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ताइवान स्‍ट्रेट बना महाशक्तियों का जमावड़ा, तैनात किए महाविनाशक हथियार, नैंसी यात्रा के बाद विवाद गहराया

Neha Dani
30 Aug 2022 2:55 AM GMT
ताइवान स्‍ट्रेट बना महाशक्तियों का जमावड़ा, तैनात किए महाविनाशक हथियार, नैंसी यात्रा के बाद विवाद गहराया
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चीन के किसी भी सैन्‍य प्रहार का करारा जबाव देने के लिए अमेरिकी सेना पूरी तरह से तैयार थी।

अमेरिकी कांग्रेस की अध्‍यक्ष नैंसी पेलोसी की यात्रा के बाद चीन और अमेरिका के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है। दोनों देश अपने अत्‍याधुनिक हथ‍ियारों का जमकर प्रदर्शन कर रहे हैं। ताइवान स्‍ट्रेट पर अमेरिकी सेना ने अपने महाव‍िनाशक एयरक्राफ्ट कैरियर को तैनात किया है। नैंसी पेलोसी की यात्रा के पूर्व चीनी राष्‍ट्रपति शी चिनफ‍िंग और अमेरिकी राष्‍ट्रपति जो बाइडन की फोन वार्ता के बाद ही यह तय माना जा रहा था कि दोनों देशों के बीच तनाव और गहरा सकता है। दोनों देशों के बीच ताइवान को लेकर युद्ध जैसी स्थिति उत्‍पन्‍न हो गई है। अब यह माना जा रहा है कि या तो चीन को पीछे हटना होगा नहीं तो ताइवान के मामले में चीन और ताइवन में टकराव तेज हो सकता है। आइए जानते हैं कि इस पर विशेषज्ञों की क्‍या राय है।


1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद दोनों देशों के बीच तनाव गहरा गया है। उन्‍होंने कहा कि चीन लगातार ताइवान को अपने अत्‍याधुनिक हथियारों की प्रदर्शनी कर रहा है। वह ताइवान को युद्ध के जरिए नहीं बल्कि भय दिखाकर अपने देश में मिलाने की कोशिश कर रहा है। वह अंतिम समय तक अमेरिका को भांपने की कोशिश में जुटा है कि वह ताइवान का कितना साथ देता है। उधर, बाइडन प्रशासन ने ताइवान पर अपने सभी पत्‍ते नहीं खोले हैं। वह चीन को दुविधा में रखे हैं। बाइडन की इस नीति से चीन असमंजस में है कि वह क्‍या रणनीति अपनाए। यही कारण है कि चीन अपने सैन्‍य अभ्‍यास के जरिए अमेरिका की परीक्षा ले रहा है।


2- प्रो पंत का कहना है कि हालांकि, अमेरिका ने ताइवान के समीप अपने सातवें बेड़े को भेजा, लेकिन उसने यह कहकर चीन को भ्रम में डाल दिया कि यह उसका रुटीन दौरा है। इसका ताइवान और चीन विवाद से कोई लेना-देना नहीं है। अलबत्‍ता चीन यह जानता है कि अमेरिकी नौसेना के सातवें बेड़े का मतलब क्‍या होता है। यह भी बाइडन प्रशासन की एक चुतराई भरी नीति है। उन्‍होंने कहा कि नैंसी की यात्रा के बाद अमेरिका ताइवान को लेकर थोड़ा खुला है। नैंसी को ताइवान यात्रा पर भेजकर अमेरिका ने चीन को यह संदेश दे दिया है कि तुम चाहे जो भी करो उसे जो करना होगा वह करके ही मानेगा। यही कारण है कि चीन की तमाम धमकियों के बावजूद नैंसी ताइवान की धरती पर उतरी।


3- अमेरिकी सेना को जिस तरह से चीनी सेना ने ललकारा है उससे अमेरिका की प्रतिष्‍ठा भी दांव पर लगी है। ऐसे में अमेरिकी सेना के लिए यह बड़ी चुनौती है कि वह किसी भी हाल में नैंसी को ताइवान तक पहुंचाए। हालांकि, शुरुआत में नैंसी की ताइवान यात्रा पर मीडिया पर बहुत ज्‍यादा नहीं कहा गया, लेकिन अमेरिकी सेना की तैयारी से यह साफ हो गया है कि नैंसी ताइवान जरूर जाएंगी। प्रो पंत ने कहा कि ऐसा लगता है कि नैंसी की ताइवान यात्रा को लेकर कूटनीतिक समाधान फेल हो जाने के बाद इस स्थिति को अमेरिकी सेना पर छोड़ दिया गया है। अमेरिकी सेना के पास नैंसी को ताइवान तक की सुरक्षित यात्रा कराने का जिम्‍मा है। इसके लिए अमेरिकी सेना ने हर तरह की परिस्‍थति से निपटने के लिए रणनीति तैयार की होगी। उन्‍होंने कहा कि अगर इस यात्रा में चीन कोई अवरोध उत्‍पन्‍न करता है तो उसके लिए अमेरिकी सेना पूरी तरह से तैयार है।

4- प्रो पंत ने कहा कि अमेरिकी सेना का प्रशांत महासागर क्षेत्र में बड़ा जमावड़ा है। प्रशांत महासागर में एयरक्राफ्ट कैरियर यूएसएस अब्राहम लिंकन, लैंडिंग हेलीकाप्‍टर डाक यूएसएस इसेक्‍स, 36 अन्‍य युद्धपोत, तीन सबमरीन हवाई द्वीप में रिमपैक अभ्‍यास में हिस्‍सा ले रहे हैं। उन्‍हें कहा कि आपात स्थिति में उन्‍हें ताइवान की ओर मोड़ा जा सकता है। वहीं अमेरिका के दो एचसी- 130 जे विमान भी ओकिनावा पहुंच चुके हैं। उनके साथ कई केसी-135 टैंकर भी पहुंचे हैं जो हवा में तेल भर सकते हैं। उन्‍होंने कहा कि अगर पेलोसी ताइवान की यात्रा करती है तो राजनयिक प्रोटोकाल के तहत ताइवान की प्रेसिडेंट से उनका मिलना चीन को भड़काने वाला हो सकता है।



नैंसी पेलोसी की एशियाई देशों की यात्रा

गौरतलब है कि नैंसी पेलोसी एक सैन्‍य व‍िमान C-40C से वाशिंगटन से रवाना हुई थी। पेलोसी का मलेशिया, जापान और साउथ कोरिया जाने का भी कार्यक्रम था। अंत समय तक नैंसी की ताइवान यात्रा पर अमेरिका पूरी तरह से मौन रहा। अंत में यह ऐलान किया गया कि नैंसी ताइवान जाएंगी। अमेरिका ने महाविनाशक परमाणु एयरक्राफ्ट कैरियर यूएसएस रोनाल्‍ड रीगन, जापान के ओकिनावा के पास तैनात एसाल्‍ट शिप यूएसएस त्रिपोली और यूएसएस अमेरिका को जापान के सासेबो में तैनात किया गया था। अमेरिकी सेना चीन से निपटने की हर तरफ से धेराबंदी की थी। चीन के किसी भी सैन्‍य प्रहार का करारा जबाव देने के लिए अमेरिकी सेना पूरी तरह से तैयार थी।

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