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दोहराई जा रही है 80 साल पुरानी कहानी! खंडहर इमारतें, सुनसान हुईं सड़कें, रूसी बम के गोलों से थर्रा रही यूक्रेन की जमीं

jantaserishta.com
3 March 2022 4:17 AM GMT
दोहराई जा रही है 80 साल पुरानी कहानी! खंडहर इमारतें, सुनसान हुईं सड़कें, रूसी बम के गोलों से थर्रा रही यूक्रेन की जमीं
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हिटलर के बाद पुतिन कर रहे हैं शहर को तबाह।

नई दिल्ली: यूक्रेन पर रूस (Ukraine-Russia War) के हमले जारी है. रूस के हमलों में कल का खारकीव एक बार फिर उजड़ चुका है. 15 लाख की आबादी वाले शहर में अब सिर्फ तबाही ही नजर आ रही है. खारकीव फिलहाल मौत के अंधे रास्तों पर हैं. यूक्रेन ने दावा किया है कि जंग के पहले सात दिनों में रूस ने यूक्रेन के करीब 2000 बेगुनाह नागरिकों की जान ली है.

जबकि कितने लोग घायल हुए हैं इसका सटीक आंकड़ा किसी के पास मौजूद नहीं है. खारकीव से जो तस्वीरें आ रही हैं वो बेहद दर्दनाक हैं. कवियों और कविताओं के इस शहर पर पिछले तीन दिनों में रूस ने इतने बम बरसाए हैं कि ज़िंदगी पूरी तरह पटरी से उतर चुकी है. चारों तरफ़ तबाही, टूटी इमारतें, खंडहर मकान, वीरान बाज़ार, सुनसान सड़कें और अस्पतालों में मौत से जूझते लोग ही नज़र आ रहे हैं.
दूसरे विश्वयुद्ध में भी इस शहर ने तबाही, आंसू और आहों के ऐसे ही मंज़र देखे थे. करीब 80 साल बाद खारकीव फिर एक बार रो रहा है. शहर के आसमान में दिन भर बजते सायरन की आवाज़ भी मातमी धुन जैसी लग रही हैं. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद खारकीव शायद अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है.
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान हिटलर की नाज़ी सेना ने सोवियत संघ पर हमला कर दिया था. खारकीव जो उस वक्त खारकोव हुआ करता था, सोवियत संघ का एक अहम सैन्य ठिकाना था. हिटलर की सेना ने तब खारकीव पर क़ब्ज़ा भी कर लिया था. खारकीव पर कब्जे के बाद हिटलर के हुक्म पर यहां रहनेवाले हज़ारों यहूदियों को या तो गोलियों से उड़ा दिया गया था या फिर वैन में डाल कर गैस से उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया.
हालांकि बाद में सोवियत संघ ने नाज़ी सेना को खदेड़ कर खारकीव पर फिर से क़ब्ज़ा कर लिया. लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान इस लड़ाई में कहते हैं कि जिन शहरों ने सबसे ज़्यादा लाशें देखीं, उनमें एक खारकीव था. युद्ध के बाद खारकीव की आबादी बहुत कम हो गई थी. इतिहास बताता है कि सितंबर 1941 में सिर्फ़ दो दिन के अंदर खारकीव में रह रहे 30 हज़ार से ज़्यादा यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया गया था. हिटलर की सेना ने जब खारकीव और उसके आस-पास के इलाक़े पर क़ब्ज़ा किया था, तब कहते हैं कि उस पूरे इलाक़े में क़रीब 25 लाख यहूदी रहा करते थे. लेकिन जब हिटलर की सेना हार कर खारकीव से लौटी, तो इस इलाक़े में मुश्किल से 1 से 1 लाख 20 हज़ार यहूदी ही ज़िंदा बचे थे. यहूदियों के अलावा भी हज़ारों लोगों की जान गई थी. 70 फ़ीसदी शहर तब जंग में बर्बाद हो गया था. तब खारकीव पूरे सोवियत संघ का तीसरा सबसे बड़ा शहर हुआ करता था.
रूस की लड़ाई यूक्रेन से है. और सवाल ये कि रूस यूक्रेन के सिर्फ़ दो शहरों (खारकीव और यूक्रेन की राजधानी कीव) को ही सबसे ज़्यादा निशाना क्यों बना रहा है? दरअसल, खारकीव का इतिहास सदियों पुराना है. एक वक़्त में खारकीव यूएसएसआर यानी सोवियत संघ का ही हिस्सा हुआ करता था. 1920 से लेकर 1934 तक खारकीव यूक्रेन की राजधानी तक रह चुकी है. खारकीव की पहचान सिर्फ़ कवि-कविता, आर्ट एंड कल्चर, व्यापार और इंडस्ट्री या फिर वैज्ञानिक खोज के लिए ही नहीं है, बल्कि इसकी पहचान एक बड़े सैन्य अड्डे और दुनिया के सबसे मजबूत टैंक टी-34 बनाने के लिए भी है. सोवियत टी-34 टैंक खारकोव ट्रैक्टर फैक्ट्री में बना करता था.
