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अध्ययन: मरते हुए तारे भी पैदा कर सकते हैं नए ग्रह

Gulabi
4 Feb 2022 7:27 AM GMT
अध्ययन: मरते हुए तारे भी पैदा कर सकते हैं नए ग्रह
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ब्रह्माण्ड के बारे में हमारी जानकारी सीमित है, लेकिन
ब्रह्माण्ड (Universe) के बारे में हमारी जानकारी सीमित है. लेकिन जितनी भी है वह कम नहीं है. कई बार हमें ऐसी जानकारी मिलती है जो हमारे पुराने ज्ञान को बदलने पर मजबूर कर देती है. आमतौर पर माना जाता है कि जिन तारों से ग्रह (Planets) का निर्माण (Formation of Planet) होता है, ग्रह उम्र में उनसे ज्यादा छोटे नहीं होते हैं. खुद हमारे सौरमंडल ( के ग्रहों की उम्र और सूर्य की उम्र में ज्यादा अंतर नहीं है. लेकिन नए अध्ययन ने इस धारणा को बदलने वाले नतीजे दिए हैं. इसमें पाया गया है कई मरते हुए तारों से भी ग्रह निर्माण हो सकता है.
बदलनी होगी ग्रहों की धारणा
केयू ल्युवेन के खगोलविदों ने अपनी खोज में पाया है कि आमतौर पर ग्रह निर्माण की जो प्रक्रिया होती है उससे उलट भी प्रक्रिया हो सकती है. जब तारे अपने अंतिम समय के पास हों तब भी वे ग्रहों के निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं यदि इसकी पुष्टि हो गई तो ग्रह निर्माण के सिद्धांतों में बदलाव करने की जरूरत पड़ेगी.
हमारे सौरमंडल का निर्माण
हमारे सौरमंडल पृथ्वी जैसे ग्रहों के निर्माण की प्रक्रिया सूर्य के निर्माण के ज्यादा देर बाद शुरू नहीं हुआ था. हमारे सूर्य के 4.6 अरब साल पहले बनने के बाद कुछ लाख सालों में ही सूर्य के आसपास का पदार्थ प्रोटोप्लैनेट के रूप में जमा होने लगा था. उसी पदार्थ की धूल और गैस से बनी प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क से ग्रहों की उत्पत्ति हुई जिसकी वजह से सभी ग्रह एक तल में सूर्य का चक्कर लगाते हैं.
और तरीके से भी बन सकती है डिस्क
लेकिन धूल और गैसे से बनी इन प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क के लिए जरूरी नहीं है कि वह नवजात तारों के आसपास ही बनें. वे तारों की निर्माण प्रक्रिया से स्वतंत्र रूप से भी विकसित हो सकती हैं. इस तरह के निर्माण का उदाहरण द्विज तारों के आसपास देखने को मिल सकता है जिसमें से एक तारा मर रहा हो. द्विज तारे दो तारों का जोड़ा होता है जो एक दूसरे का चक्कर लगाते हुए द्विज तंत्र बनाते हैं.
द्विज तारों में डिस्क
सामान्य तौर पर जब सूर्य जैसे मध्यम आकार का तारा अपने अंत समय के पास पहुंचता है तो उसके वायुमंडल का बाहरी हिस्सा अंतरिक्ष में बिखर जाता है जदिसके बाद वह धीरे धीरे मरने लगता है इस अवस्था में उसे सफेद बौना कहते हैं. लेकिन द्विज तारों में दूसरे तारे के गुरुत्व खिंचाव के कारण मरते हुए तारे का पदार्थ एक सपाट घूमती डिस्क का रूप ले लेता है.
मिलती जुलती डिस्क
द्विज तारों में बनी यह डिस्क प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क से बहुत ज्यादा मिलती जुलती है जिसे खगोलविद हमारी मिल्की वे गैलेक्सी के युवा तारों के आसपास देखा करते हैं. यह जानकारी तो नई नहीं है, लेकिन जो नई बात पता चली है वह यह है कि इस डिस्क में ग्रहों के निर्माण के संकेतअसमान्य रूप दिखाई नहीं देते हैं. ऐसा दस में से एक द्विज तारों के तंत्र में देखने को मिल ही जाता है.
एक विशाल छेद
शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने अध्ययन की गईं दस प्रतिशत द्विज तारों वाली डिस्क में विशाल छेद देखा है. यह इस बात का संकेत है कि कुछ उसके आसपास तैर रहा है जिसने उस छेद के इलाके का पदार्थ जमा कर लिया है. यही पदार्थ ग्रह के निर्माण की प्रक्रिया पर काम कर रहे होंगे.
शोधकर्ताओं का कहना है कि वह ग्रह द्विज तारों के निर्माण के समय तो नहीं बना होगा. और ज्यादा प्रयासों के बाद उन्होंने पाया कि इस तरह के और ज्यादा ग्रहों के मौजूद होने की संभावना है. ऐसे छेद वाली डिस्क बनने के दौरान उन्होंने पाया कि मरते हुए तारे की सतह पर लोहे जैसे भारी तत्वों की बहुत कमी थी. इससे पता चलता है कि इन तत्वों वाली धूल ग्रह में चली गई होगी. अब शोधकर्ता अपने अध्ययन के नतीजों की खुद पुष्टि करना चाहते हैं.
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