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लेकिन इन सलाह को दीर्घावधिक संदर्भ में लिया जाना चाहिए और उसकी पुष्टि व्यापक स्तर पर होनी चाहिए।
कैंसर अपने आपमें एक घातक बीमारी होने के साथ ही कई अन्य बीमारियों का भी खतरा बढ़ा देता है। कोपेनहेगन के स्टेनो डायबिटीज सेंटर के विज्ञानियों द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया है कि कुछ खास प्रकार के कैंसर रोगियों को डायबिटीज होने का ज्यादा खतरा होता है। ऐसी स्थिति में जिन्हें डायबिटीज की बीमारी नहीं होती है, उनकी तुलना में डायबिटीज से ग्रस्त होने वाले कैंसर रोगियों की मृत्युदर अधिक होती है। यह अध्ययन डायबिटीज केयर जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
यूनिवर्सिटी आफ कोपेनहेगन में डिपार्टमेेंट आफ एक्सरसाइज एंड स्पोर्ट्स में शोधकर्ता एसोसिएट प्रोफेसर लाइके सायलो और द नेशनल सेंटर फार कैंसर सर्वाइवरशिप एंड जनरल लेट इफेक्ट्स (सीएएसटीएलई) में प्रोफेसर क्रिस्टोफर जोहान्सन तथा सेंटर फार जनरल प्रैक्टिस में कापलैब डाटाबेस की क्रिस्टीन लाइक्केगार्ड एंडरसन ने बताया कि हमारे अध्ययन में पाया गया है कि जो लोग लंग (फेफड़ा), पैनक्रियाएटिक (अग्नाशय), ब्रेस्ट (स्तन), ब्रेन (मस्तिष्क), यूरिनरी ट्रैक्ट (मूत्रमार्ग) या यूटेराइन (गर्भाशय) कैंसर से पीडि़त होते हैं, उनमें डायबिटीज होने का खतरा ज्यादा होता है।
कैसे किया अध्ययन :
शोधकर्ताओं ने डेनमार्क के 13 लाख लोगों के 11.2 करोड़ ब्लड सैैंपल परीक्षण के व्यापक डाटा का विश्लेषण किया। इनमें से 50 हजार से ज्यादा लोगों को कैंसर था। यद्यपि अध्ययन में यह बात स्पष्ट रूप से नहीं बताई गई है कि कुछ खास प्रकार के कैंसर से डायबिटीज का जोखिम क्यों बढ़ जाता है, लेकिन शोधकर्ताओं ने सिद्धांत बताए हैं, जिनके आधार पर नए अध्ययन किए जा सकते हैं।
लाइके सायलो ने बताया कि विभिन्न प्रकार की थेरेपी से डायबिटीज का जोखिम बढ़ सकता है। कैंसर तो वैसे ही पूरा शरीर प्रभावित होता है। हम यह भी जानते हैं कि कैंसर ग्रस्त कोशिकाएं ऐसे पदार्थों का स्राव करती हैं, जो विभिन्न अंगों को प्रभावित करते हैं और संभवत: इसी से डायबिटीज का जोखिम बढ़ता है। उनके मुताबिक, प्रयोगशाला में जीव पर किए गए अध्ययन में भी इसी के संकेत हैं। अध्ययन में यह भी पाया गया है कि जिन कैंसर रोगियों को डायबिटीज नहीं हुआ, वे कैंसर के बाद डायबिटीज से भी ग्रस्त होने वाले रोगियों की तुलना में ज्यादा दिन तक जीवित रहे।
विश्लेषण में पाया गया कि कैंसर के बाद डायबिटीज से ग्रस्त होने पर मृत्युदर 21 प्रतिशत रही। यहां ध्यान देने की बात यह है कि यह अध्ययन किसी खास प्रकार के कैंसर को लेकर नहीं किया गया है, बल्कि उपरोक्त सभी प्रकार के कैंसर के बाद होने वाली डायबिटीज की बीमारी का व्यक्तियों के जीवन पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया गया है।
रोकथाम की पहल और जांच
हेल्थकेयर सिस्टम में अभी भी कैंसर रोगियों की डायबिटीज की जांच को अनिवार्य रूप से शामिल नहीं किया गया है। यदि कैंसर रोगियों की डायबिटीज की स्क्रीनिंग भी की जाए तो इससे रोगियों का जीवन स्तर और बचने की संभावना को बढ़ाया जा सकता है। यह भविष्य के लिए बेहतर होगा।
शोधकर्ताओं ने बताया कि हमारे अध्ययन के निष्कर्ष इस बात की जरूरत पर बल देते हैं कि हमने जिन कैंसर रोगों के संदर्भ में डायबिटीज का जोखिम बढ़ा हुआ पाया है, कम से कम वैसे रोगियों के मामले में डायबिटीज का टेस्ट कराने पर निश्चित रूप से विचार किया जाना चाहिए। मतलब यह कि लंग, ब्रेस्ट, ब्रेन, यूटेराइन तथा यूरिनरी ट्रैक्ट कैंसर के रोगियों के मामले इस पर अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिए। चूंकि हममें डायबिटीज के इलाज की समझ बढ़ चुकी है, इसलिए कैंसर रोगियों के मामले में यदि समय पर डायबिटीज का भी इलाज शुरू हो जाए तो रोगी को कुछ ज्यादा दिन तक जीवित रखा जा सकता है।
इस कारण कैंसर रोगियों के बारे में यह जानना भी महत्वपूर्ण होगा कि स्क्रीनिंग से रोगियों के बचने की संभावना तथा जीवन की गुणवत्ता पर क्या असर पड़ता है और उससे कितने दिन का 'अतिरिक्त' जीवन मिल पाता है। डायबिटीज पर अंकुश के लिए रोगी को विभिन्न प्रकार के व्यायाम की भी सलाह दी जा सकती है। लेकिन इन सलाह को दीर्घावधिक संदर्भ में लिया जाना चाहिए और उसकी पुष्टि व्यापक स्तर पर होनी चाहिए।
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