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विज्ञानियों ने सुझाया यूटीआइ की रोकथाम के लिए एंटीबायोटिक एक नया विकल्प

Gulabi
12 March 2022 3:22 PM GMT
विज्ञानियों ने सुझाया यूटीआइ की रोकथाम के लिए एंटीबायोटिक एक नया विकल्प
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यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन यानी मूत्र नलिका के संक्रमण के इलाज में दिनों-दिन जटिलताएं बढ़ती जा रही हैं
लंदन, एएनआइ। यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (यूटीआइ) यानी मूत्र नलिका के संक्रमण के इलाज में दिनों-दिन जटिलताएं बढ़ती जा रही हैं। इसका एक प्रमुख कारण होता है- संक्रमणकारी बैक्टीरिया का एंटीबायोटिक के प्रति रेसिस्टेंट (प्रतिरोधी) होना। इसलिए विज्ञानी इस बीमारी के वैकल्पिक इलाज ढूंढ़ने की कोशिश में लगे रहते हैं। इसी क्रम में न्यूकैसल-अपान-टाइन के डाक्टरों और विज्ञानियों के साथ मिलकर ब्रिटिश शोधकर्ताओं एक नया प्रयोग किया है।
वैज्ञानिकों ने इस बात की पड़ताल की है कि क्या मेथेनामाइन हिप्पूरेट महिलाओं को बार-बार होने वाले यूटीआइ के मानक एंटीबायोटिक इलाज का एक प्रभावी विकल्प हो सकता है। इस अध्ययन का निष्कर्ष 'द बीएमजे' जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
मौजूदा समय में बारंबार होने वाले यूटीआइ की रोकथाम के लिए मानक इलाज के लिए रोजाना एंटीबायोटिक की कम डोज (प्रोफाइलेक्टिक ट्रीटमेंट) देने की सिफारिश की जाती है। लेकिन लंबे समय तक एंटीबायोटिक का इस्तेमाल आगे चलकर प्रभावी नहीं रह जाता है। इसलिए डाक्टरों को दूसरी दवा प्रिस्क्राइब करनी पड़ती है।
मेथेनामाइन हिप्पूरेट एक ऐसा ड्रग है, जो यूरिन को स्टरलाइज करता है, जिससे कुछ खास प्रकार के बैक्टीरिया की वृद्धि रूक जाती है। पहले के अध्ययनों में ऐसा प्रतीत हुआ है कि यह यूटीआइ की रोकथाम में प्रभावी हो सकता है लेकिन इसके ठोस प्रमाण नहीं मिल सके थे, इसलिए और भी ट्रायल की जरूरत थी।
यह नया निष्कर्ष 18 वर्ष या इससे अधिक उम्र की 240 महिलाओं पर किए गए प्रयोगों पर आधारित हैं, जो जिन्हें बारंबार यूटीआइ होता था और प्रोफाइलेक्टिक ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती थी। अध्ययन में शामिल होने से पहले ये महिलाएं प्रति वर्ष छह से ज्यादा बार यूटीआइ से ग्रसित होती रही थीं।
इन महिलाओं का चयन यूके सेकेंडरी केयर सेंटर से जून 2016 से जून 2018 के बीच किया गया। इनमें से 102 महिलाओं को रोजाना एंटीबायोटिक्स और 103 महिलाओं को मेथेनामाइन हिप्पूरेट 12 महीने तक दिए गए और हर तीन महीने पर उनकी जांच की गई, जो क्रम 18 महीने तक जारी रहा। इनकी तुलना साल में एकबार यूटीआइ से पीडि़त होने वाली महिलाओं से की गई।
अध्ययन के दौरान 12 महीने तक चले इलाज में एंटीबायोटिक्स ग्रुप में प्रति व्यक्ति प्रति साल यूटीआइ की दर 0.89 रही, जबकि मेथेनामाइन ग्रुप में यह दर 1.38 थी। इस तरह दोनों ग्रुपों में 0.49 का अंतर पाया गया।
लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि दोनों ग्रुपों में यह मामूली अंतर प्रति वर्ष होने वाले यूटीआइ के पूर्व निर्धारित थ्रेसहोल्ड से कम रहा। इससे यह संकेत मिलता है कि मेथेनामाइन यूटीआइ की रोकथाम में एंटीबायोटिक्स से खराब नहीं रहा। मेथेनामाइन का एक फायदा यह भी रहा कि एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल कम हुआ और दुष्प्रभावी प्रतिक्रिया का स्तर भी कुछ खास नहीं रहा। लेकिन परिणाम एक जैसे ही रहे।
हालांकि शोधकर्ताओं ने बताया है कि मेथेनमाइन हिप्पूरेट की दीर्घावधिक सुरक्षा कुछ कम है और इस प्रयोग की कुछ सीमाएं भी रही हैं। उन्होंने यह भी पाया कि मेथेनमाइन ग्रुप की चार महिलाओं को यूटीआइ के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़ा और छह महिलाओं को यूटीआइ के दौरान बुखार भी आया।
हालांकि उनका कहना है कि यह एक सुनियोजित ट्रायल था, जिसमें बारंबार टीयूआइ से पीडि़त होने वाली विभिन्न वर्गो की महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व था। ऐसे में उनके प्रयोगों के परिणाम यूटीआइ की रोकथाम के लिए प्रचलित प्रैक्टिस में बदलाव का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं और डाक्टर इस विश्वसनीय विकल्प से रोगियों को लंबे समय तक रोजाना एंटीबायोटिक्स से बचा सकते हैं। यूटीआइ रोगियों को पहले इलाज के तौर पर मेथेमाइन हिप्पूरेट दिए जाने के लिए डाक्टरों को प्रेरित किया जा सकता।
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