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दिल्ली : एफआईआर में देरी हो तो अदालत को सतर्क रहना चाहिए', जानिए सुप्रीम कोर्ट फैसला

Tara Tandi
7 Sep 2023 10:14 AM GMT
दिल्ली : एफआईआर में देरी हो तो अदालत को सतर्क रहना चाहिए, जानिए सुप्रीम कोर्ट फैसला
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सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की मामले में फैसला देते हुए कहा कि जब किसी मामले में एफआईआर होने में देरी हुई हो और उसका स्पष्टीकरण भी ना दिया गया हो तो ऐसे मामलों में अदालतों को सतर्क रहना चाहिए और सबूतों का सावधानीपूर्वक परीक्षण करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के एक मामले में उम्रकैद की सजा पाए दो लोगों को बरी करते हुए यह टिप्पणी की। हत्या के इस मामले में 1989 में मामला दर्ज हुआ था। अदालत ने आरोपियों को रिहा करने का आदेश दिया।
क्या कहा कोर्ट ने
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने यह टिप्पणी की। दरअसल आरोप था कि दो आरोपियों ने 25 अगस्त 1989 को कथित तौर पर एक व्यक्ति की हत्या करने की कोशिश की। बिलासपुर जिले में अगले दिन इस मामले में एफआईआर दर्ज हुई। पांच सितंबर को दिए अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि 'जब एफआईआर दर्ज होने में देरी हुई हो और इसका सही तर्क ना हो तो अदालतों को सतर्क रहना चाहिए और पेश किए गए सबूतों का सही से परीक्षण करना चाहिए, खासकर ऐसे मामलों में जहां मामले में चश्मदीद गवाहों के होने की संभावना कम हो।'
क्या है मामला
बता दें कि हीरालाल और पारसराम समेत तीन लोगों को हत्या के एक मामले में दोषी ठहराते हुए ट्रायल कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके बाद हाईकोर्ट में अपील की गई तो फरवरी 2010 में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही माना और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा। हाईकोर्ट के इस फैसले को आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने दोनों आरोपियों को रिहा करने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने कहा कि हत्या की कोई खास वजह नहीं पता चली है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि मामले की जांच में कई अहम बिंदुओं की जांच नहीं की गई है। साथ ही मामले के चश्मदीद गवाह ने भी अपने बयान को बदला है, ऐसे में उसकी गवाही की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में एफआईआर में भी देरी हुई है।
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