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अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में वैज्ञानिकों ने की चार नए जीवाणुओं की खोज

Gulabi
17 March 2021 3:57 PM GMT
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में वैज्ञानिकों ने की चार नए जीवाणुओं की खोज
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अंतरिक्ष स्टेशन पर कैसे पहुंचे

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) के साथ मिलकर काम करने वाले भारतीय और अमेरिकी वैज्ञानिकों की टीम ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में एक नन्हे जीव की खोज की है। यह जीव कोई और नहीं, बल्कि वहां विभिन्न सतहों पर रहने वाले बैक्टीरिया हैं, जिनके चार नए स्ट्रेन की खोज की गई है। इस बैक्टीरिया के तीन नए स्ट्रेन से आजतक दुनिया अनजान थी। धरती से हजारों किलोमीटर दूर इस आइसोलेटेड स्थान पर बैक्टीरिया के चार नए स्ट्रेन के मिलने से वैज्ञानिक भी हैरान हैं।

ISS में अलग-अलग जगहों पर मिले थे ये बैक्टीरिया
पहली बार इन रोगाणुओं की पहचान 2015 और 2016 में की गई थी। इनमें से एक अंतराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन रिसर्च स्टेशन के ओवरहेड पैनल पर मिला था। दूसरे की खोज आईएसएस के सबसे ऊपर की उभार वाली संरचना, ऑब्जरवेशन और वर्क एरिया में की गई थी। इसकी तीसरे स्ट्रेन की खोज स्पेस स्टेशन में खाने की मेज पर किया गया था। जबकि, इसका चौथा स्ट्रेन पुराने HEPA एयर फिल्टर में मिला था।
मिट्टी और मीठे पानी से संबंधित हैं ये बैक्टीरिया
बताया गया है कि इस बैक्टीरिया के सभी चार स्ट्रेन मिट्टी और मीठे पानी में पाए जाने वाले बैक्टीरिया के परिवार से संबंधित हैं। ये जीवाणु नाइट्रोजन निर्धारण और पौधे के विकास में शामिल हैं और पौधे के बीमारियों को पैदा करने वाले बैक्टीरिया से लड़ने में मदद कर सकते हैं। विशेष रूप से अगर आप चीजों को बढ़ा रहे हैं, तो ये जीवाणु मदद कर सकते हैं।
अंतरिक्ष स्टेशन पर कैसे पहुंचे?
अब वैज्ञानिक आश्चर्य में हैं कि मिट्टी के ये जीवाणु अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर क्या कर रहे हैं। यहां रहने वाले वैज्ञानिक भोजन की काफी कम मात्रा को खाकर अपना गुजारा करते हैं। ऐसे में यह रहस्य की बात है कि ये पौधे में रहने वाले जीवाणु आखिर यहां आए कैसे? और अगर आ गए तो ये जिंदा कैसे हैं। वैज्ञानिकों ने जेनेटिकली सिक्वेंस से पता लगाया है कि उनमें से तीन एक अज्ञात बैक्टीरिया की प्रजातियों से संबंधित हैं।
वैज्ञानिकों ने बताया कि मंगल ग्रह का चंट्टानी स्‍वरूप 3 से 4 अरब साल पहले ज्‍वालामुखी विस्‍फोट के बाद हुआ था। पृथ्‍वी अपनी ऊपरी परत को रिसाइकिल करने और फंसे हुए पानी को निकालने में सक्षम है। वहीं इसके विपरीत मंगल ग्रह की चट्टानें इतनी पुरानी है कि वे बड़ी मात्रा में पानी को जमा कर सकती हैं। इससे पहले 31 जुलाई 2008 को नासा के फोनिक्‍स मार्स लैंडर ने इस बात की पुष्टि की थी कि मंगल ग्रह के बर्फ के अंदर पानी मौजूद है। उसने बताया था कि इस बर्फ में भी वही तत्‍व मौजूद हैं जो धरती पर पाए जाने वाली बर्फ के अंदर पाए जाते हैं। यह बर्फ का दूसरा रूप नहीं है। लाल ग्रह पर कई प्राचीन सूख चुकीं घाटियां और नदी रास्‍ते हैं जिससे लंबे समय से यह संकेत मिलता है कि यहां पर पानी बहता रहा होगा। नासा का रोवर Perseverance वर्तमान समय में जेजेरो गड्ढे में जांच अभियान में लगा हुआ है। यह एक ऐसी झील है जहां पर 3.5 अरब साल पहले व‍िशाल झील थी।
