखिया बना, फिर मुल्ला मोहम्मद रब्बानी अफगान का मुखिया बना और फिर मौलवी अब्दुल कबीर तालिबान का आखिरी अफगानी राष्ट्रपति साबित हुआ. जब अब्दुल कबीर तालिबानी अफगान का मुखिया था, तो उसी वक्त अलकायदा ने अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला किया था. इसी का जवाब देने के लिए अमेरिका अफगानिस्तान में दाखिल भी हुआ था. और तब अमेरिकी सेनाओं ने तालिबान को खत्म करके हामिद करजई को अफगानिस्तान का राष्ट्रपति बना दिया. अमेरिका ने दुनिया को बताया कि अफगानिस्तान में अब ऑल इज वेल है. और उस वक्त अमेरिकी राष्ट्रपति थे जॉर्ज डब्ल्यु बुश.
लेकिन हामिद करजई को राष्ट्रपति बनाने के बाद भी अमेरिकी सेना बाहर नहीं निकली. बुश ने कहा कि तालिबान ने अफगानिस्तान को बर्बाद कर दिया है और अब अमेरिका अफगानिस्तान को फिर से बनाएगा. इसके लिए अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना का रहना जरूरी है. अमेरिकियों के साथ दुनिया के भी तमाम देशों ने भरोसा कर लिया कि अमेरिका सच में अफगानिस्तान का हित चाहता है. उस वक्त पूरे अफगानिस्तान में महज 50 किलोमीटर की ही पक्की सड़क थी. इसकी वजह से अफगानिस्तान में रहने वाले पश्तो, उजबेक, हजारा, इमाक और ताजिक की आबादी एक दूसरे से अलग-अलग थी. उनका एक दूसरे से संपर्क महज नाम मात्र का ही था.
नए अफगानिस्तान को बनाने के लिए अमेरिका ने इन सबको एक साथ जोड़ने की नीति अपनाने की बात कही. और इन सबको जोड़ने के लिए अमेरिका ने कहा कि वो अफगानिस्तान में एक रिंग रोड बनाएगा, जो अफगानिस्तान के चार बड़े शहरों काबुल, कांधार, हेरात और मजार-ए-शरीफ को जोड़ता था. इस रिंग रोड की लंबाई करीब 3200 किलोमीटर होनी थी, जिसे बनाने के लिए अमेरिका के साथ ही वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक, जापान, ईरान और सऊदी अरब ने भी पैसे दिए. उस वक्त सबने मिलकर करीब डेढ़ बिलियन डॉलर यानी करीब 10 हजार करोड़ रुपये दिए. हालांकि 60 के दशक में यूएसएसआर ने ऐसा रिंग रोड बनाया था, लेकिन दशकों तक चली लड़ाई में सड़क पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी थी.
अब सड़क नए सिरे से बननी थी. अमेरिका ने कहा कि रिंग रोड बनने से अफगानिस्तान के लोग एक दूसरे के करीब आएंगे. इसके अलावा बीमार लोगों को इलाज के लिए जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाया जा सकेगा. हालांकि उस वक्त भी अमेरिका ने कहा कि इस रिंग रोड के बन जाने से अमेरिकी और नाटो सेनाएं आसानी के एक जगह से दूसरी जगह तक जा पाएंगी, जिससे तालिबान पर नियंत्रण रखा जा सकेगा. उस वक्त इस रिंग रोड की बात करते हुए राष्ट्रपति बुश ने कहा था-
अमेरिका का सबसे बड़ा झूठ
'जब अफगानिस्तान में सड़क खत्म हुई तो तालिबान पैदा हुआ. दूसरे शब्दों में कहूं तो सड़क मतलब कारोबार को बढ़ावा. कारोबार बढ़ने से आती है उम्मीद और उम्मीद से तालिबान जैसा अंधेरा खत्म होता है.' लेकिन जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने वादा पूरा नहीं किया. अभी वो अफगानिस्तान को अपने पैरों पर खड़ा कर भी नहीं पाए थे कि उन्होंने ईराक पर हमले का आदेश दे दिया. 2003 में अमेरिका के साथ ही नाटो सेनाएं ईराक पर हमले के लिए निकल गईं. अब अमेरिका की प्राथमिकता अफगानिस्तान नहीं, ईराक था. अमेरिका ने पैसे, हथियार, जंग का साजोसामान और अपनी पूरी तकनीक तो ईराक युद्ध में झोंक दिया. अफगानिस्तान में जिस रिंग रोड को बनाने के लिए 1.5 बिलियन डॉलर थे, उसमें भी कटौती कर दी और वो भी तब, जब सड़क का काम अभी शुरू ही हुआ था.
नतीजा ये हुआ कि तालिबान को फिर मौका मिल गया. अमेरिका ने ईराक पर ध्यान दिया और तालिबान ने अपनी मज़बूती पर. वो लगातार अमेरिकी सेनाओं पर हमले करता रहा. अमेरिकी सैनिकों को मारता रहा. बम लगाकर सड़कों को उड़ाता रहा, अपने विरोधियों को अगवा करके कत्ल करता रहा. लेकिन अमेरिका पूरी दुनिया में दावा करता रहा कि अफगानिस्तान में सबकुछ नियंत्रण में है. ये अमेरिका का सबसे बड़ा झूठ था, जिसपर दुनिया को भरोसा करना ही पड़ा था. 2008 आते-आते तालिबान ने अफगानिस्तान के दक्षिणी और पूर्वी हिस्से में अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी. काबुल से कांधार तक आने वाले हाईवे के आस-पास तालिबान ने 2008 में ही अपना नियंत्रण कर लिया था. 2008 में अमेरिका की सत्ता बदली. बुश की जगह बाराक ओबामा ने ले ली. उन्होंने भी कमोबेश बुश जैसी नीति ही अफगानिस्तान के लिए अपनाई. बोले- 'अभी तालिबान की वजह से अफगानिस्तान की सरकार को कोई खतरा नहीं है, लेकिन तालिबान ने हाल में अपनी ताकत बढ़ाई है.'
Next Story