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गर्भावस्था के दौरान तो मां से बच्चे में संक्रमण का खतरा नहीं रहता है,
दुनिया में कोरोना महामारी से बचाव के लिए टीकाकरण शुरू हुए सालभर हो गया है। इस दौरान टीके के प्रभाव-दुष्प्रभाव पर कई अध्ययन आ चुके हैं। हर शोध में पाया गया है कि टीके सुरक्षित हैं और बड़ी आबादी को संक्रमण से बचाते हैं। इसके बावजूद गर्भवती और स्तनपान करा रही महिलाओं में टीकाकरण की दर बहुत धीमी है। अमेरिका में सेंटर फार डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने हाल ही में इस संबंध में एडवाइजरी जारी की है, जिसमें टीके की उपयोगिता पर जोर दिया गया है। अमेरिका की इमोरी यूनिवर्सिटी के इम्युनोलाजिस्ट मैथ्यू वुडरफ ने इस संबंध में कुछ अहम तथ्यों को सामने रखा है।
टीके से बना रखी है दूरी : सीडीसी की एडवाइजरी में बताया गया है कि सामान्य महिलाओं की तुलना में गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण आधा है। अलग-अलग समुदायों के हिसाब से भी इसमें अंतर पाया गया। अश्वेतों में 16 प्रतिशत से भी कम गर्भवती महिलाओं ने टीका लगवाया है। भारत में इस संबंध में भले कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन यहां भी स्थिति बहुत अलग नहीं है।
अलग तरह से काम करता है इम्यून सिस्टम : गर्भावस्था के दौरान महिलाओं का इम्यून सिस्टम अलग तरह से काम करता है। सामान्य तौर पर किसी बाहरी बैक्टीरिया के प्रवेश पर प्रतिक्रिया देने वाला इम्यून सिस्टम एक संतुलन बनाते हुए शरीर में एक बच्चे को पलने और बढ़ने का मौका देता है। ऐसी स्थिति में कोई गंभीर संक्रमण इम्यून सिस्टम के इस संतुलन को बिगाड़ सकता है, जो मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है। कोरोना का संक्रमण भी इतना ही घातक है।
संक्रमण से बचने का सुरक्षा कवच देता है टीका : गर्भावस्था के दौरान टीकाकरण के बाद यदि शरीर पर कोरोना वायरस का हमला होता है, तो खतरा कम रहता है। निश्चित तौर पर यह गर्भ में पल रहे बच्चे की भी सुरक्षा करता है। भले ही कोई वैक्सीन 100 प्रतिशत प्रभावी न हो, लेकिन उससे मिलने वाली थोड़ी सी सुरक्षा भी फायदा पहुंचाती है।
मां को लगे टीके से बच्चे को भी होता है फायदा : एक अध्ययन में सामने आया है कि टीका मां के साथ-साथ बच्चे को भी फायदा पहुंचाता है। मां के शरीर में बनी एंटीबाडी गर्भनाल के रास्ते बच्चे तक भी पहुंचती है। यह खोज बहुत अहम है। गर्भावस्था के दौरान तो मां से बच्चे में संक्रमण का खतरा नहीं रहता है,
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