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पाकिस्तान में शहबाज शरीफ के नेतृत्व में पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) की सरकार बनने के बाद से देश में सार्वजनिक जीवन पर सेना का शिकंजा कसता जा रहा है। ये आरोप कई राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने लगाया है। खास कर ऐसा शरीफ सरकार के एक फैसले से हुआ है। इस निर्णय के तहत सरकार ने नागरिक प्रशासन में नियुक्ति से पहले संबंधित व्यक्तियों की पूरी पड़ताल करने का काम खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) को सौंप दिया है।
इस फैसले के तहत विभिन्न पदों पर नियुक्ति, तबादला, और पदोन्नति के काम से जुड़े सरकारी अधिकारियों की स्क्रीनिंग भी आईएसआई करेगी। विश्लेषकों के मुताबिक इस सरकारी फैसले ने ये धारणा और मजबूत कर दी है कि पाकिस्तान में सेना प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सरकार चलाती है। यह समझ आम है कि पाकिस्तान में सेना से समर्थन प्राप्त नेता ही सत्ता में आते हैं। अब नए फैसले के तहत नौकरशाहों तक की नियुक्ति पर सेना का नियंत्रण हो जाने का अंदेशा है।
शरीफ सरकार का फैसला संविधान पर हमला
पाकिस्तान के सीनेटर नवाज खोखर ने ब्रिटेन के अखबार द गार्जियन से कहा- 'पाकिस्तान में सैनिक तख्ता पलट और राजनीति पर सेना के प्रभाव के इतिहास को अगर में ध्यान में रखें, तो साफ है कि इस निर्णय से नौकरशाही कमजोर होगी और उसकी स्वतंत्रता प्रभावित होगी। यह फैसला अपने पांव पर कुल्हाड़ी चलाने जैसा है।' पाकिस्तानी संसद के ऊपरी सदन सीनेट के चेयरमैन रह चुके रज़ा रब्बानी ने कहा- 'शरीफ सरकार का ये फैसला संविधान पर हमला है। इससे नागरिक शासन की सर्वोच्चता खत्म हो जाएगी।'
सवा दो महीना पहले, जब तक इमरान खान की सरकार देश में थी, विपक्षी दल राजनीति में सेना के दखल की आलोचना करते थे। अब उन्हीं पार्टियों की सरकार है, तो उन पर सेना के इशारे पर काम करने का इल्जाम लग रहा है। सैन्य मामलों की विशेषज्ञ लेखिका आयशा सिद्दिका ने इसे गहरे दुख की बात बताया कि शरीफ सरकार के इस निर्णय की किसी वरिष्ठ नेता ने आलोचना नहीं की है। उन्होंने कहा- 'इस फैसले ने अन्य संस्थानों पर सेना की खुफिया एजेंसी के वर्चस्व को वैध रूप दे दिया है। इससे राजनीतिक वर्ग के लंबे समय तक शक्तिहीन बने रहने की नींव पड़ गई है।'
लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की भतीजी मरियम नवाज ने इस फैसले को सही ठहराया है। मरियम मौजूदा सरकार में मंत्री हैं। उन्होंने दावा किया कि आईएसआई सीधे प्रधानमंत्री के तहत काम करती है। मरियम ने कहा- 'अगर प्रधानमंत्री ने ये फैसला लिया है, तो वे अच्छी तरह जानते हैं कि किस संगठन को किस समय क्या जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।'
सेना की भूमिका को घटाने की जरूरत
लेकिन इस दावे को आयशा सिद्दिका ने निराधार बताया। द गार्जियन से बातचीत में उन्होंने कहा- 'पाकिस्तान का कोई प्रधानमंत्री आईएसआई को नियंत्रित करने की बात कहे, तो इसे सिर्फ उसका सपना ही माना जाएगा। सिद्धांत रूप में आईएसआई हमेशा प्रधानमंत्री के तहत रही है, लेकिन व्यवहार में कभी उस पर प्रधानमंत्री का नियंत्रण नहीं रहा।'
पाकिस्तान में मशहूर गैर सरकारी संगठन ह्यूमन राइस्ट कमीशन ऑफ पाकिस्तान ने भी इस निर्णय पर चिंता जताई है। उसने प्रवक्ता ने कहा- यह फैसला लोकतांत्रिक कायदों के खिलाफ है। अगर पाकिस्तान लोकतंत्र बनने की तरफ बढ़ना चाहता है, तो असैनिक मामलों में सेना की भूमिका को घटाने की जरूरत है।
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