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दुनिया से तालिबान सरकार को मान्यता देने की अपील भी कर चुका है
Shock to Pakistan, America, Taliban support, sanctions on governments, a group of 22 Republican Senators from America, Afghanistan, Taliba, sanctions on foreign governments, foreign governments,विधेयक में विदेश मंत्री से एक रिपोर्ट की मांग की गई है कि 2001 से 2020 के बीच तालिबान को समर्थन देने में पाकिस्तान की भूमिका, जिसके कारण अफगानिस्तान की सरकार गिरी... साथ ही पंजशीर घाटी तथा अफगान प्रतिरोध के खिलाफ तालिबान के हमले में पाकिस्तान के समर्थन के बारे में उनका आकलन बताने के लिए कहा गया है। बता दें कि पाकिस्तान कई बार तालिबान का समर्थन कर चुका है और दुनिया से तालिबान सरकार को मान्यता देने की अपील भी कर चुका है।
इसमें उन क्षेत्रों की पहचान के बारे में राष्ट्रपति की तरफ से रिपोर्ट मांगी गई है जहां क्षेत्र में चीन, रूस और तालिबान की तरफ से पेश आर्थिक एवं सुरक्षा चुनौतियों के समाधान में भारत के साथ राजनयिक, आर्थिक और रक्षा सहयोग को बढ़ाया जा सके। इसमें इस आकलन के बारे में भी बताने के लिए कहा गया है कि तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद भारत की सुरक्षा स्थितियों में बदलाव का भारत और अमेरिका के बीच सहयोग पर किस तरह से असर होगा।
बिल पेश करते वक्त क्या कहा सीनेट ने?
जिम रिश ने सीनेट के पटल पर विधेयक पेश करने के बाद कहा, हम अफगानिस्तान से अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रशासन की बेतरतीब वापसी के गंभीर प्रभावों पर गौर करना जारी रखेंगे। ना जाने कितने ही अमेरिकी नागरिकों और अफगान सहयोगियों को अफगानिस्तान में तालिबान के खतरे के बीच छोड़ दिया गया। हम अमेरिका के खिलाफ एक नए आतंकवादी खतरे का सामना कर रहे हैं, वहीं अफगान लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों का हनन करते हुए तालिबान गलत तरीके से संयुक्त राष्ट्र से मान्यता चाहता है।'
विधेयक में आतंकवाद का मुकाबला करने, तालिबान द्वारा कब्जा किए गए अमेरिकी उपकरणों के निपटान , अफगानिस्तान में तालिबान तथा आतंकवाद फैलाने के लिए मौजूद अन्य गुटों पर प्रतिबंध और मादक पदार्थों की तस्करी तथा मानवाधिकारों के हनन को रोकने के लिए रणनीतियों की आवश्यकता की भी मांग की गई है। इसमें तालिबान पर और संगठन का समर्थन करने वाली सभी विदेशी सरकारों पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी की गई है।
दोहा समझौते का सम्मान करने में विफल रहा है
इस बीच, अमेरिका के एक शीर्ष सैन्य जनरल ने कहा कि अफगानिस्तान पर अब शासन कर रहा तालिबान 2020 के दोहा समझौते का सम्मान करने में विफल रहा है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि संगठन अभी तक अल-कायदा से अलग नहीं हुआ है। 'यूएस ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ' के अध्यक्ष जनरल मार्क मिले ने सीनेट की सशस्त्र सेवा समिति के सदस्यों से कहा, 'दोहा समझौते के तहत, अमेरिका को तालिबान की कुछ शर्तों को पूरा करने पर अपनी सेना को वापस बुलाना शुरू करना था, जिससे तालिबान और अफगानिस्तान की सरकार के बीच एक राजनीतिक समझौता हो पाए।
उन्होंने कहा कि समझौते के तहत तालिबान को सात शर्तें और अमेरिका को आठ शर्तें पूरी करनी थी। मिले ने कहा, ''तालिबान ने अमेरिकी सेना पर हमला नहीं किया, जो कि एक शर्त थी, लेकिन वह दोहा समझौते के तहत किसी भी अन्य शर्त को पूरा करने में पूर्ण रूप से विफल रहा। वहीं शायद अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि तालिबान कभी भी अल-कायदा से अलग नहीं हुआ या उनके साथ अपना संबंध नहीं तोड़ा।''
'अल-कायदा अफगानिस्तान में है'
अधिकारी ने कहा कि दूसरी ओर अमेरिका ने अपनी सभी शर्तों को पूरा किया। यह स्पष्ट है कि अफगानिस्तान में युद्ध उन शर्तों पर समाप्त नहीं हुआ, जिन पर अमेरिका चाहता था। अमेरिका द्वारा एक मई को अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाना शुरू करने के बाद तालिबान ने देश के कई हिस्सों पर कब्जा करना शुरू कर दिया था और 15 अगस्त को उसने काबुल को भी अपने नियंत्रण में ले लिया। मिले ने एक सवाल के जवाब में कहा कि उनका मानना है कि अल-कायदा अफगानिस्तान में है और वे फिर एक साथ आना चाहते हैं।
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