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धरती के वातावरण में संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाने वाली आर्कटिक की बर्फ इंसानी लालच का शिकार हो गई
हेलसिंकी: धरती के वातावरण में संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाने वाली आर्कटिक की बर्फ इंसानी लालच का शिकार हो गई है। यह बर्फ जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से तेजी से पिघल रही है। आर्कटिक पर धरती की तबाही के लक्षण अब साफ दिखने लगे हैं। 105 साल के अंतराल पर खींची गईं दो तस्वीरों में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा कि किस तरह से आर्कटिक इलाके से बर्फ गायब हो गई है।
चर्चित फोटोग्राफर क्रिस्चियन अस्लुंड अपनी तस्वीरों के जरिए इसे दुनिया के सामने लाए हैं। इन तस्वीरों को चर्चित आईएफएस अधिकारी प्रवीण कासवान ने ट्विटर पर शेयर किया है। उन्होंने लिखा, '105 साल के अंतराल पर आर्कटिक इलाका। दोनों ही तस्वीरें गर्मियों में ली गई हैं। क्या आपने इसमें कुछ विशेष बात पर गौर किया ?' इनमें से पहली तस्वीर में हम बर्फ की वजह से बहुत कम पहाड़ को देख पा रहे हैं, वहीं दूसरी तस्वीर जो 105 साल बाद ली गई है, उसमें पूरी तरह से पहाड़ ही पहाड़ ही दिखाई दे रहे हैं।
यह तुलनात्मक अध्ययन साल 2003 में क्रिस्चियन अस्लुंड और ग्रीनपीस की ओर से किया गया था। नार्वे के ध्रुवीय संस्थान के आर्काइब से इन अध्ययन के लिए जरूरी मदद ली गई थी। इस तुलनात्मक तस्वीर पर एक यूजर ने लिखा कि यह आपके मुंह पर सीधे तमाचा मारती है। एक अन्य यूजर ने कहा कि बर्फ के गायब होने से वहां रहने वाले जीव भी अब विलुप्त हो गए होंगे।
This is Arctic 105 years apart. Both picture taken in summer. Do you notice anything special. Courtesy Christian Åslund. pic.twitter.com/9AHtLDGKRb
— Parveen Kaswan, IFS (@ParveenKaswan) November 24, 2021
दरअसल, जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर आर्कटिक क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। यह क्षेत्र वैश्विक औसत से दोगुनी गति से गर्म हो रहा है। आर्कटिक की बर्फ के क्षेत्रफल में लगभग 75% की कमी देखी गई है। जैसे-जैसे आर्कटिक की बर्फ पिघलकर समुद्र में पहुंच रही है यह प्रकृति में एक नई वैश्विक चुनौती खड़ी कर रही है। वहीं दूसरी तरफ यह परिवर्तन उत्तरी सागर मार्ग (Northern Sea Route-NSR) को खोल रहा है जो एक छोटे ध्रुवीय चाप के माध्यम से उत्तरी अटलांटिक महासागर को उत्तरी प्रशांत महासागर से जोड़ता है।
कई रिसर्च में अनुमान लगाया गया है कि इस मार्ग से वर्ष 2050 की गर्मियों तक बर्फ पूरी तरह खत्म हो जाएगा। सबसे बड़ी परेशानी की बात यह है कि रिसर्च में खुलासा हुआ कि जलवायु परिवर्तन अगर धीमा भी हो जाए, तब भी जिस तेजी से बर्फ पिघली है, उस तेजी से नई बर्फ नहीं बनेगी। नासा समुद्री बर्फ पर लगातार रिसर्च कर रहा है। इस संस्था ने 1978 के बाद से रिसर्च कर पता लगाया है कि सितंबर में सबसे कम और मार्च में सबसे अधिक समुद्री बर्फ होती है। हालांकि सटीक आंकड़े हर साल के अलग-अलग होते हैं, लेकिन आर्कटिक में हर साल समुद्री बर्फ का नुकसान बढ़ रहा है।
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