x
अफगानिस्तान (Afghanistan) से अमेरिकी सेना पूरी तरह से गई कि तालिबान (Taliban) की ताकत बढ़ने लगी
अफगानिस्तान (Afghanistan) से अमेरिकी सेना पूरी तरह से गई कि तालिबान (Taliban) की ताकत बढ़ने लगी. अब माना जा रहा है कि तालिबान का काबुल पर देर सबेर कब्जा हो ही जाएगा. अफगानिस्तान में तालिबान और अमेरिका के बीच के समीकरण में पाकिस्तान (Pakistan) की भी अहम भूमिका था. अब जब समीकरण से अमेरिका हट गया है, पाकिस्तान तालिबान संबंधों के विश्लेषण शुरू हो गया है. हाल ही में देखा गया है कि पाकिस्तान में तालिबान समर्थकों की संख्या बढ़ने लगी है. इसका अफगानिस्तान पर तो असर होगा ही भारत सहित कई देशों पर भी इसका प्रभाव होगा.
पाकिस्तान में बढ़ी तालिबान की पैरवी
अमेरिका पहले ही घोषणा कर चुका है कि वह सितंबर तक पूरी तरह अपनी सेना अफगानिस्तान से हटा लेगा. लेकिन इस ऐलान से पहले ही तालिबान ने अपना दायरा अफागनिस्तान में बढ़ा लिया है. इसी बीच सोशल मीडिया पर ऐसे बहुत से वीडियों की संख्या तेजी से बढ़ गई है जिसमें पाकिस्तानी नागरिक तालिबान का झंडा पकड़े रैलियो में इस्लामी नारे बाजी करते दिख रहे हैं.
तेजी से बढ़ी हैं ऐसी गतिविधियां
खुला समर्थन नहीं लेकिन
गौरतलब है कि पाकिस्तान में तालिबान को खुला समर्थन नही हैं. तहरीके तालिबान-पाकिस्तान (TITP) पाकिस्तान में प्रतिबंधित है. तालिबान का पाकिस्तान में अब तक वैसा ही बर्ताव रहा है जैसा कि उसका शासन में आमलोगों पर था.पाकिस्तान में कई विस्फोट की घटनाओं में तालिबान का हाथ रहा है. लेकिन यह भी सच है कि उसकी पैरवी करने वालों की पाकिस्तान में कम नहीं हैं.
क्या पाकिस्तान में खुले आम घूमते हैं तालिबानी
पाकिस्तान के उत्तरपश्चिमी कबीलाई इलाकों से आने वाले विपक्षी सांसद मोहसिन दावर का कहना है कि तालिबान क्वेटा सहित पाकिस्तान के कई अलग-अलग इलाकों में खुलेआम घूमते देखे गए हैं. उनका कहना है कि यह सरकार के समर्थन के बिना मुमकिन नहीं है. वहीं सरकारी अफसरानों का कहना है कि इस तरह के आरोप बेबुनियाद है. पाकिस्तान विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जाहिद हफीज चौधरी का कहना है कि तालिबान समर्थित रैलियां और चंदा मांगने वाली घटनाएं भी नहीं हुई हैं.
तालिबान के लिए पाकिस्तान लड़ाके
विशेषज्ञों का मानना का इस्लामाबाद तालिबान के साथ ही तहरीके तालिबान-पाकिस्तान को भी समर्थन दे रही है. तालिबान का अफगानिस्तान में बढ़ना उसके पाकिस्तानी समर्थकों का भी हौसला बढ़ा रहा है. इतना ही नहीं कई पाकिस्तानी सिपाही भी अफगान सैन्य बलों के खिलाफ तालिबान की ओर से लड़ते हुए मारे गए हैं. इनके पार्थिव शरीर पाकिस्तान लौटाए जा रहे हैं. सोशल मीडिया पर इनके बारे सैंकड़ों लोग इनके अंतिम संस्कार में शामिल होते दिख रहे हैं.
पाकिस्तानी सहयोग
विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान में केवल तालिबान नेताओं को शरण ही नहीं मिलती है. तालिबान को चिकित्सीय सहायता केसाथ तालिबानी परिवारों को मदद भी मिलती है. साफ है तालिबान को पाकिस्तानी आधिकारिक सहयोग तो है, लेकिन अब यह स्थानीय स्तर तक गहरा रहा है. उनका मानना है कि इससे पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान हुआ है.
पाकिस्तान तालिबान या दूसरे रूप में आतंकवाद से लड़ने में अक्षम तो है ही, उसका ऐसा कोई इरादा भी नहीं हैं. मदरसों में तालिबान की पहुंच किसी से छिपी नहीं हैं. तालिबानी सोच पाकिस्तानी समाज में पैठ बना रही है. फिर भी पाकिस्तान खुल कर तालिबान के साथ भी नहीं आना चाहता यह भी सच है.
Next Story