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हाल के समय में इन बर्फीली जगहों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अचानक बढ़ा है.
आर्कटिक के एक हिस्से को 'लास्ट आइस एरिया' नाम से जाना जाता है क्योंकि वहां समुद्र में बहती बर्फ की सतह आमतौर पर बहुत मोटी होती है, जिससे उसके दशकों तक वैश्विक ताप वृद्धि का सामना करने की संभावना है (Area of Last Ice Age). लेकिन पिछली गर्मियों में वैज्ञानिक तब हैरान रह गए जब अचानक बर्फ के पिघलने से इतना क्षेत्र बन गया कि वहां से एक जहाज भी गुजर सकता है.
पत्रिका 'कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरमेंट' में गुरुवार को प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, एक अजीब मौसमी घटना के कारण यह हुआ है, लेकिन दशकों से हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र में बर्फ की चादर का पतला होना एक अहम कारण है. पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के आसपास के क्षेत्र को आर्कटिक कहा जाता है (Last Ice Area in Arctic Melts). वैज्ञानिकों का कहना है कि आर्कटिक के ज्यादातर हिस्से की बर्फ इस सदी के मध्य तक पिघल सकती है. लेकिन लास्ट आइस एरिया इस आकलन का हिस्सा नहीं था।
हैरान करने वाली है घटना
टोरंटो विश्वविद्यालय के अध्ययन के सह-लेखक केंट मूर ने बताया कि 2100 के आसपास की गर्मियों तक 10 लाख वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र बर्फ से मुक्त नहीं होगा. वाशिंगटन विश्वविद्यालय के सह-लेखक माइक स्टीले ने कहा, 'इसे एक वजह से लास्ट आइस एरिया कहा जाता है (Last Ice Area Snow). हम सोचते थे कि यह एक तरह से स्थिर है. यह काफी हैरान करने वाला है कि 2010 में इस क्षेत्र की बर्फ असाधारण रूप से पिघलने लगी.'
कहां शरण लेंगे जानवर?
इस अध्ययन की एक और सह-लेखिका क्रिस्टिन लेडर ने कहा कि वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनलैंड (Greenland) और कनाडा का उत्तरी इलाका ध्रुवीय भालू जैसे जानवरों के लिए आखिरी शरण हो सकता है, जो बर्फ पर निर्भर करते हैं. मूरे ने बताया कि अचानक बर्फ पिघलने की मुख्य वजह असाधारण तेज हवाएं रही जिससे बर्फ इस क्षेत्र से पिघली और ग्रीनलैंड के तट तक जाने लगी. इससे पहले अंटार्कटिका से भी कई महत्वपूर्ण जगहों पर बर्फ पिघलने की खबर आई थी. हाल के समय में इन बर्फीली जगहों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अचानक बढ़ा है.
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