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शुक्र आज क्यों नहीं है जीवन के अनुकूल, वैज्ञानिकों ने ढूंढा कारण

Gulabi
1 Jan 2022 11:34 AM GMT
शुक्र आज क्यों नहीं है जीवन के अनुकूल, वैज्ञानिकों ने ढूंढा कारण
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जीवन की संकेतों और अनुकूलता की तलाश में मंगल और शुक्र ग्रह शुरू से ही बड़े दावेदार रहे हैं
अगर पृथ्वी (Earth) से बाहर जीवन की संभावनाओं की तलाश की बात की जाए तो कई वैज्ञानिकों यही लगता है कि शुक्र ग्रह को और ज्यादा गंभीरता से लेने की जरूरत है. इसकी वजह ये है कि एक समय शुक्र, पृथ्वी के जैसा ग्रह था. लेकिन समय के साथ पृथ्वी पर जीवन पनप गया और शुक्र पर जीवन की अनुकूलता तक नही है. वैज्ञानिकों के लिए यह आज भी बड़ी पहेली है कि शुक्र की हालत आज ऐसी क्यों हो गई. इसी की एक अध्ययन में शुक्र ग्रह के इतिहास में छिपी बताई जा रही है. जिसमें बहुत अधिक तेज गति से उल्कापिडों के टकराव को इसके लिए जिम्मेदार बताया गया है.
शुक्र मंगल और पृथ्वी
जीवन की संकेतों और अनुकूलता की तलाश में मंगल और शुक्र ग्रह (Venus) शुरू से ही बड़े दावेदार रहे हैं. फिलहाल मंगल ग्रह पर ज्यादा काम हो रहा है. जबकि मंगल और शुक्र दोनों ही ग्रह अभी बिलकुल भी आवासयोग्य नहीं हैं. लेकिन कई वैज्ञानिकों को लगता है कि एक समय पृथ्वी से समानता शुक्र को ऐसे अन्वेषणों के लिए बेहतर दावेदार बनाती है. नई मॉडलिंग से पता चला है कि तेजी से हुए टकराव इस बात की व्याख्याकर सकते हैं कि पृथ्वी जीवन से भरपूर और शुक्र जीवन विहीन ग्रहों कैसे बन गए.
सूर्य और पृथ्वी
इस अध्ययन में सुझाया गया है कि शुक्रग्रह के शुरुआती इतिहास में विशाल, और तीव्र गति वाले टकराव शुक्र और उसके साथी ग्रह पृथ्वी के बीच पैदा हुए अंतर की वजह को समझा सकते हैं. दोनों ग्रहों की आकार, भार और सूर्य से तुलनात्मक दूरी काफी हद तक समान है. फिर भी दोनों में आवासीयत, वायुमंडलीय संरचना, प्लेट टेक्टोनिक जैसे कई प्रमुख अंतर की व्याख्या नहीं कि जा सकी है.
टकराव कर सकते हैं पूरी व्याख्या
हाल ही में हुए 2021 की अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन फॉल मीटिंग में प्रस्तुत शोध के बताया गया है कि तीव्र गति वाले टकराव इस बात की व्याख्या कर सकते हैं कि पृथ्वी जीवन के अनुकूल ग्रह के तरह पनप सका जबकि शुक्र नहीं. इस अध्ययन की प्रस्तुति साउथ वेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के ग्रह विज्ञानी सिमोने मार्की ने दी.
पूरा ग्रह हुआ होगा प्रभावित
मार्की ने बताया कि शुरू में सौरमंडल की शुरुआत में उल्कापिंड जैसे टकराने वाले पिंडों की संख्या बहुत ही ज्यादा हुआ करती थी. यदि शुरुआती टकराव पिंड व्यास में कुछ सौ किलोमीटर बड़ा था, तो उसने ग्रह की सतह और वायुमडंल के साथ आंतरिक संरचना तक को प्रभावित किया होगा. ये विशाल टकराव ग्रह के हर चीज को प्रभावित करने में सक्षम रहे होंगे.
4 अरब साल से भी पहले
अलग-अलग शोध समूहों ने दर्शाया है कि शुक्र ग्रह के पुरातन काल में, यानि करीब 4.5 से 4 अरब साल पहले बहुत ही तेज गति से उल्कापिंडों का टकराव हुआ होगा. ये गति पृथ्वी के टकरावों की तुलना में कहीं ज्यादा रही होगी. करीब एक चौथाई से ज्यादा टकरावों की गति 30 किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति के रहे होंगे.
पर्पटी से लेकर मैंटल तक पिघले होंगे
शोधकर्ताओं ने दर्शाया कि शुक्र पर विशाल, तीव्र गति वाले टकरावों से पृथ्वी के मैंटल के पिघलने की तुलना में दो गुना अधिक मैंटल पिघलाव हुआ होगा. शोध के मुताबिक कम कोणों वाले तीव्र टकराव के कारण शुक्र का मैंटल पूरी तरह से पिघल गया होगा. मार्की ने बताया कि जब केवल एक विशालकाय तीव्र आवेग टकराव ने भी शुक्र ग्रह की आंतरिक विकास प्रक्रिया रोक कर फिर से शुरू कर दी होगी.
ऐसी स्थिति में शुक्र एक पथरीले पिंड से एक पिघले हुए पिंड में बदल गया होगा जिससे उसकी सतह और आंतरिक संरचना के साथ खजिन विज्ञानतक बदल गया होगा. पहले से रहा वायुमंडल तक खत्म हो गया होगा. केवल एक ही बहुत बड़े और तीव्र गति वाले टकराव ने तय कर दिया होगा कि टेक्टोनिक प्लेट बनी होंगी या नहीं. यहीं से दोनों ग्रहों के निर्माण की दिशा ऐसी बदल गई होगी जिससे दोनों में आज इतना अंतर आ गया है.
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