दिल्ली में आतंकी हमले की फिराक में था काबुल एयरपोर्ट का मास्टरमाइंड
जनता से रिश्ता हेल्पडेस्क: इस्लामिक स्टेट का वो सुसाइड बॉम्बर जिसने अगस्त 2021 में अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद काबुल एयरपोर्ट को दहला दिया था, रिपोर्ट्स बताती हैं कि वह 2017 में एक आत्मघाती मिशन पर भारत आया था। इस्लामिक स्टेट ऑफ खोरासन ने एक पत्रिका में यह दावा किया है। अब्दुर रहमान अल-लोगारी के रूप में पहचाने जाने वाला बॉम्बर 26 अगस्त 2021 को काबुल एयरपोर्ट के भीतर पहुंच गया था। वहां अफगानिस्तान छोड़कर विदेश जाने वालों की भीड़ थी। यहां उसने आत्मघाती हमले को अंजाम दिया जिसमें 183 लोगों की मौत हो गई और 150 से अधिक लोग घायल हो गए थे। मरने वालों में 13 अमेरिकी सैनिक भी शामिल थे। दी हिंदू की एक रिपोर्ट बताती है कि अफगानिस्तान के एक व्यापारी के बेटे लोगारी ने फरीदाबाद के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया था और लाजपत नगर में किराए पर रह रहे थे। 2017 में वह अफगानिस्तान चला गया लेकिन यह साफ नहीं है कि सुरक्षा एजेंसियों को तब इस बात की भनक थी कि या नहीं।
दिल्ली में एक आत्मघाती बम विस्फोट की साजिश रच रहा था
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट बताती है कि लोगारी बिजनेस के सिलसिले में भारत और पाकिस्तान जाता था। रिपोर्ट में कहा गया है कि वह 2017 में फरीदाबाद के मानव रचना में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए भारत आया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगारी को उस वक्त 'गिरफ्तार' किया गया था जब 'अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने भारतीय खुफिया एजेंसी को सूचना दी कि वह नई दिल्ली में एक आत्मघाती बम विस्फोट की साजिश रच रहा था'। पकड़े जाने के बाद भारत ने लोगारी को सीआईए के हवाले कर दिया। रिपोर्ट बताती है कि उसे बगराम एयर बेस के परवान जेल में रखा गया लेकिन अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद वह जेल से छूट गया।
इस्लामिक स्टेट ऑफ खोरासन ने क्या बताया है?
इस्लामिक स्टेट ऑफ खोरासन की ई-पत्रिका में बताया गया है कि 2017 में लोगारी को भारत एक मिशन पर भेजा गया था। उसने कवर के तौर पर एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। पत्रिका के मुताबिक हमले से करीब एक हफ्ते पहले उसे गिरफ्तार कर लिया गया था। पूछताछ करने के बाद भारतीय सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों ने उसे अमेरिका को सौंप दिया था। बाद में इस्लामिक स्टेट से संबंध रखने के आरोप में उसे पांच साल कैद की सजा सुनाई गई। सजा के चौथे साल में उसे बगराम ले जाया गया था। अगस्त में अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद कई जगहों पर कैदियों ने जेल तोड़े तो कई जगह स्थानीय लोगों की मदद से भाग निकले।