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म्यांमार में चीन ने सैन्य शासन को मान्यता नहीं दी है लेकिन सैन्य सरकार से चीन के बेहतर संबंध हैं। चीन ऐसा ही अफगानिस्तान मामले में कर रहा है।
काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से चीन अफगानिस्तान में जगह बनाने को आतुर है। हाल ही में तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा था कि अफगानिस्तान की आर्थिक हालत काफी खराब है और देश चलाने के लिए हमें आर्थिक मदद की दरकार है। उन्होंने स्वीकारा कि शुरुआती तौर पर हम चीन की मदद से आर्थिक हालात सुधारने की कोशिश कर रहे हैं।
ताजा अपडेट ये है कि कतर में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के उप प्रमुख अब्दुल सलाम हनफी ने चीन के उप विदेश मंत्री वू जियानघाओ के साथ फोन पर बातचीत की है। इस बात की जानकारी तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने दी है। दोनों पक्षों ने अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति और भविष्य के संबंधों पर चर्चा की है।
वू जियानघाओ ने कहा है कि चीन काबुल में अपना दूतावास बनाए रखेगा और हमारे संबंध इतिहास की तुलना में मजबूत होंगे। चीन ने कहा है कि अफगानिस्तान क्षेत्र की सुरक्षा और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। चीन ने आगे कहा है कि कोरोना वायरस को लेकर अफगानिस्तान में जारी मानवीय सहायता जारी रहेगी।
अफगानिस्तान में चीन की म्यांमार पॉलिसी
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से पहले ही चीन, तालिबान से बातचीत कर रहा है। तालिबान के बड़े नेता मुल्ला बरादर ने इसी कड़ी में बीजिंग का दौरा किया था। कई चीनी राजनयिक भी तालिबानी नेताओं से मिले हैं फिर भी चीन तालिबान को मान्यता नहीं दे रहा है। एक्सपर्ट्स चीन के अफगानिस्तान पॉलिसी को म्यांमार की तरह देख रहे हैं। म्यांमार में चीन ने सैन्य शासन को मान्यता नहीं दी है लेकिन सैन्य सरकार से चीन के बेहतर संबंध हैं। चीन ऐसा ही अफगानिस्तान मामले में कर रहा है।
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