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लड़कियों के लिए पर्दे और जाली के साथ अलग शिफ्ट,अफगान विश्वविद्यालय तालिबान के आगे बेबस

Renuka Sahu
27 Sep 2021 3:38 AM GMT
लड़कियों के लिए पर्दे और जाली के साथ अलग शिफ्ट,अफगान विश्वविद्यालय तालिबान के आगे बेबस
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फाइल फोटो 

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे को एक महीने से ज्यादा का समय गुजरने के बाद उनकी लिंग अलगाव नीति को लागू करने के लिए प्रमुख विश्व विद्यालयों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) के कब्जे को एक महीने से ज्यादा का समय गुजरने के बाद उनकी लिंग अलगाव नीति को लागू करने के लिए प्रमुख विश्व विद्यालयों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. तालिबान महिलाओं की शिक्षा का पक्षधर नहीं है, ऐसे में विश्वविद्यालयों को अपनी कक्षाओं में अस्पतालों की तरह कमरे को विभाजित करने वाले पर्दे, जाली और अलग-अलग शिफ्ट की व्यवस्था तैयार करनी पड़ रही है. महिलाओं की उच्च शिक्षा के भविष्य पर तालिबान के किसी स्पष्ट रोडमैप के अभाव में, अफगानिस्तान के विश्वविद्यालय जैसे कि 1932 में स्थापित काबुल विश्व विद्यालय, या तीन दशक पुराना कंधार विश्वविद्यालय – जिनमें क्रमशः 26,000 और 10,000 छात्र पढ़ाई करते हैं – बड़ी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. काबुल विश्वविद्यालय में लगभग 12,000 और कंधार विश्वविद्यालय में 1,000 महिलाएं पढ़ रही हैं. वहीं अन्य प्रांतों की 300 महिला छात्राओं को डॉर्मिटरी में एडजस्ट किया गया है. हालांकि कम छात्रों वाले कई निजी विश्वविद्यालयों ने कक्षाएं फिर से शुरू कर दी हैं.

