विश्व

अमेरिका की मदद से तालिबान ने किया IS पर अंकुश लगाने से इन्कार, दोहा में दो दिवसीय वार्ता से पहले अपनाया सख्त रुख

Deepa Sahu
9 Oct 2021 3:58 PM GMT
अमेरिका की मदद से तालिबान ने किया IS पर अंकुश लगाने से इन्कार, दोहा में दो दिवसीय वार्ता से पहले अपनाया सख्त रुख
x
बंदूक के बल पर अफगानिस्तान की सत्ता में काबिज तालिबान ने शनिवार को आइएस समेत अन्य आतंकी संगठनों पर अंकुश लगाने में अमेरिका की मदद करने की संभावनाओं को सिरे से खारिज कर दिया।

इस्लामाबाद, बंदूक के बल पर अफगानिस्तान की सत्ता में काबिज तालिबान ने शनिवार को आइएस समेत अन्य आतंकी संगठनों पर अंकुश लगाने में अमेरिका की मदद करने की संभावनाओं को सिरे से खारिज कर दिया। अफगानिस्तान से अगस्त में अमेरिकी सेना की वापसी के बाद पहली बार दोनों पक्षों में होने जा रही सीधी वार्ता से पूर्व तालिबान ने सख्त रुख अपनाया है। अमेरिका व तालिबान के प्रतिनिधियों के बीच कतर की राजधानी दोहा में आयोजित दो दिवसीय वार्ता रविवार को समाप्त होगी। हालांकि, अमेरिका ने स्पष्ट किया है कि यह वार्ता तालिबान को मान्यता देने की शुरुआत कतई नहीं है।

दोनों पक्षों के पदाधिकारियों ने बताया कि वार्ता के दौरान आतंकी संगठनों पर लगाम लगाने तथा अफगानिस्तान से विदेशी व अफगान नागरिकों की निकासी समेत अन्य मुद्दों पर चर्चा हो सकती है। तालिबान ने निकासी के मुद्दे पर लचीला रुख अपनाने के संकेत दिए हैं। तालिबान के राजनीतिक प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने बताया, 'अफगानिस्तान में तेजी से सक्रिय हो रहे इस्लामिक स्टेट (आइएस) समूह से जुड़े संगठनों को लेकर हमारी ओर से अमेरिका को किसी तरह का सहयोग नहीं दिया जाएगा। हम आइएस से अपने दम पर निपटने में सक्षम हैं।'उधर, अमेरिका के एक अधिकारी ने शुक्रवार को बताया था कि दोहा में होने वाली वार्ता का उद्देश्य तालिबान प्रतिनिधियों से यह वादा लेना होगा कि वे अमेरिकी व अन्य विदेशी नागरिकों, अमेरिका सरकार तथा सेना के मददगार रहे अफगान सहयोगियों की निकासी की अनुमति देगा। तालिबान के साथ यह वार्ता इसलिए भी अहम हो जाती है कि अमेरिकी उप विदेश मंत्री वेंडी शरमन दो दिनों पहले ही अफगानिस्तान के मुद्दे पर पाकिस्तानी प्रतिनिधियों के साथ इस्लामाबाद में वार्ता कर चुकी हैं।
उल्लेखनीय है कि आइएस पूर्वी अफगानिस्तान में वर्ष 2014 से शिया मुसलमानों को निशाना बना रहा है। वह अमेरिका के लिए भी बड़ा खतरा है। हाल ही में मस्जिद पर हुए हमले में भी उससे संबंधित संगठन का हाथ था, जिसमें अल्पसंख्यक शिया समुदाय के 46 लोग मारे गए थे।
Next Story