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वैज्ञानिकों ने शोध में पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा वाली कक्षा की भूमिका की निकाली जानकारी

Gulabi
6 Dec 2021 5:10 PM GMT
वैज्ञानिकों ने शोध में पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा वाली कक्षा की भूमिका की निकाली जानकारी
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सूर्य की परिक्रमा वाली कक्षा की भूमिका की निकाली जानकारी
पृथ्वी के विकास (Evolution of Earth) के दौरान में जितने भी बदलाव हुए है उसमें बहुत से कारकों का प्रभाव रहा है. इसमें कई कारक पृथ्वी के बाहर के रहे हैं. इसमें सूर्य (Sun) से आने वाली किरणों के आलावा चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण, पृथ्वी की सतह तक गिरने वाले उल्कापिंडों की भी भूमिका रही है जिससे पृथ्वी पर होने वाले परिवर्तनों को दिशा मिली है. नए अध्ययन एक और रोचक कारक की खोज की है यह कुछ और नहीं बल्कि वह कक्षा (Orbit of Earth) है जिसमें पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है.
स्थिर नहीं रहती है पृथ्वी की कक्षा
बहुत से लोगों को लगता है कि सूर्य की परिक्रमा वाली पृथ्वी की कक्षा जो काफी हद तक वृत्ताकार है , हमेशा एक ही सी और स्थायी रही है. लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है. हर 4.05 लाख साल में एक बार हमारी पृथ्वी की ये कक्षा खिंचती है और अपने पुरानी अवस्था में लौटने से पहले 5 प्रतिशत अंडाकार हो जाती है.
वैश्विक जलवायु में बदलाव का कारक
वैज्ञानिक इस चक्र को बहुत पहले से जानते हैं और इसे कक्षीय विकेंद्रता (Orbital Eccentricity) या 'वैश्विक जलवायु में बदलाव का कारक' कहा जाता है. लेकिन यह पृथ्वी को प्रभावित कैसे और किस हद तक करता था यह अभी तक अज्ञात ही था. अब नए प्रमाणों से पता चला है कि पृथ्वी की बदलतीकक्षा का हमारी पृथ्वी जैविक विकास पर प्रभाव पड़ता है.
कक्षा का असर और नई प्रजातियों का आगमन
फ्रेच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च (CNRS) में पेलिएओसीनोग्राफर लुक बोफर्ट की अगुआई में वैज्ञानिकों की टीम ने कक्षीय विकेंद्रता ऐसे सुराग खोजे हैं जिनसे पत चला है कि इस विकेंद्रता ने पृथ्वी पर नई प्रजाति के उद्गम लाने में एक कारक की भूमिका निभाई थी. इन प्रजातियों में कम से कम इसमें पादक प्लवक (phytoplankton) जैसी प्रजाति भी शामिल है.
चूना पत्थर के खोल
कोको लिथोफोर (Coccolithophores) ऐसे सूर्य के प्रकाश का अवशोषण करने वाला सूक्ष्मजीव शैवाल हैं जो अपने नर्म कोशिकीय शरीर के आसापस चूना पत्थर की परतें बना लेते हैं. ये चूना पत्थर के खोल कोकोलिथ (coccoliths) कहे जाते हैं. ये कोकोलिथ के बहुतायत जीवाश्म के मिलते रहे हैं ये सबसे पहले 21.5 करोड़ साल पहले उत्तर ट्रियासिक काल में मिलना शुरू हुए थे.
महासागरों में अवसादों का अध्ययन
कोकोलिथ की प्रचुर मात्रा ने पृथ्वी के पोषण चक्रों को बहुत ज्यादा प्रभावित किया इससे इसकी उपस्थिति तो बदलने वाला कारक का हमारी पृथ्वी की तंत्र पर गहरा असर होना लाजमी था. बोफर्ट और उनके साथियों ने आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस की मदद से हिंद और प्रशांत महासागरों में विकासक्रम के 28 लाख साल में फैले 90 लाख कोकोलिथ का मापन किया था. महासागरों की अवसादों के नमूने की सटीक डेटिंग तकनीक के जरिए शोधकर्ताओं को काफी विस्तृत जानकारी मिल गई.
दो चक्रों में समानता
शोधकर्ताओं ने पाया कि कोकोलिथ की औसत लंबाई एक नियमित चक्र का अनुसरण करती है. जो पृथ्वी की 4.05 लाख साल वाले कक्षीय विकेंद्रण चक्र से मेल खाता है. कोकोलि का सबसे लंबा औसत आकार उच्चतम विकेंद्रण के समय से थोड़ा ही पीछे था. इसका इससे कोई संबंध नहीं था कि क्या पृथ्वी पर कोई हिमाच्छादन या उनके बीच की अवस्था थी या नहीं.
नेचर में प्रकाशित इस अध्ययन के शोधकर्ताओं ने पाया कि जब पृथ्वी की कक्षा और ज्यादा अंडाकार होती है तो भूमध्य रेखा के आसपास का मौसम ज्यादा प्रखर हो जाता है. इससे इन मौसमों में और ज्यादा विरोधाभार होता है .इसे कोकोलिथोफोर्स की प्रजातियों में भी ज्यादा विविधता आती है.

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