अफगानिस्तान में तनाव बढ़ता जा रहा है। अफगान सुरक्षा बलों की कोशिश के बाद भी तालिबान की ताकत बढ़ रही है। पिछले 24 घंटे में कंधार के महत्वपूर्ण जिले पंजवेई पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है। आतंकियों की साफ मंशा है कि किसी भी कीमत पर पूरे मुल्क को अपने कब्जे में ले लिया जाए। तालिबान ने जून माह में ही अफगान सुरक्षा बलों से करीब सात सौ ट्रक और बख्तरबंद वाहनों को छीनकर अपने कब्जे में ले लिया है। इनमें काफी संख्या में टैंक भी हैं। ऐसे सवाल यह उठता है कि आखिर कौन हैं तालिबान और ये क्या चाहते हैं? अमेरिका की अफगानिस्तान में क्या है दिलचस्पी? आपको यह जानकर हैरानी होगी कि पूर्व में तालिबानी हुकूमत को किन तीन देशों ने मान्यता भी दे दी थी, जिनमें पाकिस्तान भी एक था।
ऐसे हुई थी तालिबान की शुरुआत
नब्बे के दशक में जब सोवियत संघ अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला रहा था, उसी दौर में तालिबान अस्तित्व में आया। दरअसल, पश्तो जुबान में छात्रों को तालिबान कहा जाता है। पश्तो आंदोलन पहले धार्मिक मदरसों में उभरा और इसके लिए सऊदी अरब ने फंडिंग की। इस आंदोलन में सुन्नी इस्लाम की कट्टर मान्यताओं का प्रचार किया जाता था। जल्दी ही तालिबानी अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच फैले पश्तून इलाके में शांति और सुरक्षा की स्थापना के साथ-साथ शरिया कानून के कट्टरपंथी संस्करण को लागू करने का वादा करने लगे थे। इसी दौरान दक्षिण पश्चिम अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभाव तेजी से बढ़ा। सितंबर, 1995 में उन्होंने ईरान की सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्जा किया। इसके ठीक एक साल बाद तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा जमाया।