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अंतरिक्ष अपने-आप में काफी सारे रहस्यों से भरा है
अंतरिक्ष अपने-आप में काफी सारे रहस्यों (space mystery) से भरा है. कई बार वैज्ञानिकों के हाथ कुछ ऐसा भी लग जाता है, जिसे लेकर वे उत्साहित भी हो जाते हैं. नासा के हाथ ऐसा ही एक उल्का पिंड (asteroid) मंगल और बृहस्पति ग्रह के बीचोंबीच लगा. इस पिंड के बारे में नासा का कहना था ये गेम चेंजर है और धरती को इतना पैसा दे सकता है कि हर इंसान करोड़पति बन जाएगा.
नासा (NASA) ने इतना सब कुछ सोचकर इसके रिसर्च के लिए करोड़ों रुपये लगा दिए. वो तो अच्छा हुआ कि मिशन (Discovery Mission) के लॉन्च होने से पहले ही बता चल गया कि 16-साइकी (16 Psyche) नाम का ये क्षुद्रग्रह कोई कीमती खजाना नहीं बल्कि मलबे का ढेर है. ये दूसरे उल्कापिंडों की ही तरह मेटल कम और कार्बन कंटेंट ज्यादा संजोए हुए है.
वैज्ञानिकों ने कहा था- लग गया जैकपॉट
वैज्ञानिकों ने कहा था कि साइकी-16 नाम के इस आलू की तरह आकार के क्षुद्रग्रह की संरचना सोने, बहुमूल्य धातु प्लेटिनम, आयरन और निकल से बनी हुई है. सोने-लोहे से बने इस एस्टेरॉयड का व्यास लगभग 226 किलोमीटर है. क्षुद्रग्रह पर खासतौर से लोहे की भरपूर मात्रा है. अंतरिक्ष विशेषज्ञों के मुताबिक एस्टेरॉयड पर मौजूद लोहे की कुल कीमत करीब 8000 क्वॉड्रिलियन पाउंड ( $10,000 quadrillion) है. यानि आसान तरीके से समझा जाए तो 8000 के बाद 15 शून्य और लगाने होंगे.
सच्चाई निकली इससे कहीं अलग
अब प्लानेटरी साइंस जर्नल (Planetary Science Journal) में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक साइकी-16 में 82.5 प्रतिशत मेटल, 7 प्रतिशत लो आयरन पैरॉक्सिन और 10.5 प्रतिशत कार्बनेसस कॉन्ड्राइट मौजूद है. इसके अंदर 35 फीसदी खोखलापन हो सकता है. वैज्ञानिकों की टीम में शुमार स्टूडेंट डेविड कैंटिलो (David Cantillo) का कहना है कि साइकी-16 में मेटेल कंटेंट कम भी हो सकता है. अगर ऐसा हुआ तो ये दूसरे उल्कापिंडों (asteroids) जैसा ही होगा.
कब जाएगा नासा ?
डेली मेल के के मुताबिक नासा (NASA) इस उल्कापिंड पर अगस्त 2022 में अपना मिशन भेजने वाला है. ये मिशन 4 साल बाद यानि 2026 में वहां से वापस आएगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर उनके अनुमान से कम भी मेटल यहां मिला, तो भी ये बड़ी सफलता होगी. हालांकि पहले भी नासा उल्कापिंड पर खुदाई (Mining in Space) की योजना लेकर नहीं चल रहा था, क्योंकि उन्हें लगता है इससे धरती पर संघर्ष बढ़ सकता है. वो बात अलग है कि स्पेस माइनिंग के लिए कंपनियां काफी उत्साहित थीं. वहीं कुछ लोग धरती पर मौजूद स्वर्ण धातु को भी उल्कापिंड से जोड़कर देखने लगे थे.
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