नेपाल के प्राचीन शहर पनौती में जीवित देवी-कुमारी की तलाश के लिए तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। देवी तलेजा की अवतार का चयन अगले दशाइन से पहले हो सकता है। जीवित देवी की मां रोहिणी बताती हैं कि कुमारी मासिक शुरू होने से पहले तक पद पर रहती हैं। अब स्थानीय समुदायों के साथ उन्हें नौ साल की उम्र में ही समाज में वापस भेजने पर विचार हो रहा है। नेवारी संस्कृति में जीवित-देवी से कई परंपराएं पूरी की जाती हैं। काठमांडो में बेदाग नेवार बच्ची को मल्ला राजवंश की संरक्षक देवी तलेजा का अवतार चुना जाता है।
आठ दशक के अंतराल के बाद पनौती की जीवित-देवी चुनी गई ओजस्वी घुलु अन्य बच्चों की तरह ही सामान्य जीवन बिताती हैं। जब वह देवी बनती है तो सभी बड़े त्योहारों पर उनकी पूजा होती है। ओजस्वी खेलती है, पढ़ती है और टीवी देखती है। उसे पेंटिंग और साइक्लिंग का शौक है। कावरेपालनचौक जिले के इस प्राचीन शहर के लिए सांस्कृतिक परंपरा को पुनर्जीवित करना गर्व का मौका था। पवित्र माने जाने वाले हायुमतों ने शहर में आकर कहा था कि जिन स्थानों पर तलेजा भवानी के मंदिर हैं, वहां जीवित-देवी की नियुक्ति की जानी चाहिए। खोज हुई तो पनौती में भी तलेजा भवानी का मंदिर पाया गया।
वैसे तो कुमारी-देवी को सुवाल परिवार से होनी चाहिए, लेकिन उनके यहां कोई बेटी नहीं थी। इसलिए घुलु परिवार की बेटी को चुना गया। पनौती में जीवित-देवी का चयन काठमांडो जैसी परंपराओं के मुताबिक नहीं होता। यहां हायुमत का समूह इसकी खोज करता है और मानदंडों पर खरी उतरने वाली बच्ची को देवी घोषित करता है। वह साल में केवल दो बार लोगों को दर्शन देती हैं। दशाइन या रामनवमी पर उसकी दस दिन तक पूजा की जाती है। इन दिनों उसका दिन एक गिलास गाय के दूध और बिस्कुट के साथ शुरू होता है। उन्हें अपना भोजन किसी के साथ भी बांटने की अनुमति नहीं है। भोजन की पवित्रता बनाए रखी जाती है। पवित्रता के लिए ही कुमारी-देवी केवल घर या परिवार में होने वाले कार्यक्रमों में ही भाग लेती है।