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सऊदी अरब से तेल पर बढ़ा तनाव, अब जो बाइडेन का बड़ा फैसला

Subhi
20 Oct 2022 12:50 AM GMT
सऊदी अरब से तेल पर बढ़ा तनाव, अब जो बाइडेन का बड़ा फैसला
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सऊदी अरब की अगुआई वाले ओपेक+ देशों की तरफ से तेल उत्पादन में कटौती की वजह से अमेरिका के साथ तनाव बढ़ गया है। अमेरिका का कहना है कि रूस को फायदा पहुंचाने के लिे ओपेक यह कदम उठा रहा है।

सऊदी अरब की अगुआई वाले ओपेक+ देशों की तरफ से तेल उत्पादन में कटौती की वजह से अमेरिका के साथ तनाव बढ़ गया है। अमेरिका का कहना है कि रूस को फायदा पहुंचाने के लिे ओपेक यह कदम उठा रहा है। हाल ही में ओपेक प्लस देशों ने ऐलान किया था कि तेल के उत्पादन में हर दिन 20 लाख बैरल की कटौती की जाएगी। अब आंतरिक सूत्रों का कहना है कि जो बाइडन बड़ा फैसला करने वाले हैं और सऊदी को जवाब देने के लिए अपना स्ट्रेटजिक रिजर्व खोलने वाले हैं।

बाइडन प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक जो बाइडन अगले 6 महीने में क्रूड भंडार में से 18 करोड़ बैरल तेल को निकालने का फैसला कर सकते हैं। हालांकि इसके बाद अमेरिका का तेल का भंडार काफी कम हो जाएगा। वर्तमान में अमेरिका के खजाने में 40 करोड़ बैरल तेल है। अमेरिका का कहना है कि जब तेल की कीमतें कम होंगी तो फिर से भंडार करने पर जोर दिया जाएगा।

वाइट हाउस का कहना है कि सऊदी अरब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का साथ दे रहा है। जब ओपेक प्लस प्रोडक्शन में कटौती करेगा तो तेजी से तेल की कीमतें बढ़ेंगी। वहीं एनर्जी इन्फॉर्मेशन ऐडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक 1.5 करोड़ बैरल तेल निकालने से अमेरिका की एक दिन की भी जरूरत नहीं पूरी होने वाली है। बात यह भी है कि अमेरिका मध्यावधि चुनावकी तैयारी कर रहा है। इसलिए बाइडन प्रशासन नहीं चाहता की तेल की बढ़ती कीमतों का असर जनता प र पड़े।

अमेरिका जो तेल का उत्पादन करता है वह भी अब तक कोविड के पहले के उत्पादन के बराबर नहीं पहुंच पाया है। अमेरिका में मध्यावधि चुनाव में प्रतिनिधि सभा, सीनेट के एक तिहाई और राज्य के हजारों विधायी और कार्यकारी पदाधिकारियों का चुनाव किया जाता है। अपने परिमाण और महत्व के कारण, ये चुनाव राष्ट्रपति चुनावों की तुलना में बहुत कम ध्यान आकर्षित करते हैं और इनमें बहुत कम मतदान होता है।

लेकिन 8 नवंबर 2022 को होने वाले इन मध्यावधि चुनाव, जो इतिहास में सबसे करीबी विभाजित कांग्रेस में से एक में हो रहे हैं, के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। डेमोक्रेट्स के पास वर्तमान में 435 में से केवल 10 सीटों के अंतर से प्रतिनिधि सभा में बहुमत है। यह 1955 के बाद से सबसे कम सदन बहुमत है। उनके पास सीनेट में बहुमत बिल्कुल भी नहीं है, जो 50-50 में विभाजित है, जो उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के टाई-ब्रेकिंग वोट पर निर्भर है।

इससे यह ऐतिहासिक रूप से असंभव हो जाता है कि डेमोक्रेट सदन में बने रहेंगे। गृहयुद्ध के बाद से, राष्ट्रपति की पार्टी ने 1934 (महामंदी), 1998 (बिल क्लिंटन का महाभियोग) और 2002 (11 सितंबर के आतंकवादी हमलों के बाद पहला चुनाव) को छोड़कर हर मध्यावधि चुनाव में सीटें गंवाई हैं। रिपब्लिकन को सदन लेने के लिए केवल पांच सीटें हासिल करने की जरूरत है। (भाषा से इनपुट्स के साथ)


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