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अमेरिका में जलवायु संकट के विरुद्ध खड़े हुए सिख संगठन

Subhi
21 Oct 2021 1:52 AM GMT
अमेरिका में जलवायु संकट के विरुद्ध खड़े हुए सिख संगठन
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वैश्विक पर्यावरण संगठन ‘इकोसिख’ ने ग्लासगो में 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन से पहले इस मुद्दे पर विभिन्न धर्मों के नेताओं की एक प्रमुख प्रार्थना सभा में सिख समुदाय का प्रतिनिधित्व किया।

वैश्विक पर्यावरण संगठन 'इकोसिख' ने ग्लासगो में 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी-26) से पहले इस मुद्दे पर विभिन्न धर्मों के नेताओं की एक प्रमुख प्रार्थना सभा में सिख समुदाय का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रपति जो बाइडन के विशेष दूत जॉन केरी के वरिष्ठ सलाहकार जेसे यंग को धार्मिक नेताओं के बयान की प्रति भी दी।

इस मुद्दे पर विभिन्न धर्मों के नेताओं की प्रार्थना सभा में किया प्रतिनिधित्व
दरअसल, जलवायु आपात स्थिति के मुद्दे पर जोर देने के लिए अमेरिकी विदेशी विभाग के बाहर विभिन्न धर्मों के नेता जमा हुए थे। 'इकोसिख' समूह ने बताया कि पोप फ्रांसिस द्वारा आयोजित 'धर्म और विज्ञान' सम्मेलन के बाद एक रैली आयोजित की गई, जिसमें धार्मिक नेताओं ने साझा तौर पर दुनिया भर के नेताओं से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय करने की अपील की।
बयान में कहा गया कि पृथ्वी अभूतपूर्व पारिस्थितिकी संकट का सामना कर रही है और ऐसे में ग्लासगो में 31 अक्टूबर से 12 नवंबर के बीच आयोजित हो रहा सीओपी-26 सम्मेलन आशा की आखिरी किरण है। इकोसिख समूह के अध्यक्ष रजवंत सिंह ने कहा, इस मौजूदा संकट के खिलाफ खड़े होने की जिम्मेदारी हम पर है। यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि हमारे नेता मानवता के लिए बेहतरीन कदम उठाएं। आइए जानते हैं दुनिया की अन्य महत्वपूर्ण खबरें...
जलवायु संकट पर हसीना ने की विकसित देशों की आलोचना
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने पिछले दशकों में जलवायु संकट से निपटने के खाली संकल्पों के लिए विकसित देशों पर हमला किया है। उन्होंने विश्व नेताओं से संकल्प को क्रिया में बदलने की अपील भी की। ब्रिटिश दैनिक द फाइनेंशियल टाइम्स मंडे में छपे एक लेख में हसीना ने लिखा कि यदि पश्चिमी देश वास्तव में विज्ञान को लेकर गंभीर हैं और निर्णायक काम करते हैं तो सीओपी-26 को सफल बनाया जा सकता है।
उन्होंने लिखा कि हमारे समय की कड़वी सच्चाई यह है कि जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई कभी भी बहुत जरूरी नहीं समझी गई। पश्चिमी सरकारें मेरे जैसे देशों को सुरक्षित रखने के लिए कार्बन उत्सर्जन में उतनी तेजी से कटौती नहीं कर रही है जितनी कि जरूरत है। उन्होंने कहा कि विकसित देश जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित देशों की जरूरतों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
प्रगतिशील एजेंडे पर बाइडन से मिले भारतवंशी रो खन्ना और जयपाल
अमेरिका में 'बिल्ड बैक बेटर योजना' को संसद में पारित कराने की कोशिशों के बीच भारतीय-अमेरिकी डेमोक्रेटिक सांसद प्रमिला जयपाल और रो खन्ना ने प्रगतिशील एजेंडे पर राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाकात की। इस दौरान अन्य सांसद भी शामिल रहे। उन्होंने सामाजिक सुरक्षा में बदलाव और शिक्षा व जलवायु पर बड़े निवेश के संबंध में चर्चा भी की।
व्हाइट हाउस ने बताया कि बिल्ड बैक बेटर एजेंडा अमेरिका में नौकरियां सृजित करने, करों में कटौती करने और कामकाजी परिवारों के लिए कम लागत की एक महत्वाकांक्षी योजना है। इसका भुगतान टैक्स कोड को निष्पक्ष बनाकर औ सबसे धनी व बड़े निगमों को उचित हिस्से के रूप में किया जाना है। प्रोग्रेसिव कॉकस की प्रमुख जयपाल ने बाइडन के साथ बैठक को विचारशील बताया। उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि राष्ट्रपति हर किसी को आगे बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। सांसद रो खन्ना ने कहा, मुझे देश के एक प्रमुख कार्यक्रम पर चर्चा के लिए बाइडन से मिलकर खुशी हुई।
अलीबाबा पर कार्रवाई के बाद जैक मा पहले विदेश दौरे पर
एकाधिकार विरोधी नियमों के उल्लंघन को लेकर चीन की सरकार के निशाने पर आए चीनी उद्योगपति और ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा के संस्थापक जैक मा, कृषि अध्ययन दौरे के लिए यूरोप गए हैं। घटनाक्रम के बाद यह जैक मा का पहला विदेशी दौरा है। यूरोप जाने से पहले, जैक मा चर्चाओं से दूर अपने परिवार के साथ निजी समय बिताने के लिए हांगकांग में थे।
हांगकांग के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने बुधवार को अपनी खबर में यह बताया कि जैक मा पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर कृषि और प्रौद्योगिकी अध्ययन दौरे के लिए इस समय स्पेन में हैं। वे यहां कई व्यापारिक बैठकें भी करेंगे। एक साल से अधिक समय में यह उनकी पहली विदेश यात्रा होगी। खबर के मुताबिक इससे पहले, जैक मा ने 2018 में हर तीन दिन में से एक दिन यात्रा में बिताया था। जैक मा ने 2019 में अपने 55वें जन्मदिन पर अलीबाबा के चेयरमैन का पद छोड़ दिया था। उनके अचानक इस तरह से पद छोड़ने के फैसले से उनके चीन सरकार के निशाने पर होने से जुड़ी अटकलें तेज हो गई थीं।

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