खारकीव रूस की पूर्वी सीमा से सिर्फ़ 25 मील की दूरी पर है. यूक्रेन का ये वो शहर है, जहां रूसी भाषाई लोग बड़ी तादाद में रहते हैं. रूस इस जंग के दौरान ख़ास तौर पर दो शहरों को सबसे पहले जीतना चाहता था. एक कीव, दूसरा खारकीव. खारकीव चूंकि रूसी बॉर्डर से सिर्फ 25 मील की दूरी पर है, लिहाज़ा रूस को लगा था कि इस शहर पर क़ब्ज़ा करने में ज़्यादा वक़्त या ज़्यादा दुश्वारी नहीं होगी. लेकिन जिस तरह से यूक्रेन की सेना ने खारकीव की घेरेबंदी की और सात दिनों तक रूसी सेना को शहर के बाहर रखा, उसने रूस को चौंका दिया. शहर पर ये बमबारी रूस की उसी खुन्नस का नतीजा है. रूस को लगता था कि खारकीव पर आसानी से क़ब्ज़ा कर यूक्रेन की जंग को वो आसान बना देगा. उसे ये ग़लतफ़हमी इसलिए भी थी कि उसे लगा कि खारकीव में रहने वाले रूसी भाषाई लोग उसकी मदद करेंगे.
1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद जब यूक्रेन आज़ाद हुआ, तो यूक्रेन के पूरे पूर्वी हिस्से में रूसी भाषी लोगों का ही दबदबा था. जबकि यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से में पोलैंड, रोमानिया और हंगरी जैसे पश्चिमी देशों का ज़्यादा असर दिखता है. कीव पश्चिमी हिस्से में है. रूसी बॉर्डर से दूर. इसीलिए रूस पहले खारकीव को फतेह करना चाहता था. कीव की सीमा पर पिछले कई दिनों से रूसी सैनिकों का जमावड़ा सैटेलाइट की तस्वीरों के जरिए दुनिया ने देखी. खारकीव की तरह ही कीव की भी यूक्रेनी सेना और लोगों ने जबरदस्त घेराबंदी कर रखी है. यही वजह है कि जिन दो शहरों को रूस 48 से 72 घंटे के अंदर घुटनों पर लाने की सोच रहा था, वो सात दिन बाद भी सीना ताने खड़े हैं. और यहीं से रूस के बेचैनी लगातार बढ़ती जा रही है. ये बेचैनी इतनी बढ़ रही है कि अब वो परमाणु युद्ध की भी धमकी दे रहा है.
रूस के विदेश मंत्री की तरफ से आज कहा गया कि अगर तीसरा विश्वयुद्ध हुआ तो फिर ये परमाणु युद्ध होगा. जाहिर है एक तरफ मिल रही यूक्रेन से टक्कर और दूसरी तरफ दुनिया भर के देशों के विरोध को देखते हुए शायद रूस अपना सब्र खोता जा रहा है. अब रूस जितना बेसब्र होगा, दुनिया के लिए ख़तरा उतना ही बढ़ता जाएगा.
इस जंग से रूस को बड़ा नुकसान हो रहा है. एक रिपोर्ट के अनुसार रूस हर रोज युद्ध पर 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर रहा है. और जैसे-जैसे युद्ध बढ़ता जा रहा है, उसका नुकसान भी बढ़ रहा है. शक है कि पुतिन के इस कदम का अब रूस में ही बड़ा विरोध हो सकता है. रूस में इसकी शुरुआत भी हो चुकी है और कई शहरों में लोग जंग के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने लगे हैं. रूस को होने वाले नुकसान को लेकर हाल ही में एस्टोनिया के पूर्व डिफेंस मिनिस्टर रिहो टेरास ने एक रिपोर्ट तैयार की है. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि अगर युद्ध 10 दिन से ज्यादा चला तो रूस की हालत खस्ता हो जाएगी. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि रूस को उम्मीद थी कि वो हमले से यूक्रेन को दबाव में ले लेगा और नाटो में जाने से रोकने के लिए राजी करवाने में कामयाब हो जाएगा. लेकिन ये दांव उल्टा पड़ सकता है.
दावा है कि युद्ध पर हर दिन 1.12 लाख करोड़ रुपए खर्च हो रहा है. साथ ही रूस की करंसी रूबल भी कमजोर हो रही है. पिछले महीने की तुलना में इस बार 10 प्रतिशत से ज़्यादा कमजोर हो चुकी है. रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि पश्चिमी देशों ने रूस के साथ डॉलर-यूरो-पाउंड में बिजनेस को साफ तौर पर बैन कर दिया है. ऐसे में रूबल की कीमत और गिर सकती है. एस्टोनिया के पूर्व डिफेंस मिनिस्टर की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि रूस ने दिनों के युद्ध में 5 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर चुका है. अब ये खर्च उसका और तेजी से बढ़ सकता है और आर्थिक नुकसान कई गुना ज्यादा रफ्तार से बढ़ सकता है. क्योंकि युद्ध शुरू होने के 3 हफ्ते पहले से ही रूस में कंपनियों को नुकसान हो रहा था. शेयर मार्केट भी नीचे आ चुका है. ऐसे में रूस की लिस्टेड कंपनियों को भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है.
इन एक्सपर्ट का दावा है कि कीव और खारकीव में यूक्रेन को मजबूती से लड़ने के लिए कुछ देशों ने हथियारों की सप्लाई शुरू कर दी है. क्योंकि कई देश ये चाहते हैं कि रूस को ज्यादा दिनों तक रोके रखा जाए. इससे रूस की आर्थिक हालत खुद ही खराब हो जाएगी. 28 फरवरी को कीव इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नेशनल बैंक को 33 मिलियन डॉलर का दूसरे देशों से आर्थिक सपोर्ट मिला है. इन पैसों से यूक्रेन युद्ध के मोर्चे पर काफी मजबूत होगा और रूस को रोकने में काफी हद तक सफल होगा.
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