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कितना पुराना जीवाश्म
आमतौर पर माना जाता है कि पुरातन काल के जीवाश्मों (Fossils) में केवल डायनासोर के जीव ही सबसे रोचक होते हैं. लेकिन कई बार दूसरी प्रजातियों के जीवाश्म भी चौंका देते हैं. ऐसा ही कुछ हुआ जब चीन में मिले जीवाश्म अध्ययन किया गया. गैंडे (Rhino) का यह जीवाश्म अब तक के विशालतम स्तनपायी जीवों (Mammals) में एक पाया गया. यह विलुप्त प्रजाति एक समय में एशिया में विचरण किया करते थे. वैज्ञानिकों का कहना है कि ये अपने समय के ही नहीं पृथ्वी पूरे समय तक पाए गए स्तनपायी जीवों में सबसे बड़े जीवों में एक हैं.
कितना पुराना जीवाश्म
इस गैंडे की खोपड़ी 2.65 करोड़ साल पुरानी है जो उत्तर पश्चिम चीन में पाई गई है. विशेषज्ञों ने इसे एक विशाल गैंडे कि विलुप्त प्रजाति की जीवाश्म करार दिया है जो धरती पर घूमने वाले विशालतम जीवों में से एक था. यह जीवाश्म बहुत अच्छे से संरक्षित था जो बहुत कम होता है. गहन विश्लेषण के बाद वैज्ञानिकों ने इस जीव को पैरासिरेथेरियम लिक्सिएन्स नाम दिया है.
केवल खोपड़ी से अनुमान
यह यूरेशिया इलाके में सींग रहित गैंडों के वंशजों की छठी प्रजाति है. केवल खोपड़ी से ही इस जीव के आकार का अनुमान बहुत मुश्किल होता है, लिकन दूसरे पैरासेराथेरियम जीवाश्मों से तुलना करने पर पता चलता है कि ये चौपाए जानवर कंधे तक 4.8 मीटर तक ऊंचे हुआ करते थे जो आजकल के जिराफ की ऊंचाई का आकार है. आज के गैंडे बमुश्किल दो मीटर लंबे हुआ करते हैं.
भारीपन थी इस जानवर की खासियत
फिर भी इस जानवर का भार ने इसे धरती का विशालकाय जीव को खास बना दिया है पूरे शरीर का जीवाश्म ना मिलने से दिक्कत तो हुई लेकिन अनुमान यही है कि मोटे तौर पर इस गैंडे का वजन 11 से 20 टन के बीच रहा होगा जो पांच अफ्रिकी हाथियों के वजन के बराबर होता है.
दूसरे जीवाश्मों से तुलना
केवल खोपड़ी के आधार पर इस विशाल जीव को बारे पता लगाने वाले शोधकर्ताओं को लगता है कि पी. लिनक्सिएन्स अपने वंशजो में सबसे विशाल जीव रहा होगा. शोधकर्ता इस गैंडे के आकार के बारे में विस्तार से बताने की स्थिति में नहीं थे. लेकिन फिर ही दूसरे गैंडों के जीवाश्म से तुलना करने पर उन्होंने पाया कि खोजी गई नई प्रजाति की नाक कुछ छोटी है, लेकिन उनकी नाक के छेद लंबे थे. वहीं इनकी गर्दन लंबी दूसरों से लंबी हुआ करती थी.
एशिया के इन इलाकों में
कुल मिलाकर ये स्वरूप पी लेपिडम नाम के विशाल गैंडे से मिलते जुलते हं जो कजाकिस्तान और उतरपश्चिमचीन के दूसरे इलाकों में विचरण किया करते थे. इसी के दक्षिण में एक और प्रजाति पाई गई है जिसे पी बगटिएन्स कहा जाता है लेकिन इसके नाक के छेद छोटे हुआ करते थे.
कैसे आई वंश में इतनी विविधता
जीवाश्मों के बारे में पड़ताल करते हुए वैज्ञानिकों को पता चला कि ये विशाल गैंडे कभी मंगोलिया के पठार से उत्तर पश्चिमी चीन और कजाकिस्तान से होते हुए तिब्बत से होकर पाकिस्तान तक आ गए थे. हर स्थान पर वंश पर्यावरण के अनुकूल अतिविशेषताओं में ढलता गया जिससे 3.4 से लेकर 2.3 करोड़ साल पहले तक के ओलिजोसीन युग में अलग अलग प्रजातियां पनपती रही.
कम्यूनिकेशन बायोलॉजी में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पॉली जेनेटिक विश्लेषण के द्वारा पी. लिन्क्सिएन्स को इस संक्रमण काल के बीच मं रखा है जब ये गैंडे तिब्बत से गुजर रहे थे. उस दौर में तिब्बत एक खुला और जंगली इलाका रहा होगा और इतना उठा हुआ भी नहीं होगा जितना कि आज है जिससे ये वहां खुद के लिए आसानी से पत्तियों वाला भोजन हासिल कर पाए होंगे.
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