अब तक यह माना जाता रहा था कि मंगल ग्रह का ज्‍यादातर पानी मंगल ग्रह के कम गुरुत्‍वाकर्षण की वजह से वातावरण में उड़ गया। शोधकर्ता इवा स्‍चेलर ने कहा कि वातावरण में पानी के उड़ जाने का सिद्धांत पूरी तरह से हमारे आंकड़े से मैच नहीं खाता है। हमारा डेटा बताता है कि एक समय में मंगल ग्रह पर कितना पानी था। अब वैज्ञानिकों ने नासा के प्‍लेनेटरी डेटा सिस्‍टम की मदद से इस रहस्‍य को सुलझा लिया है। इसमें उन्‍होंने रोवर और मंगल का चक्‍कर लगा रहे सैटलाइटों के डेटा का भी इस्‍तेमाल किया है। इस टीम ने धरती पर अंतरिक्ष से गिरे उल्‍कापिंडों के आंकड़े को भी शामिल किया है। शोध में लाल ग्रह पर पानी के हर रूप और वातावरण के रसायनिक तत्‍वों तथा ऊपरी परत पर ध्‍यान दिया गया है। शोध में कहा गया है कि केवल वातावरण के रास्‍ते पानी मंगल ग्रह पर खत्‍म नहीं हुआ। ताजा शोध में कहा गया है कि मंगल ग्रह का पानी जमीन के बाहरी सतह में मौजूद है। धरती के विपरीत मंगल पर कोई टैक्‍टोनिक प्‍लेट नहीं है, इसलिए एक बार इसके सूख जाने पर यह हमेशा वैसा ही रहता है।
इससे पहले वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि मंगल के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ के नीचे एक विशाल सॉल्टवॉटर झील मिली है। मंगल की झीलों पर नमक की मात्रा के कारण परेशानी हो सकती है। माना जाता है कि सतह के नीचे झीलों में पानी के लिक्विड होने के लिए नमक की भारी मात्रा की जरूरत होती है। मंगल के अंदरूनी हिस्सों से यहां तक गर्मी तो पहुंचती होगी लेकिन यह बर्फ को पानी में बदलने के लिए काफी नहीं होगी। इसलिए नमक का होना जरूरी है। इसके बाद वैज्ञानिकों ने तीन और झीलों के बारे में बताया है। यूरोपियन स्पेस एजेंसी के मार्स-ऑर्बिटिंग स्पेसक्राफ्ट Mars-Express के रेडार डेटा के आधार पर यह खोज की गई थी। स्टडी में हिस्सा ले रहीं यूनिवर्सिटी ऑफ रोम की वैज्ञानिक एलेना पेट्टिनली ने कहा था, 'हमने पानी के उसी स्रोत की खोज की है लेकिन हमें उसके आसपास तीन और स्रोत मिले हैं। यह एक जटिल सिस्टम है।' टीम ने Mars Express पर लगे Mars Advanced Radar for Subsurface and Ionosphere Sounding (MARSIS) रेडार इंस्ट्रुमेंट का इस्तेमाल किया है। MARSIS ने रेडियो वेव्स भेजी थीं जो मंगल की सतह और सतह के ठीक नीचे वाले हिस्से से टकराकर लौटा
जिस तरह से ये सिग्नल रिफ्लेक्ट होते हैं, उसके आधार पर पता लगाया जा सकता है कि वहां कौन सा मटीरियल है- चट्टान, बर्फ या पानी। धरती पर भी ग्लेशियल झीलों का पता लगाने के लिए इसी तरीके का इस्तेमाल किया जाता है। टीम ने मंगल पर ऐसे क्षेत्र खोजे हैं जहां बर्फ के एक किलोमीटर नीचे पानी के संकेत मिलते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि करीब 75 हजार स्क्वेयर किलोमीटर पर ये झीलें फैली हैं। सबसे बड़ी झील करीब 30 स्क्वेयर किलोमीटर बड़ी है और इसके आसपास 3 छोटी झीलें हैं। मंगल की सतह पर कम दबाव की वजह से लिक्विड पानी की मौजूदगी संभव नहीं होती है लेकिन वैज्ञानिकों को काफी वक्त से ऐसी संभावना लगती रही है कि यहां पानी हो सकता है। अरबों साल पहले जब यहां सागर और झीलें थीं, हो सकता है उनके निशान बाकी हों। अगर ऐसा कोई जलाशय होता है तो वह मंगल पर जीवन की उम्मीद जगा सकता है। धरती पर भी अंटार्कटिका जैसे क्षेत्रों में ग्लेशियल झीलों में जीवन मौजूद है।

दिया गया ये नाम
इन तीनों बैक्टीरिका के नाम IF7SW-B2T, IIF1SW-B5 और IIF4SW-B5 दिया गया है। जबकि, इसके चौथे स्ट्रेन जो पुराने हेपा फिल्टर में मिला था वह एक ज्ञात माइक्रोबियल प्रजाति से संबंधित है जिसका नाम मेथिलोरुब्रम रोडेशियानम है।


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