
नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने मंगलवार को चेताया कि भारत जलवायु संबंधित प्रतिबद्धताओं पर हुई कुछ प्रगति से पीछे हटने और गैस की आसमान छूती अंतरराष्ट्रीय कीमतों की वजह से कोयले के इस्तेमाल पर मजबूर होगा.
अमेरिका में वाशिंगटन के द ब्रुकिंग्स इंटीट्यूशन में 'भारत की आर्थिक संभावनाएं और विश्व अर्थव्यवस्था में भूमिका' विषय पर वित्त मंत्री ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने ऊर्जा की उपलब्धता तथा उसकी कीमतें और खाद की कीमतें दो प्रमुख संकट हैं. उन्होंने यह भी कहा कि ये भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ये बाहरी तत्व हैं.
वित्त मंत्री अमेरिका की आधिकारिक यात्रा पर हैं. इस दौरान वे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) तथा विश्व बैंक की वार्षिक बैठकों, और जी20 वित्त मंत्रियों तथा सेंट्रल बैंक गवर्नर (एफसीबीजी) की बैठकों में भाग लेंगी.
सीतारमन ने ब्रुकिंग्स के वरिष्ठ साथी ईश्वर प्रसाद के साथ फायरसाइड चैट के दौरान कहा, 'ऐसे समय में जब दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाएं जलवायु संकट के समाधान की कोशिशों में लगी हैं और कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टिज (सीओपी)-21, 22 वगैरह में अपनी प्रतिबद्धता जता रही हैं, जो हाल ही में स्कॉटलैंड में हुआ, यह संक्रमण काल है और आप चाहते हैं कि प्राकृतिक गैस उपलब्ध हो.'
उन्होंने आगे कहा, 'भारत ने साबित किया है कि उसने पेरिस में की गई राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा किया है और आगे भी करना जारी रखेगा. पेरिस प्रतिबद्धताओं को पूरी तरह से हमने अपने संसाधनों से पूरा किया. लेकिन इस मौके पर, अगर प्राकृतिक गैस हमारी पहुंच से दूर जा रही है, तो जाहिर है, आप एक हद तक कोयले के इस्तेमाल की ओर लौटने की सोचते हैं क्योंकि आपको बुनियादी स्तर की बिजली की आवश्यकता होती है और वह सौर या पवन ऊर्जा से नहीं पाई जा सकती.'
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ के आंकड़ों के अनुसार, 2011 में, भारत ने प्राकृतिक गैस की अपनी मांग का लगभग 72 प्रतिशत घरेलू उत्पादन से पूरा किया. बाकी 28 प्रतिशत आयात किया गया था.