कंधार विश्वविद्यालय के चांसलर अब्दुल वाहिद वासिक ने कहा, 'सार्वजनिक विश्वविद्यालय पैसा होने पर ही दोबारा खुल सकते हैं. हमें यह भी याद रखना होगा कि सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में निजी विश्वविद्यालयों की तुलना में एक कक्षा में बहुत ज्यादा छात्र होते हैं. निजी विश्वविद्यालयों में, प्रत्येक क्लास में केवल 10 से 20 छात्र होते हैं और इसलिए ऐसी कक्षाओं में पुरुषों और महिलाओं को अलग करना बहुत आसान होता है. हमारी एक कक्षा में लगभग 100 से 150 छात्र होते हैं. इसलिए यह इतना आसान नहीं है, खासकर ऐसे मामलों में जहां एक कक्षा में बहुत कम महिलाएं हैं.'
तालिबान ने विश्वविद्यालयों से मांगा था प्लान
अफगानिस्तान में लगभग 40 सार्वजनिक विश्वविद्यालय हैं. तालिबान के सह-शिक्षा पर प्रतिबंध के आदेश के बाद, उच्च शिक्षा मंत्रालय द्वारा सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को स्थानीय वास्तविकताओं के आधार पर फिर से खोलने की अपनी योजना प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था. अभी तक अधिकांश विश्वविद्यालयों ने प्रस्ताव दिया है कि महिलाओं को पर्दे या क्यूबिकल के पीछे से कक्षाओं में भाग लेने की अनुमति दी जाए, या उन प्रांतों में स्थित संस्थानों में स्थानांतरित कर दिया जाए, जहां से उनका ताल्लुक है.
30 साल पहले स्थापित की गई ताखर यूनिवर्सिटी के चांसलर खैरूद्दीन खैरखाह ने कहा, 'पुरुषों को कक्षा में महिलाओं से अलग करने के लिए हमारी योजना पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग कक्षाएं आयोजित करने की है, जहां एक कक्षा में 15 से अधिक महिलाएं हैं. ऐसा करने के लिए, हम शिफ्ट शुरू करने की योजना बना रहे हैं. सुबह और दोपहर. यदि 15 से कम महिलाएं हैं, तो हम डिवाइडर खरीदेंगे, जैसा कि वे अस्पतालों में उपयोग करते हैं.'
आर्थिक तंगी से जूझ रहे अफगान विश्वविद्यालय
ताखर यूनिवर्सिटी की तरह, 15 से अधिक महिलाओं वाली कक्षाओं के लिए कंधार विश्वविद्यालय ने छात्रों को शिफ्ट में – महिलाओं के लिए सुबह और पुरुषों के लिए दोपहर को बुलाने का प्रस्ताव दिया है. हालांकि प्रस्तावों को लागू करने से नकदी की तंगी से जूझ रहे संस्थानों की आर्थिक स्थिति पर दबाव पड़ेगा, जिनमें से कुछ काबुल के तालिबान के कब्जे में आने के बाद से शिक्षकों को वेतन नहीं दे पा रहे हैं. अभी के लिए, कंधार विश्वविद्यालय ने सरकार से लगभग 6,200 डॉलर, तखर विश्वविद्यालय ने 19,000 डॉलर, और हेलमंड ने अलगाव के उपायों को पेश करने के लिए और कक्षा के फर्नीचर के लिए 12,000 डॉलर की मांग की है.
अफगानिस्तान में स्नातक तक पढ़ाई है मुफ्त
अफगानिस्तान के सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में स्नातक शिक्षा निःशुल्क है. छात्रों से कोई शिक्षण शुल्क नहीं लिया जाता है, और छात्रावासों में रहने वालों को मुफ्त भोजन और आवास प्रदान किया जाता है. इस बीच, हाल के एक घटनाक्रम ने काबुल विश्वविद्यालय की चिंता को गहरा कर दिया है, क्योंकि महिला शिक्षा को लेकर तालिबान प्रशासन का दृष्टिकोण संस्थागत स्वायत्तता के लिए बहुत कम जगह छोड़ता है. विश्वविद्यालय के एक सूत्र ने कहा कि संस्थान द्वारा लिंग नीति को लागू करने में कुछ लचीलेपन की मांग के बाद तालिबान ने चांसलर को बर्खास्त कर दिया, जैसे कि महिलाओं को अलग-अलग पंक्तियों में बैठने की अनुमति देना, जहां विभाजन करना अव्यावहारिक था.
आसान नहीं है तालिबानी फरमान लागू करना
सूत्र ने कहा, 'काबुल विश्वविद्यालय लगभग 560 प्रोग्राम चलाता है और इसमें लगभग 250 कक्षाएं चलती हैं. हमने सरकार से (नए चांसलर की नियुक्ति से पहले) कहा था कि कक्षाओं को विभाजित करना और महिलाओं को अलग से पढ़ाना तुरंत संभव नहीं है. हर चीज के लिए अलग जगह (महिलाओं के लिए) बनाना संभव नहीं है. हम पुस्तकालयों और प्रयोगशालाओं के लिए यह कैसे कर पाएंगे? साथ ही एक अपेक्षा यह भी है कि महिलाओं को केवल महिलाओं द्वारा ही पढ़ाया जाना चाहिए. महिला शिक्षक काबुल विश्वविद्यालय के 900 संकाय में लगभग 20 फीसदी हैं. 170 से 180 महिला शिक्षक लगभग 12,000 महिला छात्रों को कैसे पढ़ा सकती हैं? कक्षाओं को विभाजित करने का मतलब है. टीचिंग के समय को दोगुना करना, इसलिए हमें संकाय सदस्यों की संख्या को दोगुना करने की आवश्यकता है.'
तालिबान के दोहराया अपना फरमान
काबुल विश्वविद्यालय के सूत्र ने कहा कि 'तालिबान ने प्रस्ताव के जवाब में लैंगिक भेदभाव को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता दोहराई. इसमें विश्वविद्यालय से महिला छात्रों को उनके स्थानीय प्रांतों में स्थानांतरित करने पर विचार करने को कहा गया है, अगर वह वर्तमान परिस्थितियों में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग कक्षाएं आयोजित नहीं कर सकता है. हालांकि काबुल विश्वविद्यालय का अपना पाठ्यक्रम है. इसलिए छात्रों को अन्य संस्थानों में ले जाना संभव नहीं है.' रिपोर्ट के मुताबिक काबुल यूनिवर्सिटी के नए चांसलर मोहम्मद अशरफ गैरत से संपर्क नहीं हो सका है.
हालांकि कंधार और हेलमंड यूनिवर्सिटी के चांसलरों ने कहा कि पुरुषों द्वारा महिलाओं को पढ़ाए जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है. वहीं हेलमंड और निमरोज हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूट जैसे नए विश्वविद्यालयों के लिए तालिबान की लिंग नीति को लागू करना आसान नहीं है. इस संस्थानों में महिला छात्रों की संख्या बेहद कम है, वहीं महिला टीचर भी नगण्य हैं. लेकिन क्लासरूम और स्थायी कैंपस के बिना तालिबानी नीति को लागू करने में शिक्षा संस्थानों को बेहद मुश्किल आ रही है.
अलग-अलग एग्जिट और एंट्री गेट
हेलमंड यूनिवर्सिटी के चांसलर अब्दुल रहमान ने कहा कि 'हमारे यहां 235 महिलाएं और 2000 पुरुष छात्र हैं. इसलिए हम अलग-अलग शिफ्ट नहीं चला पाएंगे. सभी पुरुष छात्रों को 23 कक्षाओं में समायोजित करना पाना बेहद मुश्किल है. हमारे यहां 107 टीचर हैं, और सभी पुरुष हैं. कक्षाओं का निर्माण अभी जारी है. हमारे पास पर्याप्त कक्षाएं नहीं हैं. इसलिए हमने सरकार से कहा है कि वह अपनी नीति को अगले पांच सालों में चरणबद्ध तरीके से लागू करे. तब तक हम व्यवस्था कर पाएंगे. जैसेकि लेक्चरर ढूंढ़ना, क्लासरूम की व्यवस्था करना.' उन्होंने कहा कि महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग एग्जिट और एंट्री गेट बनाए गए हैं.

निमरोज इंस्टीट्यूट में 700 छात्र हैं और केवल 10 क्लासरूम. कक्षाएं दो शिफ्टों में चल रही हैं. चांसलर मोहम्मद कसम ने कहा, 'स्थायी कैंपस बन रहा है. महिला और पुरुष छात्रों को अलग करने के लिए अलग-अलग शिफ्ट चल रही है. महिलाएं सुबह की शिफ्ट में पढ़ाई करती हैं, वहीं पुरुषों के लिए दोपहर में क्लास लगती है.'

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